बदलती जीवन शैली और युवा पीढ़ी

1115

युवा वह अवस्था होती है जब कोई लड़का बचपन की उम्र को छोड़ धीरे-धीरे वयस्कता की ओर बढ़ता है. इस उम्र में अधिकांश युवा लड़कों में एक जवान बच्चे की जिज्ञासा और जोश तथा एक वयस्क के ज्ञान की उत्तेजना होती है. किसी भी देश का भविष्य उसके अपने युवाओं पर निर्भर होता है. इस प्रकार बच्चों का सही तरीके से पोषण करने पर बहुत जोर दिया जाना चाहिए ताकि वे एक जिम्मेदार युवा बन सकें.

जितनी तेजी से विज्ञान ने तरक्की कर हमें सु-सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं उतनी ही तेजी से तरह-तरह की बीमारियों ने शरीर में घर बनाया है. डिप्रैशन, मैंटल डिसऔर्डर, तनाव, जैसे मानसिक रोग व मोटापा, गैस, कब्ज जैसी रोजमर्रा की तकलीफें और अस्थमा, जोड़ों का दर्द, माइग्रेन, बवासीर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग जैसे गंभीर रोग इसी आधुनिक जीवनशैली की देन हैं और यही सैक्स लाइफ को बरबाद कर डालते हैं.

uh

पिछले कुछ सालों से युवा पीढ़ी में लगातार बदलती जीवन-शैली के कारण तनाव बढ़ रहा है. निराशा और खालीपन के हावी होने की वजह से उनकी जीवन-शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जो तनाव की बड़ी वजह है. आजकल की युवा पीढ़ी पर काम का बढ़ता दबाव जो उसकी जीवन-शैली का अहम हिस्सा है, उसके लिए जानलेवा साबित हो रहा है.

दरअसल, तनावभरी जीवनशैली में लोग भूलते जा रहे हैं कि सैक्स दांपत्य जीवन का वह मधुर पक्ष है, प्रेम का वह चरम बिंदु है जिस में युगल जीवन की संपूर्णता समाहित है. जब सैक्स आप के जीवन में पौजिटिव न हो, सैक्स में अरुचि हो तो समझ जाइए कि खतरे की घंटी है.

अगर पुरुष धूम्रपान या अन्य नशे छोड़ कर खानपान में सुधार और कैफीन के इस्तेमाल को घटाने के साथ मोबाइल का कम प्रयोग करें तो शुक्राणुओं को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है.बेसिक इंस्ंटक्ट वाले हौलीवुड ऐक्टर माइकल डगलस ने बताया था कि ओरल सैक्स की वजह से उन्हें गले का कैंसर हुआ. उन्होंने बताया कि ओरल सैक्स के जरिए ह्यूमन पैपिलोमा वायरस यानी एचपीवी उन में संक्रमित हुआ और वे इस रोग का शिकार हुए. उन्होंने बताया कि उन की बीमारी चौथे स्टेज में डायगनोज हुई.  यूके की कैंसर रिसर्च के मुताबिक ओरल सैक्स से मुंह के कैंसर का खतरा रहता है. खासतौर से अगर ओरल सैक्स मल्टीपार्टनर के साथ किया जाए तो एचपीवी इन्फैक्शन की वजह से कैंसर की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है. कैंसर रिसर्च डेटा के अनुसार, पुरुषों में ओरल सैक्स के दौरान एचपीवी वायरस से संक्रमित होने की संभावना महिलाओं से ज्यादा होती है. इसलिए हैल्दी सैक्स को बनाएं अपनी जीवनशैली का हिस्सा.

वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद संस्कृति के दौर में युवा पीढ़ी ब्रांडेड लाइफ को ही जीने का ढंग मानती है। प्रतियोगिता और जैसे भी हो, आगे निकलना ही है, इस बदलती जीवन-शैली का एक और परिणाम है। प्रतिस्पर्धा जब निराशा की ओर धकेलती है तो विफलता सहन न करने पर आत्महत्या जैसा कदम उठाने से भी नहीं हिचकती है यह पीढ़ी.

बदलते सामाजिक मूल्यों के परिणामस्वरूप विवाह से पूर्व यौन संबंध आम हो गए हैं. यौन स्वच्छंदता की बढ़ती प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप यौन रोग बढ़ रहे हैं. असुरक्षित यौन संबंधों से महिलाओं को यौन रोगों जैसे सिफलिस, गोनोरिया और पुरुषों में एचआईवी एड्स जैसे गंभीर रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है. जननांगों में संक्रमण के कारण उन में विकृतियां जन्म लेती हैं जिस से बाद में संतानहीनता जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है.कैरियर को अधिक महत्त्व देने के चलते देर से विवाह, विवाह से पूर्व सैक्स संबंध और विवाह के बाद अधिक कौंट्रासैप्टिव पिल्स का प्रयोग स्वस्थ सैक्स की राह में रोड़ा बनता है. इस से गर्भाधान में दिक्कत होती है.

देर रात पार्टियों में धूम्रपान व शराब का सेवन सैक्स लाइफ को प्रभावित करता है. धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में नपुंसकता का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है. धूम्रपान करने वालों के शुक्राणुओं की तादाद व गतिशीलता में भी कमी आ जाती है. धूम्रपान से महिलाओं में समय से पहले मेनोपौज आने की संभावना रहती है जिस से इस्ट्रोजन का स्तर घटता है और मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं जन्म लेती हैं.

शारीरिक श्रम के नाम पर लोग दिनभर  कुछ नहीं करते. पैदल नहीं चलते, सीढिय़ां नहीं चढ़ते, और तो और सुबहशाम हवाखोरी के नाम पर बाहर सैर करने के लिए भी नहीं निकलते. शारीरिक श्रम न करने की वजह से इंसान का पाचनतंत्र जाम हो जाता है. जैसे लोहे में जंग लग जाता है वैसे ही मशीनरी में जंग लगता जाता है. पाचनतंत्र निष्क्रिय होने से शरीर दुर्बल हो या फिर मोटा, थुलथुला हो जाता है, समय से पहले बाल सफेद होने लगते हैं, झडऩे लगते हैं, त्वचा कांतिहीन हो जाती है और चेहरा समय से पहले ही ढलने लगता है.

घंटों कंप्यूटर के सामने बैठे रहना कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को प्रभावित करता है जिस से पुरुषों में इरैक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या जन्म लेती है. शारीरिक श्रम के अभाव में सैक्स हार्मोन के स्तर में कमी जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं.व्यस्तता भरी जिंदगी आज की लाइफस्टाइल का हिस्सा हो गई है. अधिकांश प्राइवेट कंपनियों में देर रात तक काम करने वाले महिलापुरुष काम के प्रैशर से थक कर जब घर आते हैं तो सैक्स के प्रति अरुचि, पार्टनर से दूरियां आदि लाइफस्टाइल का हिस्सा बन जाती हैं. दांपत्य जीवन से प्रेम, यौन ऊर्जा, एकदूसरे के प्रति आकर्षण कहीं खो सा जाता है और शरीर शिथिल हो जाता है, उस में एनर्जी का अभाव हो जाता है.

व्यस्त लाइफस्टाइल में हैल्दी फूड भी न जाने कहां गायब हो गया है. सुबह उठते ही 1 कप चाय पी और औफिस की तरफ दौड़ लगा दी. यानी शरीर के लिए जरूरी आवश्यक पौष्टिक तत्वों का पूरी तरह से अभाव और परिणामस्वरूप डायबिटीज, कैंसर, मोटापा जैसी बीमारियों को न्यौता मिल जाता है, जो स्वस्थ सैक्सुअल लाइफ में बाधक बनता है. शरीर को जरूरी पौष्टिक न मिलने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है व सैक्स करने की इच्छा नहीं होती. इसे साइकोसैक्सुअल डिसफंक्शन का नाम दिया जाता है. इस में यौनेच्छा में कमी, सैक्स भावना का न होना जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं. यह स्थिति कई बार मेनोपौज से पहले तो कई बार मेनोपौज के बाद होती है.

देर रात तक जागने वाली जीवनशैली से भी पुरुषों व महिलाओं में सैक्स समस्याएं जन्म लेती हैं. नींद पूरी न होने से तनाव जैसी समस्याएं पैदा होती हैं जो सैक्स से जुड़ी समस्याओं जैसे सैक्स में अरुचि, सैक्सुअल डिसफंक्शन का कारण बनते हैं.बच्चा हो या बड़ा, गुस्सा तो आजकल सब की नाक पर रहता है. गुस्से की वजह है तीखा व अधिक कैलोरी वाला खाना जिस से उन के शरीर को पूरे पौष्टिक तत्व  नहीं मिल पाते हैं. परिणामस्वरूप, शरीर दुर्बल व कमजोर हो जाता है. इस वजह से सहनशक्ति कम हो जाती है, बातबात पर गुस्सा आता है. हर वक्त चिड़चिड़ापन व बातबात पर चीखनाचिल्लाना आदत बन जाती है. ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी ब्लडप्रैशर की चपेट में आ जाते हैं.

कुछ हद तक बदलाव हो तो वह बहुत ही अच्छा हैं, परंतु अपने जीवन शैली में हद से ज्यादा बदलाव बहुत ही हानिकारक हैं | आज कल के युवा पीढ़ी डिजिटल प्लेटफॉर्म में इतने ज्यादा घुस गए हैं की उनके वास्तविक जीवन में क्या हो रहा हैं, यह उनको पता नही हैं |

भारत पर धीरे-धीरे बढ़ती पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारतीय समाज के मौलिकता को ठेस पहुंचा रही हैं. इससे न बल्कि समाज के गरिमा के ऊपर आंच आ रही हैं परंतु लोगों के मन में एक नकारात्मकता की भावना भी प्रवेश कर रहा हैं, इसलिए युवा पीढ़िओं को अब समझना होगा की उनको अपने जीवन शैली में थोड़ा शालीनता ला कर इसके सुधार के दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए.