प्रतिदिन ध्वस्त होते कोरोना के रेकॉर्ड

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उत्तर प्रदेश में रविवार को कोरोना ने अब तक के सारे रेकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया. राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने कोरोना संक्रमण के नए केसों की रिपोर्ट्स जारी की. रविवार को प्रदेश में अब तक के सबसे ज्यादा 6,777 नए मामले सामने आए हैं. वहीं राजधानी लखनऊ में कोरोना वायरस ने अब तक की सबसे लंबी छलांग लगाई है. लखनऊ उत्तर प्रदेश का पहला ऐसा जिला बन गया है, जहां एक दिन में 9,999 से ज्यादा मामले आए हों. कोरोना संक्रमण के मामलों की नई संख्या के साथ प्रदेश में अब कुल 61,626 मरीज ऐक्टिव हैं. सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 81 और मरीजों की मौत के साथ रविवार को मृतकों का आंकड़ा बढ़कर 3,920 हो गया.

एक लाख से अधिक आबादी वाले इंदिरानगर में संक्रमित मरीजों की संख्या करीब 910 पहुंच गई है. पिछले दो हफ्ते से लगातार कोरोना के 40 से अधिक मामले रोजाना आ रहे हैं. यहां पर अब तक एक दिन में सर्वाधिक 53 मामले आ चुके हैं.

दूसरे नंबर पर तेजी से गोमतीनगर मे बढ़ रहे मरीज,स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन इंदिरानगर, गोमतीनगर समेत शहर कई इलाकों में संक्रमण रोकने में नाकाम साबित हो रहा है. सामुदायिक संक्रमण पता लगाने औऱ इसे रोकने के लिए शहर भर में इलाकेवार जांच शिविर लगाए.कन्टोन्मेंट जोन में बांस बल्लियों के सहारे इलाके बन्द किये,  लेकिन कोरोना थमने का नाम नही ले रहा है. इसके अलावा कैंट, रायबरेली रोड, आशियाना, आलमबाग, जानकीपुरम में भी कोरोना पैर पसार रहा है.

कोरोना वायरस टेस्ट शरीर में मृत वायरस सेल्स को भी पकड़ सकते हैं जिससे मरीज की रिपोर्ट गलत रूप से पॉजिटिव आ सकती है. स्टडी में कहा गया है कि कई हफ्ते पुराने संक्रमण की वजह से शरीर में मृत वायरस सेल्स हो सकते हैं. लेकिन ऐसे लोग अगर गलती से पॉजिटिव घोषित किए जा रहे हैं तो इसकी वजह से भी महामारी बड़ी नजर आएगी. 

आमतौर पर संक्रमण के लक्षण मिलने के एक हफ्ते तक मरीज संक्रामक रहता है, यानी संक्रमण फैलाने में सक्षम होता है. लेकिन कोरोना वायरस टेस्ट में मरीज एक हफ्ते के बाद भी पॉजिटिव घोषित किया जा सकता है. हालांकि, सभी एक्सपर्ट इस बात पर सहमत नहीं है, कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि यह तय करना मुश्किल है कि मरीज कितने दिनों तक संक्रामक रहता है. कई बार ये समय 10 दिन का भी हो सकता है. 

एक्सपर्ट तय नहीं कर पाए हैं कि कोरोना वायरस की वास्तविक जांच के लिए कैसे टेस्ट सेस्टम डेवलप किया जाए, लेकिन कट-ऑफ सेट करने से बेहतर रिपोर्ट मिल सकती है. प्रोफेसर हेनेगन का कहना है कि कट ऑफ ऐसे सेट किया जा सकता कि वायरल लोड कम होने पर मरीज पॉजिटिव घोषित नहीं किया जाए.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर कार्ल हेनेगन ने कहा कि एक हफ्ते के बाद संक्रमण फैलाने की क्षमता घटने लगती है. उन्होंने कहा कि हॉस्पिटल में मरीज कम हैं, लेकिन कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, इसके पीछे गलत तौर से पॉजिटिव करार दिए गए लोग हो सकते हैं.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के Centre for Evidence-Based Medicin ने इस बात की पुष्टि के लिए 25 स्टडी का अध्ययन किया. इन स्टडी में पॉजिटिव आए लोगों के सैंपल की जांच कर पता लगाया गया था कि क्या इन वायरस सेल्स में बढ़ोतरी होती है. वहीं, इंग्लैंड के स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि वह लैब के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि कोरोना वायरस टेस्ट के सिस्टम में सुधार किया जा सके.