योगी क्या अब आमूल परिवर्तन करें..?

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{भाग – 02}

श्याम कुमार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सबसे पहले जनता की समस्याओं के निवारण की बहुत ठोस व्यवस्था करनी चाहिए। पहले की तरह वर्तमान समय में भी राजधानी से लेकर जिला-स्तर तक जनता की शिकायतों का निस्तारण होना तो दूर, उसकी फरियाद तक ठीक से सुनने वाला कोई नहीं होता है। अधिकारियों के पास जनता के फरियादपत्रों को पढ़ने का बिलकुल समय नहीं रहता है और वे उन पत्रों पर चिड़िया बिठाकर आगे बढ़ा देते हैं। इसी प्रकार उनके मातहत अधिकारी भी चिड़िया बिठाते हैं तथा फरियादपत्र आगे बढ़ता जाता है और फिर शून्य में विलुप्त हो जाता है। फरियादी की समस्या ज्योंकीत्यों बनी रहती है। प्रायः ऐसा होता है कि फरियादी के पत्र में जिसके खिलाफ शिकायत होती है, चिड़िया बैठते-बैठते वह पत्र उसी आरोपित के पास जांच के लिए पहुंच जाता है।

इस समस्या के हल का एकमात्र रास्ता यह है कि फरियादियों की समस्याओं के निस्तारण की बिलकुल पृथक व्यवस्था की जाय। उचित यह होगा कि अरविंद कुमार शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाकर यह दायित्व उन्हें सौंप दिया जाय। यदि ऐसा न हो सके तो अपर मुख्य सचिव स्तर का एक अधिकारी इस कार्य हेतु तैनात किया जाय। वह अधिकारी भी सिर्फ चिड़िया बिठाने की आदत वाला न हो, बल्कि फरियादी के पत्र में उल्लिखित समस्या के निवारण के दायित्व का पूरी निष्ठा से निर्वाह करे। उस अपर मुख्य सचिव का एकमात्र कार्य यही हो। उसके पास राजधानी से लेकर तहसील-स्तर तक फरियादियों के हर पत्र का पूरा रिकाॅर्ड उपलब्ध हो तथा उसे इस बात की पूर्ण जानकारी रहे कि फरियादियों के प्रत्येक पत्र पर क्या कार्रवाई हो रही है? फरियादी की हर समस्या के निस्तारण के लिए निष्चित अवधि निर्धारित की जाय तथा जिस स्तर पर भी निस्तारण में विलम्ब पाया जाय, उस विलम्ब के लिए जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारी को कठोर दंड दिया जाय। हमारे यहां सारी समस्या इसीलिए है कि किसी को दंड का भय नहीं रह गया है। शिथिलता या लापरवाही पर जब कुछ लोग कड़ाई से दंडित किए जाएंगे, तभी सुधार होगा।

योगी क्या अब आमूल परिवर्तन करें..?

अपर मुख्य सचिव को राजधानी से तहसील तक किसी भी लापरवाह अधिकारी एवं कर्मचारी को दंडित करने का अधिकार होना चाहिए। यह व्यवस्था भी अनिवार्य रूप से हो कि फरियादी को यह सम्यक रूप से अवगत कराया जाय कि उसके पत्र पर क्या कार्रवाई की गई? जब वह फरियादी कार्रवाई से संतुश्ट हो, तभी उसके पत्र पर कार्रवाई को पूर्ण माना जाय। ‘मुख्यमंत्री पोर्टल’ की जो व्यवस्था है, उसे दुरुस्त किया जाए। इस समय उसे हैंडिल करने वाले लोग दंड का भय न होने के कारण बेहद लापरवाही से काम करते हैं। परिणामस्वरूप ‘मुख्यमंत्री पोर्टल ’ किसी मतलब का नहीं सिद्ध हो रहा है। यही हाल जिलों व तहसीलों में जनसुनवाई का है। जिलाधिकारी या अन्य अधिकारी फरियादियों के पत्रों पर चिड़िया बिठाकर उसे अग्रसारित कर देते हैं। परिणाम यह होता है कि फरियादी की समस्या यथावत बनी रहती है। कोई देखने वाला नहीं होता है कि लोगों की समस्याओं का जिलों व तहसीलों में क्यों नहीं निस्तारण हो रहा है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का सबसे बड़ा दर्द यह है कि पार्टी के लिए जीवन खपाने के बावजूद उन्हें कोई महत्व नहीं दिया जाता है। कल्याण सिंह ने मुझसे एक बार साक्षात्कार में कहा था कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह महसूस होना चाहिए कि यह उनकी अपनी सरकार है। तभी वे पार्टी के लिए जीजान लगा देते हैं, अन्यथा उपेक्षित होने पर चुपचाप घर बैठ जाते हैं। जो ईमानदार एवं जनसमस्याओं के प्रति समर्पित भाव वाले वरिश्ठ कार्यकर्ता हैं, उन्हें राजधानी से लेकर हर जनपद, तहसील, मुहल्ले व गांव में यह दायित्व सौंप दिया जाय कि वे निगरानी करें कि फरियादियों के पत्रों पर क्या कार्रवाई हो रही है? उन्हें जहां षिथिलता मिले, वे उस षिथिलता की षिकायत करें, जिस पर तुरंत ध्यान दिया जाय। वे कार्यकर्ता फरियादियों से मिलकर देखें कि वे कार्रवाई से संतुश्ट हैं अथवा नहीं। ऐसे दायित्व के निर्वाह के लिए कार्यकर्ताओं को मानदेय भी दिया जा सकता है।

आजकल फेसबुक का जमाना है। धीरे-धीरे अखबारों की भांति फेसबुक का महत्व बहुत हो गया है। तमाम लोग फेसबुक पर अपने विचार व्यक्त करते हैं तथा समस्याओं पर टिप्पणी करते हैं। उनकी बातों को महत्व दिया जाना चाहिए। हालांकि ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी, मोदी, योगी या किसी भी राष्ट्रवादी विचार से नफरत है। सरकार चाहे जितने अच्छे काम करे, वे आलोचना करते ही हैं तथा गालियां देते हैं। किन्तु उनकी परवाह नहीं की जानी चाहिए। सरकार यह घोशित कर दे कि लोग फेसबुक पर अपनी समस्याओं का उल्लेख करें। जो उपमुख्यमंत्री या अपर मुख्य सचिव जनता की समस्याओं के निस्तारण के लिए तैनात हो, उसे अपने यहां एक प्रकोश्ठ बनाना चाहिए, जिसका काम हरसमय फेसबुक पर नजर रखना हो। वह फेसबुक पर उल्लेख की जाने वाली जनसमस्याओं पर तुरंत ध्यान देकर उन्हें कार्रवाई के लिए भेज दे। फेसबुक पर षिकायतकर्ता अपना मोबाइल नंबर भी दे, ताकि उससे सम्पर्क किया जा सके।

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मुख्यमंत्री की घोषणाओं को कार्यान्वित करने में नौकरशही जो शिथिलता या उपेक्षा बरतती है, उसके परिणामस्वरूप उन घोशणाओं का मजाक बनने लगा है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं। एक उदाहरण जनसमस्याओं से सम्बंधित यही है कि मुख्यमंत्री योगी कई बार आदेश दे चुके हैं कि अधिकारीगण सीयूजी फोन स्वयं उठाया करें तथा लोगों की समस्याओं को सुनकर उनका निस्तारण करें। किन्तु ऐसा तो तब होगा, जब फील्ड में तैनात अफसर जनता की सेवा के प्रति समर्पित भाव वाले हों। अभी तो लोग फील्ड में तैनाती इसलिए चाहते हैं कि वहां वे राजा की तरह रहेंगे तथा तरह-तरह से ऊपरी कमाई करेंगे। लगभग सभी अधिकारी अपने मोबाइल अर्दली के पास रखते हैं, जो कभी भी किसी से बात नहीं कराता है। ऊपर से नीचे तक अफसरषाही की यह प्रवृत्ति रहती है कि चाटुकारी एवं तिकड़म से अपना उल्लू सीधा करते रहो, जनता जाए भाड़ में। इसीलिए अफसर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बनाए रखते हैं, ताकि यदि दूसरी पार्टी सत्ता में आ जाए तो भी उनकी पांचों उंगलियां घी में रहें।

तमाम ऐसे अफसर हैं, जो सेवानिवृत्त हो गए हैं, लेकिन बड़े ही योग्य व ईमानदार छवि वाले रहे हैं। मुख्यमंत्री को उनका उचित रूप में उपयोग करना चाहिए। बलविंदर कुमार ऐसे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, जो हर दृश्टि से लाजवाब रहे हैं और अहंकार से पूरी तरह मुक्त थे। उनसे मिलने जाने पर आगंतुक को परिचयकार्ड भेजने की जरूरत नहीं पड़ती थी। इसी प्रकार हरिकृश्ण पालीवाल, चंद्रभूशण पालीवाल, मुकेश मित्तल, मणिप्रसाद पांडेय आदि बहुत योग्य एवं स्वच्छ छवि वाले अधिकारी रहे हैं। ये सब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनका पता लगाकर उचित रूप में जनहित के लिए सदुपयोग किया जाना चाहिए। नवीन चंद्र बाजपेयी एवं आलोक रंजन दो ऐसे काबिल और ईमानदार अधिकारी रहे हैं, जो लाजवाब थे। दुर्भाग्यवश अंतिम समय में उन पर समाजवादी पार्टी से निकटता का ठप्पा लग गया। लेकिन वे दोनों व्यक्ति अति बहुमूल्य रत्न हैं तथा सेवानिवृत्ति के बाद निश्क्रिय हैं। मुख्यमंत्री को इन दोनों अधिकारियों का सदुपयोग करना चाहिए। ये दोनों सुशसन में बहुत अधिक उपयोगी होंगे।