लिव-इन रिलेशनशिप-जज करना अदालत का काम नहीं- पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

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लिव-इन रिलेशनशिप- “बिना विवाह के एक साथ रहने वाले प्रेमी जोड़े के निर्णय को जज करना अदालत का काम नहीं”: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा…….

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि बिना विवाह के एक साथ रहने वाले प्रेमी जोड़े के निर्णय को जज करना अदालत का काम नहीं है।

न्यायमूर्ति संत प्रकाश की पीठ याचिकाकर्ताओं (17 वर्ष की आयु की लड़की और 20 वर्ष की आयु के लड़के) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में लड़की ने निजी प्रतिवादियों (परिवार के सदस्यों) के खिलाफ अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की है।

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लड़की के माता-पिता ने उस पर अपनी पसंद के लड़के से शादी करने के लिए दबाया बनाया था,जिसके बाद लड़की (याचिकाकर्ता नंबर 1) ने जिस लड़के (याचिकाकर्ता नंबर 2) वह प्रेम करती थी, उसके साथ रहने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि जब तक दोनों शादी के योग्य उम्र यानी 21 वर्ष नहीं हो जाती है,वह दोनों एक साथ रहेंगे।

याचिकाकर्ताओं ने निजी प्रतिवादियों से अपनी सुरक्षा को खतरा बताते हुए बठिंडा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया था और सुरक्षा दिए जाने की मांग की थी,लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

एएजी पंजाब ने प्रस्तुत किया कि सुरक्षा चाहने वाला कपल विवाहित नहीं हैं और उनकी अपनी दलीलों के अनुसार लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि समन्वय पीठों ने हाल ही में ऐसे ही मामलों को खारिज कर दिया है, जहां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा सुरक्षा मांगी गई थी।

कोर्ट का आदेश कोर्ट ने कहा कि,

“याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया है और अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करते हुए प्रार्थना की है कि निजी प्रतिवादियों को याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण लिव-इन रिलेशनशिप में हस्तक्षेप करने से रोका जाए।”

पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने ना तो शादी की अनुमति के लिए या ना ही अपने रिश्ते को मंजूरी देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है,बल्कि उन्होंने सिर्फ सुरक्षा प्रदान करने करने की सीमित प्रार्थना की है।

पीठ ने आगे कहा कि,

“लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा रिश्ता अवैध है या विवाह का पवित्र रिश्ता बनाए बिना एक साथ रहना कोई अपराध है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि,

“कोई भी ऑनर किलिंग को नहीं भूल सकता है जो भारत के उत्तरी हिस्सों में प्रचलित है, खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में। ऑनर किलिंग अपने परिवार की स्वीकृति के बिना शादी करने वाले और कभी-कभी अपनी जाति या धर्म से बाहर शादी करने वाले लोगों का परिणाम है। एक बार किसी बालिग व्यक्ति ने अगर अपने साथी को चुन लिया है, तो कोई अन्य व्यक्ति चाहे वह परिवार का सदस्य ही हो,इस पर आपत्ति और उनके शांतिपूर्ण अस्तित्व में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह कपल को भारत के संविधान में निहित आर्टिकल 21 के नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार के तहत सुरक्षा प्रदान करें।”

पीठ ने अंत में कहा कि

याचिकाकर्ताओं ने कोई अपराध नहीं किया है, तो इस अदालत को यहां कोई ऐसा कारण नहीं दिख रहा कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए उनकी प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि समन्वय पीठों द्वारा दिए गए निर्णयों के सम्मान के साथ, जिन्होंने लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है, यह अदालत उस दृष्टिकोण को अपनाने में असमर्थ है।

संबंधित समाचार में इसी तरह एक अन्य लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी थी,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।

न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा था कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं (कपल) को पुलिस अधीक्षक को अपने अभ्यावेदन के पूरक के लिए स्वतंत्रता दी।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसले

कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप संबंध में भी कुछ मामलों के तथ्यों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ताओं को संरक्षण देने से इनकार कर दिया था, हालांकि इसके विपरीत भी कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

कोर्ट ने हाल ही में कहा कि संरक्षण याचिकाओं में विवाह की वैधता से जुडें प्रश्न प्रेमी जोड़े के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा से इनकार करने का आधार नहीं हो सकते हैं।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की सिंगल बेंच ने कहा,

“वर्तमान याचिका का दायरा केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के संबंध में है और इसलिए विवाह की वैधता इस तरह के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।”

कोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा रिश्ता अवैध है या विवाह का पवित्र रिश्ता बनाए बिना एक साथ रहना कोई अपराध है।

➡️ न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर की खंडपीठ ने एक लिव-इन कपल से संबंधित एक मामले में यह टिप्पणी की थी। पीठ ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने लड़की के परिवार के सदस्यों से अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने संबंधित समाचार में मंगलवार (18 मई) को फैसला सुनाया था कि एक व्यक्ति को शादी या लिव-इन रिलेशनशिप के गैर-औपचारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने का अधिकार है।

▶️ न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक लिव-इन-रिलेशनशिप कपल से संबंधित एक मामले में की थी। कोर्ट ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है क्योंकि वे एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में आश्वस्त हैं। कोर्ट ने इससे कुछ दिन पहले ही एक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था और उसके बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का यह महत्वपूर्ण अवलोकन आया था।

कोर्ट ने उस लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था,जिन्होंने दलील दी थी कि उनको लड़की के परिजनों से खतरा है।

कोर्ट ने कहा था कि,

”यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।”

न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था कि,

?”याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।”

केस का शीर्षक – सीमा कौर और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य