मेयर सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी कांग्रेस की असंतुष्ट गतिविधियों से जुड़ा….?

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  • राजस्थान में कांग्रेस की असंतुष्ट गतिविधियों से जुड़ा है जयपुर की भाजपा मेयर सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी का मामला।
  • यदि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का खेल नहीं होता तो भाजपा की पार्षद शील धाबाई कार्यवाहक का पद नहीं संभालतीं। भाजपा के तीन विधायकों की भूमिका संदिग्ध।
  • दिल्ली में सचिन पायलट के 12 बिंदुओं पर विचार। कांग्रेस हाईकमान गंभीर।

एस0 पी0 मित्तल

राजस्थान। इसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति ही कहा जाएगा कि जब भी कांग्रेस में असंतुष्ट गतिविधियां जोर पकड़ती हैं, तब भाजपा में भी असंतोष उजागर हो जाता है। विगत दिनों जब गहलोत के प्रतिद्वंदी सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने अपनी ही सरकार पर असंतोष जताया तो गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार ने जयपुर की भाजपाई मेयर सौम्या गुर्जर को बर्खास्त कर भाजपा के आंतरिक कलह को बाहर ला दिया।

कांग्रेस विधायकों के असंतोष के माहौल के बीच सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी को मुद्दा बनाने के लिए भाजपा ने एक आपात बैठक बुलई। इस बैठक में जयपुर शहर से भाजपा विधायक कालीचरण सराफ, नरपत सिंह राजवी और अशोक लाहोटी को बुलाया गया, लेकिन ये तीनों विधायक बैठक में नहीं आए। अगले दिन भाजपा की पार्षद शील धाबाई को सरकार ने कार्यवाहक मेयर बना दिया। सूत्रों की माने तो कार्यवाहक मेयर का पद संभालने से पहले धाबाई ने भाजपा संगठन से अनुमति नहीं ली।

केन्द्र व प्रदेश सरकार अंतिम व्यक्ति के उत्थान के प्रति संकल्पित

सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी को मुद्दा बना कर भाजपा संगठन गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहता था, लेकिन गहलोत सरकार ने भाजपा की अंतर्कलह का फायदा उठाते हुए भाजपा की ओबीसी वर्ग की ही पार्षद शील धाबाई को कार्यवाहक मेयर बना दिया। सब जानते हैं कि विधायक सराफ, राजवी और लाहोटी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के समर्थक हैं। भाजपा की बैठक में तीन विधायकों की अनुपस्थिति से साफ हो गया कि संगठन के साथ भाजपा के सभी विधायक एकजुट नहीं है। संगठन की बैठक में भाग नहीं लेने का निर्णय तीनों विधायक अपने स्तर पर नहीं ले सकते हैं। हालांकि अब प्रदेश संगठन की ओर से राष्ट्रीय संगठन को तीनों विधायकों को लेकर एक रिपोर्ट भेजी गई है, लेकिन इन तीनों विधायकों को पता है कि वसुंधरा राजे जब तक भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, तब तक उनका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा।

सचिन पायलट की असंतुष्ट गतिविधियों से सीएम गहलोत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन भाजपा की फूट उजागर हो गई है। कांग्रेस में जब असंतोष का माहौल होता है तब भाजपा संगठन में नेतृत्व का मुद्दा अखबारों में उछाल दिया जाता है। अब भाजपा के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने वसुंधरा राजे का राग अलाप रखा है। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व माने या नहीं, लेकिन पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के रहते अशोक गहलोत की सरकार को कोई खतरा नहीं, उल्टे भाजपा को नुकसान हो रहा है। जहां तक भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का सवाल है तो वे सबको साथ लेकर चलने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

राष्ट्रीय नेतृत्व ने भरोसा जताया है, इसलिए वे प्रदेशाध्यक्ष हैं। पूनिया उन समर्पित कार्यकर्ताओं में से हैं जो निर्देश मिलते ही प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ देंगे। पूनिया को पता है कि संगठन में रहने से ही महत्व है। जबकि वसुंधरा राजे की जिद सबके सामने हैं। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता है कि राजे दिल्ली आकर राष्ट्रीय राजनीति में भाग लें, इसलिए उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना रखा है, लेकिन राजे जयपुर के मेयर पद में ही उलझी हुई हैं। यदि वसुंधरा राजे का खेल नहीं होता तो शील धाबाई कभी भी कार्यवाहक मेयर का पद नहीं संभालतीं। यानी सीएम अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के असंतोष को भाजपा के अंतर्कलह से दबा दिया। कहा जा सकता है कि राजस्थान गहलोत की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी है। गहलोत का मकसद सिर्फ स्वयं की सरकार को बनाए रखना है।


12 बिंदुओं पर विचार:-


कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट भले ही 16 जून को वापस जयपुर आ गए हो, लेकिन चार दिवसीय दिल्ली प्रवास में पायलट ने जो 12 बिंदु कांग्रेस हाईकमान के समक्ष प्रस्तुत किए उन्हें लेकर हाईकमान अब गंभीर है। पायलट की मुलाकात कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अजय माकन से हुई थी। सूत्रों की माने तो पायलट ने मंत्रिमंडल के विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों आदि में उनके समर्थकों को तरजीह देने की बात कही है।

सूत्रों के अनुसार पायलट और माकन के बीच जो मुलाकात हुई उस पर अब हाईकमान गंभीर है। चूंकि यह मुलाकात प्रियंका गांधी के निर्देश पर ही हुई थी, इसलिए राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति में खलबली मच गई। सीएम अशोक गहलोत ने रणनीति के तहत बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों आगे कर यह संदेश दिया कि बगावत करने वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाए। सूत्रों के अनुसार यदि पायलट के सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया जाता तो जयपुर में बसपा वाले विधायक गद्दारी वाले बयान नहीं देते।