आयोडीन का अधिक प्रयोग खतरनाक बिमारियों कि वजह

304

आयोडीन एक रासायनिक तत्त्व है। आयोडीन हमारे आहार के प्रमुख पोषक तत्वों में से है और इसकी कमी से दिमाग़ और शरीर के विकास से जुड़ी कई बीमारियाँ होती हैं। दुनिया में प्रति वर्ष लाखों बच्चे सीखने की कमज़ोर क्षमता के साथ पैदा होते है क्योंकि उनकी माताओं ने गर्भावस्था के दौरान भोजन में आयोडिन की पर्याप्त मात्रा नहीं लीं.आयोडीन की मदद से “गर्दन के पास पाई जाने वाली थायरॉयड ग्रंथि विकास के ‘लिए’ ज़रूरी हार्मोन पैदा करती है। आयोडिन की कमी के कारण बच्चों का बौद्धिक स्तर 10 से 15 प्रतिशत तक कम हो सकता है।

 आयोडीन की कमी से ग्वाइटर (घेंघा), मानसिक विकृति, गर्भपात, शारीरिक कमजोरी, मांसपेशियों में शिथिलता जैसी अनेक कठिनाइयां घेर लेती हैं। ग्लोबल आयोडीन नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में लगभग 200 करोड़ लोग आयोडीन की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ), लखनऊ का शोध और भी ज्यादा आंखें खोलने वाला है। आयोडीन की कमी पूरी करने के लिए अपनाया जाने वाला मौजूदा तरीका और जाने-अनजाने शरीर में बढऩे वाली इसकी मात्रा पुरुषों की प्रजनन क्षमता घटा रही है। यही नहीं, उनकी सेक्स इच्छा भी प्रभावित हो रही है। सीडीआरआइ अब सरकार को आयोडीनयुक्त नमक के प्रयोग की वैश्विक नीति की समीक्षा का सुझाव भेजने जा रहा है।

आयोडीन शरीर में थायराइड हार्मोन का निर्माण करने के लिए जरूरी है, लेकिन सूक्ष्म मात्रा में। सामान्य तौर पर एक व्यक्ति के लिए 150 माइक्रोग्राम आयोडीन की मात्रा प्रतिदिन काफी है। इसकी पूॢत किसी खाद्य पदार्थ से नहीं होती। यह मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, जो फलों और सब्जियों के जरिए शरीर में पहुंचता है।

नमक के अलावा खानपान में और कौन-कौन से आहार को करें शामिल ताकि आयोडीन कमी से शरीर बचा रहे……रोस्‍टेड आलू भुने हुए आलू रोज़ खाने चाहिए इससे आपको आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त मिलते हैं और आलू के छिलके में आयोडीन, पोटेशियम और विटामिन पाया जाता है।दूध, मुनक्‍का,दही, ब्राउन राइस, लहसुन।

सीडीआरआइ, लखनऊ के विज्ञानी डॉ. राजेंद्र सिंह बताते हैं कि मैदानी क्षेत्रों के मुकाबले पहाड़ी क्षेत्रों की मिट्टी में आयोडीन की ज्यादा कमी होती है। वजह, यहां बारिश के चलते मृदा क्षरण होता रहता है। पानी के साथ मिट्टी में मौजूद आयोडीन भी बह जाता है जबकि मैदानी क्षेत्रों में आयोडीन पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है। बीएचयू, वाराणसी के सहयोग से किए गए शोध में देखा गया कि बंगाल के गंगा के मैदानी क्षेत्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश की तराई और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मणिपुर में रहने वाले लोगों में आयोडीन की पर्याप्त मात्रा मौजूद है। वहींं केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा और बंगाल के ग्रामीण इलाकों में लोगों में इसकी कमी पाई गई।

आयोडीन की कमी पूरी करने के लिए भारत सहित पूरी दुनिया में अभियान चलते हैं। इसके लिए फोर्टीफाइड यानी आयोडीनयुक्त नमक का प्रयोग किया जा रहा है, जो कारगार भी साबित हुआ है। भारत में 80 फीसद से अधिक घरों में आयोडीनयुक्त नमक पहुंच चुका है लेकिन, यही भेड़चाल जाने-अनजाने में एक बड़े इलाके के पुरुषों की प्रजनन क्षमता को संकट में डाल रही है। ऐसे इलाके जहां प्राकृतिक रूप से पहले से आयोडीन की अधिकता है, नमक में उसके प्रयोग से शरीर में वह ज्यादा पैबस्त होता जा रहा है। शोध मेंं साफ हुआ है कि आयोडीन की अधिकता से ऑक्सीडेटिव डिस्ट्रेस होता है। यह टेस्टिकुलर टिश्यूज को कमजोर करने के साथ उसमें मौजूद ब्लड टेस्टीज बैरियर में भी गड़बड़ी करता है। नतीजतन लोगों में स्पर्मेटोजेनेसिस हो जाती है, जिसका प्रभाव शुक्राणुु बनने पर पड़ता है। शुक्राणु कम बनने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। यही नहीं, उम्र के साथ पुरुषों की सेक्स इच्छा भी कमजोर होती जाती है।

आयोडीन अवटु ग्रंथि के सम्यक, कार्यविधि के लिए आवश्यक है जो शक्ति का निर्माण करती है, हानिप्रद कीटाणुओं को मारती है और इसके हार्मोन थांयरांक्सीजन की कमी पूरी करती है। आयोडीन मन को शांति प्रदान करती है, तनाव कम करती है, मस्तिष्क को सतर्क रखती है और बाल, नाखून, दांत और त्वचा को उत्तम स्थिति में रखने में मदद करता है।

आयोडीन मन को शांति प्रदान करती है, तनाव कम करती है, मस्तिष्क को सतर्क रखती है और बाल, नाखून, दांत और त्वचा को उत्तम स्थिति में रखने में मदद करता है। आयोडिन की कमी से गर्दन के नीचे अवटु ग्रंथि की सूजन (गलगंड) हो सकती है और हार्मोन का उत्पादन बन्द हो सकता है जिससे शरीर के सभीसंस्थान अव्यवस्थित हो सकते हैं।

शोध में सामने आई जानकारी के बाद सरकार को आयोडीनयुक्त नमक की यूनिवर्सल पॉलिसी में बदलाव की जरूरत का सुझाव दिया है। यह कहते हुए कि उन इलाकों में, जहां लोगों के शरीर में आयोडीन सामान्य मात्रा में मौजूद है, नमक के जरिए आयोडीन की अतिरिक्त मात्रा न दी जाए। सीडीआरआइ के वैज्ञानिक का यह शोध प्रसिद्ध जर्नल रिप्रोडक्टिव टॉक्सिकोलॉजी में इसी माह प्रकाशित हुआ है।

गर्दन में सूजन, अचानक वजन बढऩा, कमजोरी या थकान महसूस होना, बालों का झडऩा या कम होना, याददाश्त कमजोर होना, गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं, मासिक धर्म की अनियमितता या मासिक धर्म में अधिक खून आना आयोडीन की कमी के सामान्य लक्षण हैं।

वयस्कों को आमतौर पर प्रति दिन 150 माइक्रोग्राम (एमसीजी) आयोडीन की आवश्यकता होती है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रति दिन 200 एमसीजी जरूरी है। हमारे शरीर में आयोडीन का निर्माण नहीं होता, यानी हमें आहार के रूप में ही इसे शरीर में पहुंचाना होता है।

वयस्कों को आमतौर पर प्रति दिन 150 माइक्रोग्राम (एमसीजी) आयोडीन की आवश्यकता होती है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रति दिन 200 एमसीजी जरूरी है।
यूरिन या ब्लड टेस्ट से आयोडीन की कमी का पता लगाया जा सकता है। आयोडीन पैच टेस्ट भी होता है, जिसमें डॉक्टर त्वचा पर आयोडीन का एक पैच पेंट करते हैं और जांचते हैं कि 24 घंटे के बाद यह कैसा दिखता है।

इस बीच रंग हल्का नहींं होता तो इसका मतलब शरीर में आयोडीन पर्याप्त मात्रा में है। अगर कमी होती है तो जल्द ही इसका रंग उड़ जाता है।वैद्य डॉ0 बताते हैं कि प्राचीन काल से भोजन में सेंधा नमक का उपयोग किया जाता रहा है। सिंध प्रांत में सेंधा नमक, जिसे पिंक साल्ट या हिमालयन साल्ट भी कहते हैं, प्राकृतिक रूप से चट्टानों के रूप में मिलता है। सेंधा नमक में सोडियम की मात्रा साधारण नमक के मुकाबले कम होती है। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से पैदा होने वाली बिमारियों में घेंघा रोग, बौनापन, लो आई क्यू, ब्रेन डैमेेज, गूँगापन और बहरापन, थायरॉइड ग्रंथि से हार्मोन के स्राव में विषमता, हड्डियों में विषमता, बौद्धिक विकलांगता, मनोरोग और गर्भवती महिलाओं द्वारा अविकसित बच्चों के साथ ही मरे हुए बच्चों को जन्म देना आदि शामिल हैं।