श्री कृष्ण जन्माष्टमी

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आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी

11 अगस्त को है जन्माष्टमी,शास्त्रों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को दो प्रकार से माना गया है- पहली जम्माष्टमी, दूसरी जयंती। जन्माष्टमी- यह अष्टमी वह है जो अर्धरात्रि में प्राप्त होती है।
जयंती – इसमे अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र दोनो का संयोग मिलता है, इसे जयंती योग वाली अष्टमी कहते है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए सुदूर इलाको से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर पूरी मथुरा और वहां पहुंचे श्रद्धालु कृष्णमय हो जाते है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। मथुरा और आस-पास के इलाको में जन्माष्टमी में स्त्री के साथ-साथ पुरुष भी बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है।


इस वर्ष 11 अगस्त को अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि तो मिल रही है किंतु रोहिणी नक्षत्र नही है। दूसरे दिन 12 अगस्त को भी ओदयिक अष्टमी दिन में 8 बजे तक ही है। दोनो दिन रोहिणी का संयोग नही मिल रहा है।
ऐसी स्तिथि में शास्त्र कहता है – दिवा व यदि व रात्रो नास्ति चंद्र रोहिणी कला। रात्रि युक्ता प्रकुर्वीत विशेषणे न्दू संयुताम।अर्थात दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को व्रत पूजन के साथ मनाना चाहिए। अतः 11 अगस्त मंगलवार को चंद्रोदय रात्रि 11:21 पर हो रहा है। इस प्रकार अर्धरात्रि व्यापिनी चंद्रकलाओ से युक्त अष्टमी तिथि को ही प्रमुखता दी जाएगी।

भारत में लोग अलग–अलग तरह से जन्माष्टमी मानते हैं। वर्तमान समय में जन्माष्टमी को दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन साधू-संत जन्माष्टमी मानते हैं। मंदिरों में साधू–संत झूम-झूम कर कृष्ण की अराधना करते हैं। इस दिन साधुओं का जमावड़ा मंदिरों में सहज है| उसके अगले दिन दैनिक दिनचर्या वाले लोग जन्माष्टमी मानते हैं।

नोट – गृहस्थों के लिए जन्माष्टमी 11 को रहेगी व सन्यासियों के लिए 12 अगस्त को।