भाजपा किसान के बजाय कारपोरेट घरानों कि हितैसी -अखिलेश यादव

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राजेन्द्र चौधरी

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को बदहाल बना दिया है। गरीब मध्यवर्गीय जनता मंहगाई और भाजपा कुशासन के बीच पिस रही है। पर्यावरण प्रदूषण के बहाने किसानों को पराली जलाने के अभियोग में जेल का भय सता रहा है। भाजपा किसानों का लगातार उत्पीड़न किसी न किसी बहाने करती रहती हैं दरअसल, भाजपा किसान के विरूद्ध इसलिए रहती है क्योंकि वह जानती है कि किसान उसका वोट बैंक नहीं है।

भाजपा किसान के बजाय कारपोरेट घरानों का पोषण करती है। वह किसान की खेती को भी पूंजीघरानों या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में भी सौंपना चाहती है। कृषि विधेयक लाकर भाजपा ने किसान विरोधी अपनी भावना प्रदर्शित कर दी है। इस सबके बावजूद मुख्यमंत्री जी को उत्तर प्रदेश के उद्यम प्रदेश बनने का सपना आ रहा है भाजपा सरकार राज्य को उजाड़ कर अब लोगों को गुमराह करने के लिए व्यर्थ ही उछलकूद कर रही हैं। मंहगी बिजली लोगों को रूला रही है।

किसान को धान खरीद के सही दाम नहीं मिल रहे हैं। गन्ना पेराई शुरू हो गई है पर किसान को पिछला बकाया भी नहीं मिला है और न ही नये सत्र के लिए गन्ना मूल्य घोषित हुआ। पराली जलाने के आरोप में लगभग हजारों किसानों के खिलाफ मुकदमों की नोटिसें जारी हुई हैं। किसान की पराली के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था भाजपा सरकार ने नहीं की। किसान फिर अपनी अगली फसल की बुवाई के लिए खेत कैसे तैयार करे। किसान को समय से खाद नहीं मिल रही है। यूरिया मंहगी है। उसमें भी 5 किलो खाद कम होती है।

बिजली संकट अलग है। उन्हें कोई रियायत नहीं मिल रही है। तमाम परेशानियों से जूझ रहे किसान कहीं कोई उम्मीद न देखकर अंततः आत्महत्या को मजबूर हो जाता हैं। पराली प्रबंधन की जो बातें है भी वे हवा में की जा रही हैं। पर्यावरण प्रदूषण का शोर मचाने वाले राजनीतिक प्रदूषण फैलाने वालों पर कब शिकंजा कसेंगे?.

   जनता अपनी रोजमर्रा की तकलीफों में ही काफी हद तक उलझी हुई है। उस पर सरकार की निष्क्रियता जले पर नमक का एहसास कराती है। सरकार जिस भाजपा सरकार के खिलाफ जवान और किसान है तब समझना चाहिए कि दम्भी सत्ता के गिने चुने दिन ही शेष रह गए हैं। जनता का आक्रोश सन्2022 में ईवीएम मशीनों के बटन दबाकर और भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाकर ही शांत होगा।