पत्रकारों जागो खतरे में अस्तित्व

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हेमन्त कृष्ण

जागो पत्रकारों जागोअस्तित्व खतरे में है,मैने अपने पत्रकारिता जीवन में उत्तर प्रदेश के सत्ता और शासन के शीर्ष पर दो पदासीन मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के रुतबे को बड़ी करीब से देखा और महसूस किया है।
इस रूतबे की भी अपनी माया है।दोनों ही स्वयं को सबसे शक्तिशाली समझते हैं जबकि लोकतंत्र में यह एक दिवास्वप्न ही है।
वर्तमान से पूर्व के कई मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इसी माया का निर्वहन करते हुए भूतपूर्व हो गए।प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी ,हेमवती नन्दन बहुगुणा से लेकर  अखिलेश यादव तक भूतपूर्व का दंश भोग चुके हैं या भोग रहे हैं।इन मुख्यमंत्रियों के साथ मुख्य सचिव भी भूतपूर्व की की बीमारी महसूस किये होंगे  या महसूस कर रहे हैं।
वर्तमान में मुख्यमंत्री तो योगी आदित्यनाथ जी है।यह सत्ता के शीर्ष का सुख भोग रहे हैं किंतु शासन के शीर्ष पर रहने वाले मुख्य सचिव तो आई ए एस की आपसी खींचतान में खो सा गए हैं।हाँ इनकी जगह अब इस योगी सरकार में अपर मुख्य सचिव गृह का डंका बजता है।मुख्यमंत्री जी इनकी हर सलाह पर अमल करते है।इनकी सलाह पर सरकार कितनी तरक्की कर रही है मसलन उत्तर प्रदेश कितना विकास कर रहा है यहां पर यह चर्चा करना बेमानी है या मैं चर्चा नही करना चाहता हूँ क्यों कि इनके आदेश पर या इनके सलाह पर मुख्यमंत्री की इच्छा पर पूरी मीडिया को घुटनों के बल पर मुर्गा बना दिया गया है।
सरकार और अपर मुख्य सचिव गृह का कार्यकाल अब दो ढाई साल और बचा है जो समाप्त ही होगा।सरकार की वापसी होगी की नही कह नही सकता हूँ।मगर साहब की वापसी रिटायरमेंट के बाद तो होने वाला नही है।कहते हैं कि जो बोइयेगा वही कटियेगा।(इस पर नई सरकार की वापसी के बाद लिखूंगा)
वर्तमान में जिस तरह पत्रकारों को घुटनों के बल मुर्गा बनाया गया है वह कब बाग देना शुरू करेंगे यह तो वक्त बताएगा।मीडिया का यह काल इतिहास के काले पन्नो में लिखा जाएगा।
पत्रकारों पर अधिकारी के आदेश से या मुख्यमंत्री को अधिकारी की सलाह पर उनका उत्पीड़न हो रहा है इतिहास इसका जवाब जरूर देगा।
मीडिया जगत इस समय अपने अस्तित्व को बचा नही पा रहा है।दिनों दिन मीडिया पर सामाजिक,आपराधिक एवम आर्थिक हमला हो रहा है।
इस उत्पीड़न और आर्थिक हमले में केंद्र सरकार भी पीछे नही हैपूरा मीडिया जगत अभी विज्ञापन नीति 2016 से निपट और उबर भी नही सका था कि 1 अगस्त 2020 से उसके उपर विज्ञापन नीति 2020 को और गुरुतर लाद दिया गया है।
समय!समय सब कुछ झेल लेता है,समय सब पीड़ा हर भी लेता है।मारने वाले से ज्यादा बचाने वाले को ही इतिहास याद करता है।
इस समय जो अधिकारी कोरोना काल में पत्रकारों के पेट पर लात मार रहे हैं वक्त उनकी पीठ पर वह लात मरेगा कि वह घुटनों के बल चल भी नही पाएंगे तब यही घुटनों के बल मुर्गा बनाये गए पत्रकार  हुंकार भरेंगे और इन अहंकारी सत्ता,शासन नशीनों को इतिहास में जगह भी नही मिलेगा।इनका नाम लेवा भी कोई नही होगा।
कहते हैं कि फाइल कभी दबती नही है फाइल अंदर ही अंदर सुलगती है और जब बाहर आती है तो लुक्कारे की तरह जलती है जिसमें आतताई भस्म हो जाते हैं।
आवाज दो हम एक हैं।सारे पत्रकारों,पत्रकार संगठनों से विनम्र निवेदन और अनुरोध है कि एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपने अस्तित्व की लड़ाई में एक होकर पत्रकार समाज को बल प्रदान करें।