योगी अब आमूल परिवर्तन करें…

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श्याम कुमार

{ भाग – 03 }

मायावती के समय से अफसरों द्वारा मुख्यमंत्री को अपने घेरे में रखने का चलन आरम्भ हुआ, जिसका समाप्त होना अब मुष्किल लग रहा है। हालांकि इससे स्वयं मुख्यमंत्रियों का बड़ा नुकसान हुआ है, क्योंकि अफसरों के घेरे के कारण उनका आम जनता से सम्पर्क समाप्त हो गया है। मुख्यमंत्री को अपने घेरे में रखने से अफसरों को दो लाभ हैं। वे मुख्यमंत्री के आंख-कान का रूप ले लेते हैं तथा जैसा वे चाहते हैं, वैसा ही मुख्यमंत्री देखते-ंसुनते हैं। अफसरों को लाभ यह होता है कि किसी को उनके विरुद्ध मुख्यमंत्री से षिकायत करने की गुंजाइश खत्म हो जाती है। मुख्यमंत्री के ‘नूरेचष्म’ बन जाने से जो लुटेरे टाइप के अफसर होते हैं, उन्हें सैकड़ों-ंकरोड़ की सम्पदा बनाने का अवसर मिल जाता है।


अफसरों में भी मुख्यमंत्री का निकटवर्ती होने की होड़ रहती है। एक मुख्यमंत्री के आवास पर एक अफसर पूर्वान्ह दस बजे पहुंच जाते थे तो उनसे होड़ लेने वाले दूसरे अफसर प्रातः सा-सजय़े नौ बजे वहां पहुंचने लगे। पहले वाले अफसर ने यह देखा तो उन्होंने प्रातः नौ बजे पहुंचना शुरू किया। इस पर दूसरे वाले अफसर ने सवेरे आठ बजे वहां पहुंचना आरम्भ कर दिया। जो लोग दोनों अफसरों की यह होड़ जानते थे, उनमें मजाक होने लगा कि यदि यही हाल रहा तो ये दोनों अफसर मुख्यमंत्री-आवास पर रात से ही डेरा जमाने लगेंगे।

योगी अब आमूल परिवर्तन करें…

मुख्यमंत्री का पहले जब जनता से निकट सम्पर्क रहता था तथा मिलने आने वालों की उनसे सुगमता से भेंट हो जाती थी तो उससे मुख्यमंत्री को जनजीवन की सही नब्ज का पता लगता रहता था। लेकिन अफसरों ने सुरक्षा के नाम पर मुख्यमंत्री को अपने पिंजड़े में सीमित कर दिया। यह कुप्रथा मायावती के समय से आरम्भ हुई। अफसरों ने मायावती को इतना खतरा दिखाया कि उन्हें खतरे व सुरक्षा का मनोरोग हो गया था। मुख्यमंत्री आवास के सामने कालिदास मार्ग को बिलकुल बंद कर दिया गया था। वह पूरा इलाका जेल-ंउचयजैसा बना दिया गया था। एक बार मुख्यमंत्री मायावती की पत्रकार वार्ता थी।

जब वह मुख्यमंत्री नहीं थीं तो पत्रकार वार्ता के बाद पत्रकारों के साथ भोजन किया करती थीं। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका पत्रकारों के साथ भोजन करना बंद हो गया था। एक दिन पत्रकारवार्ता के बाद जब मायावती पत्रकारों से यह कहकर भीतर जाने लगीं कि ‘अब आप लोग लंच लीजिए’ तो आगे की पंक्ति में बैठा मैं बोल पड़ा था-ं‘‘मायावती जी, पहले आप पत्रकारों के साथ भोजन करती थीं, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद आपने ऐसा करना बंद कर दिया है।” मायावती जाते-ंजाते रुक गईं और बोलीं-ं”ऐसा क्या है, मैं भी आप लोगों के साथ लंच लूंगी।” जल्दी-ंजल्दी उनके लिए भोजन की व्यवस्था की गई।

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उस दिन मेरे कथन पर अफसरों में खलबली मच गई थी। बाद में अफसरों ने मुझे घेरा कि मैंने मुख्यमंत्री को क्यों रोक लिया? वे हरगिज नहीं चाहते थे कि मायावती तक किसी भी रूप में लोगों की पहुंच हो। मायावती के बाद जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने कालिदास मार्ग को पब्लिक के आने-ंजाने के लिए खोल दिया तथा सारी रोक-टोक समाप्त कर दी थी। इससे जनता में अखिलेश यादव की धूम मच गई थी तथा उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई। मगर बाद में अफसर उन्हें अपने घेरे में लेने में सफल हो गए तथा अखिलेश यादव की छवि एवं लोकप्रियता पर ग्रहण लग गया। मुख्यमंत्री को वास्तविकताओं से दूर रखने का ही नतीजा है कि कोरोना के दूसरे दौर में मुख्यमंत्री के दिनरात की भारी सक्रियता एवं अथक परिश्रम के बावजूद योगी सरकार को आलोचना का शिकार होना पड़ा और जनता में सरकार की छवि धूमल हुई। मुख्यमंत्री ने ‘टीम 11’ व ‘टीम 9’ बनाई, किन्तु उसमें शामिल मंत्री एवं अफसर ….सिद्ध हुए।

कोरोना के नियंत्रण में जो भी उपलब्धि हुई, उसके पीछे आईएएस अधिकारी डाॅ0 रोशन जैकब के परिश्रम का योगदान था। ‘टीम’ का प्रभारी सुरेश खन्ना को बनाया गया, जो -सजयीले-सजयाले मंत्री मशहूर हैं। होना यह चाहिए था कि मंत्री के नेतृत्व में ‘टीम’ में सारे लोग दिनरात एक जगह मौजूद रहकर एक-ंएक चीज का बारीकी से अनुश्रवण(माॅनिटरिंग) एवं निगरानी करते। अफसरों ने मायावती के समय की तरह इस समय भी कालिदास मार्ग को पुनः बंद कर दिया है, जिसकी बहुत आलोचना हुई। आम धारणा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अफसरों की इस कारस्तानी का पता नहीं होगा, अन्यथा वह सड़क कभी बंद नहीं होने देते।

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योगी आदित्यनाथ का पूरा राजनीतिक जीवन आम लोगों के बीच व्यतीत हुआ है। गोरखपुर में वह नित्य सैकड़ों लोगों से मिला करते थे तथा उनकी समस्याएं सुनते थे। आम लोगों में गहरी पैठ के कारण ही उन्हें असीम लोकप्रियता हासिल हुई। उनकी लोकप्रिय छवि के लिए यही हितकारी है कि उनके आवास के सामने कालिदास मार्ग को लोगों के गमनागमन के लिए पूरी तरह खोल दिया जाय। उनके आवास के बाहरी काउंटर पर जैसे पहले लोगों के पत्र, ज्ञापन आदि लिए जाते थे, वही व्यवस्था फिर शुरू की जानी चाहिए। योगी जी को यह भी कड़ाई से निर्दिश्ट करना चाहिए कि वहां प्राप्त पत्रों एवं ज्ञापनों पर अविलम्ब कारगर कार्रवाई हो। जो पत्र या ज्ञापन योगी जी के सामने रखे जाने वाले हों, उन्हें उनके सामने अवष्य प्रस्तुत किया जाय।

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योगी आदित्यनाथ को एक और कार्रवाई करनी चाहिए। उनके मंत्री व अफसर जनता के लिए दुर्लभ रहते हैं, अतः उस दुर्लभता को समाप्त करना चाहिए। एक और कुप्रवृत्ति प्रदेश के मंत्रियों एवं अफसरों में घर कर गई है, वह है अहंकार। दोनों ही वर्ग अहंकार में चूर हैं, जिसका कुफल योगी सरकार को भुगतना पड़ रहा है तथा उसकी लोकप्रियता को चोट पहुंच रही है। मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों एवं अफसरों को यह आदेश दें कि वे जनता को आसानी से उपलब्ध रहा करें, साथ ही उसके साथ बहुत सम्मानपूर्ण व्यवहार करें। मुख्यमंत्री यह भी कह दें कि मंत्री एवं अफसर अपने को जनता का सेवक मानें, मालिक नहीं। इस समय अफसर अहंकार में इतना चूर हैं कि वे लोगों को, चाहें वे कितने भी वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित हों, कीड़ा-मकोड़ा समझते हैं तथा बड़ी हिकारत से पेश आते हैं। आम आदमी उन तक पहुंच नहीं पाता है तथा स्वाभिमानी प्रवृत्ति के लोग उनके पास जाने से कतराते हैं। उन अफसरों तक केवल उन लोगों की आसान पहुंच होती है, जो सपा सरकार के समय में उनके चहते थे।

मुख्यमंत्री ने कोरोना से दिवंगत हुए पत्रकारों को पचास लाख रुपये की मदद देकर सराहनीय कार्य किया है। अब उन्हें वरिष्ठ पत्रकारों को, जिन्होंने ईमानदारी से पत्रकारिता में सारा जीवन खपाया, पचास हजार रुपये मासिक पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए। पत्रकारों को आवंटित आवासों के हर साल नवीनीकरण की व्यवस्था मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लागू कर दी थी, जिसे बदलकर पहले वाली व्यवस्था पुनः कर दी जाय। सूचना विभाग को सपा सरकार में जमकर फायदा उठाने वाले पत्रकारों के प्रति मोह छोड़कर अब शुरू से राष्ट्रवादी विचारधारा वाले रहे पत्रकारों को महत्व देना चाहिए।