जातिगत जनगणना का विरोध क्यों..?

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आख़िर जातिगत जनगणना का विरोध क्यों..?
आख़िर जातिगत जनगणना का विरोध क्यों..?
लौटनराम निषाद


आख़िर जातिगत जनगणना का विरोध क्यों..?बिहार में जातिगत जनगणना के क्यों किया जा रहा विरोध…? रामचरितमानस, बंच ऑफ थॉट्स व वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड हैं जातिवादी साहित्य।

देश में जाति ने समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम है। इसमें मनुस्मृति,गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक माधव सदाशिव गोलवलकर लिखित बंच आफ थाट्स व वी ऑफ़ र अवर नेशनहुड डिफाइंड ने 85 प्रतिशत लोगों को सदियों तक पीछे रखने का काम किया है। इन्हीं के कारण देश के राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री को मंदिरों में जाने से रोका गया। मुख्यमंत्री द्वारा आवास खाली करने पर गोमूत्र व गंगा जल से धुलवाया गया। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि उक्त साहित्य जातिवादी व विभेदकारी हैं।पिछड़ों, वंचितों द्वारा उसका बहिष्कार ही नहीं,सामूहिक दहन किया जाना चाहिए।

“जनगणना अपने आप में बहुत ही जटिल कार्य है। जनगणना में कोई भी चीज़ जब दर्ज हो जाती है, तो उससे एक राजनीति भी जन्म लेती है। विकास के नए आयाम भी उससे निर्धारित होते हैं। इस वजह से कोई भी सरकार उस पर बहुत सोच समझ कर ही काम करती है। एक तरह से देखें तो जनगणना से ही जातिगत राजनीति की शुरुआत होती है। उसके बाद ही लोग जाति से ख़ुद को जोड़ कर देखने लगे, जाति के आधार पर पार्टियाँ और एसोसिएशन बनने लगे।”

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उन्होंने कहा कि आज तुलसीदास जिंदा होते तो हम उनपर अपनी जाति के साथ तेली,कलवार,अहीर,कोल,भील,नारी जाति के अपमान के लिए मानहानि का मुकदमा करता।उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में लिखा गया है कि- अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए। इसका अर्थ होता है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण कर जहरीले हो जाते हैं, जैसे दूध पीकर सांप विषैला हो जाता है। एक युग में मनुस्मृति, दूसरे में रामचरितमानस तथा तीसरे युग में बंच आफ थाट्स व वी ऑफ र अवर नेशनहुड डिफाइंड ने समाज में नफरत फैलाई है। कोई भी देश नफरत से कभी महान नहीं बना है, देश जब भी महान बनेगा, मोहब्बत से ही बनेगा।उपर्युक्त साहित्य पूरी तरह पिछड़ा,दलित,वंचित,आदिवासी व महिला विरोधी हैं।

साल 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी। साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया। साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं।


निषाद ने बताया कि तुलसीदास ने रामचरितमानस में निषाद के हवाले से लिखा है- “कायर कपटी कुमति कुजाति,लोक वेद बाहेर सब भाँति।” “लोक वेद सब भाँतिही नीचा,जासु छाह छुई लेइअ सींचा।”,जे बरनाधम तेली कुम्हारा, स्वपच किरात कोल कलवारा।”,”एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं, बड़ वशिष्ठ सम को जग माहीं।”,”तुम कुकृत हम नीच निषादा, पावा दरसन राम प्रसादा।”,”हम जड़ जीव जीवजन घाती, कुटिल कुचाली कुमति कुजाती।”,यह हमरि अति बड़ सेवकाई,लेहि न बासन बसन चोराई।” उन्होंने कहा कि तथाकथित राम के निषादराज गुरुकुल के सहपाठी व परममित्र थे।जब राम का वनवास हुआ तो सृंगबेरपर से लंका तक निषाद वंश के निषाद, केवट,कोल,किरात, भील,वानर आदि ने ही उनकी मदद किया,किसी ब्राह्मण, राजपूत आदि सवर्ण ने नहीं।

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जातिगत जनगणना का विरोध क्यों..?

बिहार सरकार ने इसी साल दो जून को जातिगत सर्वेक्षण को मंज़ूरी दी थी। इस सर्वेक्षण में 12.7 करोड़ जनसंख्या, 2.58 करोड़ घरों को कवर किया जाएगा जो 31 मई को पूरा होगा।इसे जातिगत जनगणना नहीं कहा गया है लेकिन इसमें जाति संबंधी जानकारी जुटाई जाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से केंद्र सरकार से राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की मांग करते रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के लिए पहले ही मना कर चुकी है।

जातिगत जनगणना का मामला पहले भी उठता रहा है लेकिन जानकारों का कहना है कि यूपीए हो या एनडीए सरकार दोनों ही इसके पक्ष में नज़र नहीं आई हैं। राष्ट्रीय दल विपक्ष में आने पर इसकी मांग करते हैं लेकिन सत्ता में आने पर जाति आधारिक आंकड़ा जारी करने से हिचकिचाते हैं। सरकारों को सबसे ज़्यादा समस्या ओबीसी आबादी के आंकड़ों को प्रकाशित करने में होती है।


निषाद ने कहा कि हर सेन्सस में जातिगत जनगणना होनी चाहिए,यह संवैधानिक मामला है और राष्ट्रहित में है।1951 से एससी, एसटी का कास्ट सेन्सस होता आ रहा है।2011 की सामाजिक-आर्थिक-जातिगत जनगणना के अनुसार एससी, एसटी,धार्मिक अल्पसंख्यक (मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई, बौद्ध,जैन,पारसी,रेसलर आदि),ट्रांसजेंडर, दिव्यांग के आँकड़े 2016 में घोषित कर दिए गए,ओबीसी के आँकड़े छुपा लिए गए,आखिर क्यों? पूर्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आरजीआई व सेन्सस विभाग की बैठक में सेन्सस-2021 में ओबीसी की जनगणना कराने का वादा किये थे,लेकिन बाद में गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर ओबीसी की जनगणना कराने से मना कर दिया।आखिर ओबीसी की जनगणना कराने से कौन सी राष्ट्रीय क्षति हो जाएगी?भारत सरकार मगरमच्छ, घड़ियाल,डॉल्फिन,भालू की गणना कराती है।जब जानवरों व हिजड़ों की जनगणना होती है तो पिछड़ों की क्यों नहीं?


निषाद ने बताया कि यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के अध्यक्ष जयभगवान गोयल ने बिहार सरकार द्वारा प्रदेश में जातीय गणना करवाने की कड़ी भर्त्सना की है। उन्होंने इस मामले में केंद्र से तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग भी की है। उन्होंने कहा कि यूएचएफ अन्य हिंदूवा संगठनों के साथ मिलकर जातीय गणना व कड़ा विरोध करते हुए दिल्ली में रोष प्रदर्शन करेगा। इसका उद्देश्य हिंदू समाज को जाति मैं बिखरा दिखाकर वोट बैंक की राजनीति कर मात्र है। देशहित में इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है।निषाद ने कहा कि आखिर बिहार में जातिगत जनगणना के विरोध कौन और क्यों कर रहा है?उन्होंने कहा कि ओबीसी को संविधान के अनुच्छेद-15(4),16(4) व 16(4-1) से वंचित करने की संविधान विरोधियों की साज़िश है

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