अरे अहंकारियों (पत्रकारों) थोड़ा रहम करो !

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पत्रकार धूप बरसात सर्दी दिन रात मेहनत करके जनता के लिए काम करता हैं।सरकार की योजनाओं परियोजनाओं का पूरा प्रचार प्रसार करता हैं।हर सप्ताह किसी को ख़बर के कारण किसी को बड़ी बीमारी के कारण कोई खबर कवर करने जाते हादसे का शिकार तक हो जाता हैं । ईंट से मुंह टूटना फूटना कैमरा तोड़ दिया जाना पुलिसिया तांडव का शिकार जेल यात्रा साथ में माई बहिन बिटिया होना सामान्य बात है।

कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। देश में कोरोना वायरस के मामलों में आए दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। वायरस तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है। कोरोना के इस जंग में डॉक्टर, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी के साथ-साथ पत्रकार भी एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। पत्रकार भी अपनी जान जोखिम में डालकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं और जनता को कोरोना की हर खबर से अपडेट रख रहे हैं।

बस्ती जिले में कोरोना वायरस के मामले दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। रविवार को जिले में एक बार फिर कोरोना के 26 केस सामने आए हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर और जिला अस्पताल के ट्रूनेट जांच मशीन व एंटीजेन जांच किट से 682 की रिपोर्ट जारी की गई। 656 निगेटिव जबकि 26 कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसी के साथ जिले में संक्रमितों की संख्या बढ़कर 1170 पहुंच गई है। संक्रमितों को लेवल-वन अस्पताल ओपेक चिकित्सालय कैली, जवाहर नवोदय विद्यालय रुधौली व परशुरामपुर में शिफ्ट कराया जा रहा है। कोरोना से मरने वालों की संख्या 34 है। 

सब आम बात है ,ये सब होने के बाद मिलता क्या है….?

अब वास्तव मै अगर पत्रकार हैं कहने का मतलब दल्ला नहीं हैं तो घर या तो किराए का होगा या फिर पिता जी ने बनाया होगा।गर बीमार हो गए और जागरण हिंदुस्तान अमर उजाला और ज़ी ,एबीपी ,आजतक जैसे संस्थान से हैं तो डीएम साहेब तत्काल मदद कर देंगे आपको जिले में या फिर प्रदेश के प्रमुख अस्पताल में एडमिट करवा देंगे मुख्यमंत्री राहत कोष से तत्काल मदद पहुंचवा देंगे , जिले में पत्रकार संगठन है तो आपके लिए पैसा भी थोड़ा बहुत इकठा हो जाएगा।अगर आप बच गए तो दुकान पर चाय के साथ हंसी ठिठौली और मजे करेंगे मर गए तो चार दिन परिवार को सहानिभूत फिर सब भूल जाएंगे।

पर क्या आपको पता है छोटे संस्थानों के पत्रकार के साथ क्या होता… ?

बताता हूं -खबर करने गए पिटाए तो बड़े समूह वाले उसे दलाल कह कर साथ नहीं देंगे
बीमार हुए तो डीएम तो एसडीएम तक आपकी पत्री पहुंचने में सप्ताह भर लग जाएगा ,सदर असपताल में पहुंचेंगे रिफर हुए तो मेडिकल कॉलेज में दम तोड देंगे ।मुख्यमंत्री का कोष तो दूर कौनो संगठन मदद को हाथ नहीं बढ़ाएंगे (गर कोई हित मित्र संगठन का पदाधिकारी नहीं है तो)।

पत्रकार चाहे विधानसभा कवरेज़ वाला हो या फिर गांव वाला उसके मरने के बाद उसके बालको की पढ़ाई भाड़ में गई ,जिसका पिता समाज का आइना का हिस्सा था।उसका बेटा अनपढ़ रहेगा कारण सरकार की तरफ से ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि बालको की पढ़ाई या विधवा को कोई नौकरी मिल सके ,मतलब पूरी ज़िन्दगी दूसरो कि आवाज़ बनने वाले का खुद का घर जहन्नुम बन जाता है बात ख़तम हो जाती।

संत कबीरनगर में रविवार को कोरोना वायरस के 1,255 सैंपल की रिपोर्ट आई। इसमें 1,200 निगेटिव जबकि तीन पुलिस कर्मी, चैनल के एक पत्रकार समेत 55 लोग जांच में कोरोना पॉजिटिव निकले हैं। इस दिन 40 पॉजिटिव मरीज स्वस्थ होकर अपने घर पहुंचे। बहरहाल कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर अब 1,367 हो गई है।

इन समस्याओं पर बात करने के लिए कुछ पत्रकारों के संगठन बने हुए हैं पर उनका काम सिर्फ सरकार से माल लेना है उसके कई माध्यम है जैसे ट्रांसफर पोस्टिंग ठेका सरकारी जमीन ऐलार्ट कराना सहित जरूरत पड़ने पर दबाव बना कर अपने और अपने चहेतों के काम निकलवाना मात्र है।इसमें भी कुछ एक जातीय लोग हावी है इनका साथ देने वाले लोग भी वही है यही कारण है कि आजादी के बाद से अब तक किसी पत्रकार के लिए कुछ विशेष नहीं हुआ।


गैर मान्यता प्राप्त को पत्रकार नहीं मानती सरकार…. ?

जब की 95%काम गैर मान्यता प्राप्त लोग करते हैं। मित्रों अरे बेशर्म पत्रकार मित्रो थोड़ी बहुत भी अंदर अक्ल है तो अपने सरकार को जगाओ कहो जी पत्रकार की असमय मृत्यु होती है उसके पत्नी को नौकरी और बेटे की पढ़ाई का जिम्मा सरकार उठा लिया करे।अगर चौथा खमभा का गुमान सिर पर से उतर गया हो तो एक बार पत्रकारों के स्वास्थ्य परीक्षण , स्वास्थ्य व्यवस्था की पूर्ण सेवा निशुल्क की मांग सभी अस्पतालो में हो पत्र में लिखो ,पत्रकार सरकार और पब्लिक दोनों के लिए काम करता है।

कोरोना महामारी के मद्देनजर काशी पत्रकार संघ व वाराणसी प्रेस क्लब की पहल पर जिला प्रशासन ने मीडिया कर्मियों की कोविड-19 जाँच के लिए आज पराड़कर स्मृति भवन में शिविर का आयोजन किया। इसमें 68 से अधिक मीडियाकर्मियों व उनके परिजनों के स्वास्थ्य की जांच हुई। इसमें 10 लोग कोरोना पॉजिटिव पाये गये।


अगर पत्रकारों के लिए इतना भी सरलता से नहीं किया जा सकता तो तुम्हे बाप और पति कहलाने का हक नहीं है तुम्हारे बीमार होने पर चंदे से गर तुम्हारा इलाज हो भीख मांग कर इलाज हो तुम्हारी पत्नी को 100-500 रुपए लोग लिफाफे में दे जाए ,ये हालात के जिम्मेदार तुम हो ,थूकम से कम अपनी लड़ाई लडो अपने अधिकार की लड़ाई लड़ो अगर न लड़ पाओ तो बताओ मै लड़ूं,साथ खड़े तो हो जाओ। कायर मत बनो वीर बनो तुम्हारी मेहनत के बाद आने वाले नई खेप तुम्हारी तरह परेशान नहीं होगी ईश्वर सद्बुद्धि दे जिससे अपने समाज (पत्रकार ) की लड़ाई लड़ सको।