बस यही सोच …..

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रजनी यादव

बस यही सोचकर बचपन से मुश्किलों से लड़ती आयी हूं।
धूप कितनी भी तेज़ हो समुंदर नहीं सूखा सकती।
ये आप पर निर्भर है नाली बनाना है या समुंदर।
आपको एक छोटा सा कीड़ा बनाना है यह अपनी फील्ड का सिंह ।
मस्किले तो बहुत दी है फ़िर भी जिंदा हूं।
ये मा का आशीर्वाद लगता है।
मुस्कीले उन्हीं को आती हैं जो कुछ करते है।
समस्या उनको आती है।
वो कुछ ऐसा करना चाहते है।
जो आज से पहले किसी ने नहीं किया।
तो अपने पंखो को बड़ाओ।
परिंदों को रोकेगे तो उड़ान भूल जाओगे। योद्धाओं को रोकोगे तो लड़ना भूल जाओगे।
आज मै अकेली अपनी हिम्मत से।
मैं क्या कर सकती हूं। यह मेरे समाज के काम आए।