जीवन की सफलता का आधार संतुलित ज्ञान….!

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– डा0 जगदीश गांधी,

शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) जीवन की सफलता का आधार संतुलित ज्ञान है :-         

        मनुष्य की सफलता, प्रसन्नता तथा समृद्धि उसकी तीनों वास्तविकतायें भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के संतुलित ज्ञान एवं उनके विकास पर निर्भर होती हैं। जीवन बहुत बड़ी चीज है। केवल परीक्षा में प्राप्त किये गये अंकों का सफल जीवन से अधिक संबंध नहीं होता है। बालक ने भौतिक विकास कितना किया यह परीक्षा में विभिन्न विषयों में प्राप्त अंकों के रिजल्ट से मालूम चलता है। बालक ने सामाजिक या मानवीय गुणों का कितना विकास किया इसका जिक्र रिजल्ट में नहीं होता है। परिवार के सदस्यों के साथ सहयोग की भावना, बड़ों के लिए सम्मान, छोटे के लिए प्यार, अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों के साथ मिलजुल कर रहने के गुणों का बालक में कितना विकास हुआ इत्यादि बातें सामाजिक विकास के अन्तर्गत आती हैं। जीवन की सफलता के लिए भौतिक विकास के साथ सामाजिक विकास भी जरूरी है। इसके साथ ही बालक ने कितना आध्यात्मिक विकास किया, इसका जिक्र भी रिजल्ट में नहीं होता है। जबकि मनुष्य भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के संतुलित विकास से ही वह पूर्ण गुणात्मक व्यक्ति बनता है। 

(2) आध्यात्मिक शिक्षा से आत्मा का विकास होता है :-

        मनुष्य के अंदर एक आत्मा होती है जो परमात्मा का अंश है। यह रूह या आत्मा खुदा/परमात्मा से आती है। मनुष्य का जब देहान्त होता है तो यह आत्मा परमात्मा के पास वापिस लौट जाती है। धरती का पिता तथा दिव्य लोक का पिता परमात्मा दोनों ही हमारी भलाई चाहते हैं। शरीर का पिता भी मार्गदर्शन देता है तथा आत्मा का पिता परमात्मा भी मार्गदर्शन देता है। बालक को बाल्यावस्था से ही यह ज्ञान होना चाहिए कि माता-पिता की क्या आज्ञायें हैं? एक आज्ञाकारी बालक अपने माता-पिता की आज्ञाओं का पालन पूरे मन से करता है। बालक को यह भी जानना जरूरी है कि उसके बड़े पिता परमात्मा की उसके लिए क्या शिक्षायें तथा आज्ञायें हैं? एक प्रभु भक्त बालक परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर जीवन में उनका पालन पूरी निष्ठा से करता है।

(3) मनुष्य को विचारवान आत्मा मिली है :-

        जीवन एक यात्रा है तथा संसार एक पड़ाव है। सबको इस संसार से एक दिन जाना है। हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेने के बाद मनुष्य जन्म अपनी विचारवान आत्मा के विकास के लिए मिलता है। पशु योनियों में आत्मा का विकास करने का सुअवसर नहीं मिलता है। मनुष्य की विचार करने की शक्ति दिव्य लोक से जुड़ जाये तो जीवन प्रकाशित हो जाता है। जीवन के निर्णय गलत हो जाये तो हम दुःख में पड़ जाते हैं। हम यह कैसे पता करेंगे क्या सही है क्या गलत है? इस बात को जानने का तराजू यह है कि हमारा निर्णय परमात्मा की शिक्षाओं के अनुकूल है या नहीं। यदि हमारा निर्णय परमात्मा के निर्णय के अनुकूल है तो हमारा निर्णय सही है और यदि प्रतिकूल है तो निर्णय गलत है। हमें रोजाना प्रभु से वार्तालाप तथा प्रार्थना करने का स्वभाव विकसित करना चाहिए।

(4) ये अवतार हमारे गुरू हैं जो हमें परमात्मा का सही पता बताते हैं :-

        गुरू गोविन्द दोनां खड़े काके लाँगू पांव, बलिहारी गुरू आपकी गोविन्द दियो बताय। ये अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह हमारे गुरू हैं। ये गुरू ही हमें परमात्मा का सही पता बताते हैं। परमात्मा का पता पवित्र ग्रन्थ गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता में हैं। अवतार रूपी गुरूओं ने यह पता हमें बताया है। परमात्मा ने अवतारों को दिव्य ज्ञान तथा पवित्र किताबे दी हैं। चूंकि भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों के संतुलित ज्ञान से ही पूर्ण गुणात्मक व्यक्ति विकसित होता है। इसलिए हमें बच्चों को भौतिक के साथ सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों का संतुलित ज्ञान बचपन से ही देना जरूरी है।

(5) धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है :-

        परमात्मा ने संतुलित जीवन जीने का जो ज्ञान पवित्र ग्रन्थों के माध्यम से दिया है। वह हर्ष, प्रसन्नता तथा समृद्धि का मार्ग है। बच्चों को सभी पवित्र ग्रन्थों की मूल शिक्षाओं का ज्ञान देना चाहिए। हमें सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकें गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता घर में लाकर रखना चाहिए। इन पवित्र पुस्तकों में दी गई शिक्षाओं का ज्ञान कराकर हमें अपने बच्चों को धर्म के वास्तविक स्वरूप अर्थात ईश्वरीय एकता से परिचित कराना चाहिए।