योगी अब आमूल परिवर्तन करें

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भाग – 01

– श्याम कुमार

जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी का खुफियातंत्र उत्तर प्रदेश की वास्तविक स्थिति से उन्हें अवगत नहीं करा सका, वैसे ही माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के खुफियातंत्र ने उन्हें प्रदेश की वास्तविक स्थिति एवं यहां विद्यमान जनअसंतोश की सम्यक जानकारी नहीं दी। उत्तर प्रदेश का खुफियातंत्र वैसे भी ‘माषाअल्ला’ माना जाता है। बताया जाता है कि खुफिया विभाग ने 50 हजार रुपये घूस लेकर एक माफिया को, जिसे लिखना नहीं आता है और जो जेल भी जा चुका है, ‘क्लीनचिट’ देकर उसे राज्य-मुख्यालय से मान्यताप्राप्त पत्रकार बनवा दिया तथा वह आतंक फैलाकर लाखों रुपये की वसूली में लिप्त है।समाजवादी पार्टी के शासन में वह खूब फूलता-फलता रहा तथा सपाप्रेमी अफसरों की बदौलत अभी भी अपनी लूट व गुंडागर्दी जारी रखे हुए है।

जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, उस समय एक पत्रकार ने उनसे भेंटवार्ता की थी और उस भेंटवार्ता में उसने उन्हें अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन सुझावों का विवरण उन पत्रकार ने फेसबुक पर दिया था। वे सुझाव जनता एवं मुख्यमंत्री, दोनों के लिए बड़े हितकारी थे। उस समय मेरे मन में भी विचार आया था कि मैं मुख्यमंत्री से मिलकर उपयोगी सुझाव दूंगा। योगी आदित्यनाथ से मेरी पहली भेंट अयोध्या में महंत रामचंद्र परमहंस के यहां हुई थी। महंत रामचंद्र मुझे बहुत मानते थे तथा मैं अकसर उनके पास जाता था। एक दिन मैं उनके पास गया तो वह रसोई में व्यस्त थे। पाक कला में वह बहुत प्रवीण थे। उन्होंने मुझे सामने वाले कमरे में बैठने को कहा। मैं जब उस कमरे में गया तो वहां पर योगी आदित्यनाथ बैठे हुए थे। उस समय उनसे काफी बातें हुईं। हिंदुत्व प्रेमी के रूप में योगी आदित्यनाथ काफी लोकप्रिय हो गए थे।

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गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का एक शिष्य मुझे बहुत मानता था तथा फोन पर उससे प्रायः बात होती थी। मेरी इच्छा ‘रंगभारती’ द्वारा लखनऊ में योगी जी का नागरिक-अभिनंदन करने की थी। योगी जी से मेरी दूसरी भेंट लखनऊ में इंदिरा गांधी प्रतिश्ठान के उस आयोजन में हुई, जिसमें लोकसभा के चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के दृश्टिपत्र का विमोचन हुआ था तथा भाजपा की बड़ी-बड़ी हस्तियां उस आयोजन में मौजूद थीं। वहां योगी आदित्यनाथ सबके आकर्षण का केंद्र थे तथा मेरा भी उनसे अच्छा वार्तालाप हुआ था। आयोजन की समाप्ति के बाद भी योगी रुके रहे थे तथा लोग उन्हें घेरे हुए थे। तब किसी को कल्पना नहीं थी कि कुछ समय बाद यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाएंगे।

योगी जी जब मुख्यमंत्री बने तब यह आम धारणा थी कि वह इस पद पर अधिक नहीं टिक पाएंगे। कई लोगों की निगाह मुख्यमंत्री पद पर पहले से थी। लेकिन जब शास्त्री भवन के मुख्यमंत्री-कार्यालय की बिजली रात दो-दो बजे तक जलते लोगों ने देखी और मजनुओं के विरुद्ध उनका जोरदार ‘हल्लाबोल’ शुरू हुआ तो पब्लिक में योगी जी की धूम मच गई। लोग उनकी तेजी पर फिदा हो गए। दुर्भाग्यवश धीरे-धीरे वह तेजी धूमिल परिलक्षित होने लगी तथा लोगों में सरकार के प्रति निराशा का भाव पैदा होने लगा।

विगत लगभग दो वर्षो से योगी आदित्यनाथ की पुरानी सक्रियता पुनः शुरू हो गई और उनके जीतोड़ परिश्रम का कीर्तिमान कायम हो गया। लेकिन अब यह चर्चा भी हो रही है कि योगी जी तो प्रदेश के विकास एवं जनकल्याण में जी जान से लगे हुए हैं, पर यहां की नौकरशाही उनके अनुरूप काम नहीं कर रही है। योगी जी दौड़ना चाहते हैं, लेकिन पुराने ढर्रे पर चलने वाली नौकरशाही उनकी रफ्तार में बाधक हो रही है। योगी एक के बाद एक बड़ी-बड़ी जनकल्याणकारी घोषणाएं करते हैं, लेकिन जमीन पर उन घोषणाओं का समुचित कार्यान्वय नहीं हो पा रहा है।

यह आम चर्चा है कि अफसरशाही ने मुख्यमंत्री को घेर रखा है तथा वही उनकी आंख-कान बन गई है। योगी जी से भेंट हो पाना कुछ अफसरों के रहमोकरम पर निर्भर है। अफसरशाही घिसे-पिटे ढर्रे पर चलने की आदी होती है तथा वह कुछ नया करने से बिदकती है। मुझे अपनी पत्रकारिता के दीर्घकाल में ऐसे अनगिनत अनुभव होते रहे हैं। एक छोटा-सा उदाहरण याद आ रहा है। जब आराधना शुक्ल लखनऊ की जिलाधिकारी थीं तो एक दिन मैंने उनसे कहा कि हजरतगंज में बहुत जाम लग जाता है, इसलिए सड़क को बीच में विभाजक लगाकर आने-जाने के रास्ते अलग कर दिए जाएं। लेकिन उन्होंने ‘यह संभव नहीं है’ कहकर वैसा करने से हाथ खड़े कर दिए थे। उसी हजरतगंज में अब विभाजक लगा दिया गया है। मैं विगत दशकों में तमाम महत्वपूर्ण जनोपयोगी सुझाव अधिकारियों को देता रहा हूं, लेकिन कोई नई बात अधिकारियों के पल्ले नहीं पड़ती है।

केंद्र में मोदी-सरकार ने सत्ता में आते ही ऐसे जनकल्याणकारी कार्याें की झड़ी लगा दी, जिनकी विगत सत्तर वर्षो में लोगों को कल्पना भी नहीं थी। देशु में लाखों गांव ऐसे थे, जहां सत्तर वर्षो के बाद भी बिजली नहीं पहुंची थी, लेकिन मोदी ने वह काम कर दिखाया। मोदी की ऐसी अनगिनत चमत्कारपूर्ण उपलब्धियां थीं, लेकिन केंद्र का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय उन उपलब्धियों की जानकारी जनता तक नहीं पहुंचा रहा था। अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी न मिलने से लोग उनका लाभ नहीं उठा पा रहे थे।

उत्तर प्रदेश में भी सूचना विभाग का वैसा ही दुर्दशपूर्ण हाल था। उस समय मैंने प्रदेश के सूचना विभाग से तथा अन्य अनेक वरिश्ठ अधिकारियों से जब मोदी-सरकार के कार्याें की जानकारी चाही तो देखा कि स्वयं उन्हें भी कोई जानकारी नहीं थी। मैंने दर्जनों बार अपने आलेखों में मोदी सरकार एवं योगी सरकार की इस कमी की ओर ध्यान आकृश्ट किया तथा बहुतेरे महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। बाद में केंद्र व प्रदेश में शासन की आंख खुली, लेकिन प्रचार का वही घिसापिटा भोंड़ा तरीका अपनाया गया। मैंने जो तमाम सुझाव दिए थे, उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। शासन में सूचना विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव अवनीश अवस्थी हावी थी और अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते थे।

उत्तर प्रदेश में पंचायत-चुनावों के जो परिणाम आए, उनसे मोदी सरकार की नींद खुली और वहां हड़कम्प मच गया। हालांकि यह जागरण बहुत विलम्ब से हुआ है तथा काफी कीमती समय नश्ट हो चुका है। अब प्रदेश-विधानसभा के चुनाव में कम समय शेष है। वैसे, योगी आदित्यनाथ में ईमानदारी और परिश्रम की अपार ऊर्जा है, जो अभी भी बाजी अपने पक्ष में पलटने में सक्षम है। लेकिन इसके लिए उन्हें क्रांतिकारी परिवर्तनों की ओर अपने को मोड़ना पड़ेगा। सबसे पहले तो उन्हें अफसरों के मकड़जाल से बाहर निकलना होगा।

अफसरों का यह मकड़जाल कल्याण सिंह के समय से शुरू हुआ था तथा लोगों को मुख्यमंत्री की जो सुलभता पहले रहा करती थी, वह कुछ-कुछ कम हो गई थी। फिर भी वरिश्ठ पत्रकारों को उनसे भेंट का अवसर मिलता रहता था। बाद में उनके प्रमुख सचिव के रूप में लोकप्रिय अधिकारी योगेंद्र नारायण उनसे जुड़ गए। कल्याण सिंह ने अपने हर कार्यकाल में बड़े अच्छे अधिकारी साथ रखे। पंचम तल पर आलोक रंजन, गिरीश चंद्र चतुर्वेदी, दिनेश कुमार मित्तल, हरिकृश्ण पालीवाल आदि अधिकारी तैनात रहे, जो बड़े काबिल, मिलनसार एवं पूरी तरह अहंकार विहीन थे। जनता की बहुत सारी समस्याएं उन अधिकारियों के जरिए हल हो जाया करती थीं। इसीलिए मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एवं उनकी सरकार के प्रति जनता में कभी भी तनिक भी असंतोष नहीं उत्पन्न हुआ।