न्यायमूर्ति श्री देवी प्रसाद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘राम राज्य आधुनिक परिवेश में’’

169

न्यायमूर्ति श्री देवी प्रसाद सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘राम राज्य आधुनिक परिवेश में’’ की समीक्षा
लेखक/समीक्षक – डा मुरलीधर सिंह, उप निदेशक सूचना अयोध्या मण्डल अयोध्या
एमएससी (मानव विज्ञान) एलएलबी प्रयाग विश्वविद्यालय प्रयाग एवं विद्या वाचस्व पति (संस्कृत विश्वविद्यालय काशी) (मो0 व व्हाट्सएप नम्बर- 7080510637, 9453005405)।

डा0 मुरलीधर सिंह

मा0 अयोध्या धाम के वरदपुत्र न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह पूर्व न्यायमूर्ति मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं सदस्य/विभागध्यक्ष सशस्त्रबल न्याधिकरण क्षेत्रीय बेंच (उत्तर प्रदेश उत्तराखंड) लखनऊ द्वारा श्रीराम जन्मभूमि के विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 9 नवम्बर 2019 के बाद न्यायिक पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथा आधुनिक परिवेश को समाहित करते हुए यह न्यायमूर्ति के द्वारा 331 पृष्ठ की यह पुस्तक लिखी गयी है। इसकी भूमिका नीलकंठ पुरम तिरुअंनन्तपुरम केरल के प्रसिद्ध संत श्री शक्ति शतानंद महर्षि द्वारा लिखा गया है। जो उत्तर दक्षिण की एकता का जो भगवान राम का विशिष्ट कार्यक्षेत्र रहा है। परिचय देता है।


अयोध्या का वेदशास्त्र पौराणिक काल त्रेतायुग तक एक अलग पहचान थी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के राज्यकाल में इसका सवोत्कृष्ठ वैभव प्राप्त था और इस नगरी का पूरे विश्व पर आये हुए संकट के निवारण में महान योगदान था क्योंकि भगवान राम ने हमेशा कठिन संकट और परिस्थितियों में भी धर्म की स्थापना हेतु कार्य किया। जो अयोध्या हमेशा केन्द्रबिन्दु रही। उनके शासन काल के अंतिम चरण में साकेतगमन के समय वहां के सभी देहधारी सदेह रुप से उनके धाम में पधार गये थे तब अयोध्या बंजर हो गयी थी और उनके पुत्र लव एवं कुश को राज्यभार दिया था जिन्होनें कोशल राज्य का और विकास किया था। अयोध्या का उत्तरोत्तर विकास होता रहा लेकिन मुस्लिम काल में इसके आधुनिक स्वरुप का दर्शन होता है। इसकी स्थापना चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा किया जाने का उल्लेख है। मुगल काल में अनेक आक्रान्ताओं द्वारा इसका विध्वंस किया गया। अवध के नवाबों के सलाहकार द्वारा इसका पोषण किया गया। इसमें सलाहकार श्री टिकैतराय का नाम आता है। जिन्होनें वर्तमान हनुमानगढ़ी के स्वरुप को तत्कालीन नवाब की मद्द से देने का काम किया था। उसी के साथ साथ सुग्रीव किला, मणि पर्वत, मतगजेन्द्र, दशरथ महल, विभीषण कुंड, वशिष्ट कुंड, लक्ष्मण किला आदि प्रमुख केन्द्र है। रामजन्मभूमि स्थान पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद न्यायिक दृष्टि से एवं प्रशासनिक दृष्टि से इस पुस्तक के पृष्ठ 62 से 65 तक किया गया है। जो प्रथम बार किसी न्यायमूर्ति के द्वारा इसके न्यायिक एवं प्रशासनिक पक्ष का उल्लेख किया गया है। इसलिए यह पुस्तक अपने आप में अद्वितीय है। न्यायमूर्ति के द्वारा शिष्टाचार वश मुझे मुलाकात के समय उन्होने अपने आवास पर यह पुस्तक दिया तथा बताया कि यह पुस्तक न्यायामूर्तियों आदि के अलावे महामहिम राष्ट्रपति जी, प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी आदि को प्राप्त हो गयी है तथा मेरा प्रयास है कि यह पुस्तक सभी के हाथ में जाय और वर्तमान अयोध्या को राम राज्य की परिपेक्ष्य में समझने में मद्द करे। मेरा जहां तक मानना है न्यायमूर्ति जी से मेरा परिचय 2006 से है। जब मैं सूचना विभाग की तरफ से न्याय विभाग के प्रचार प्रसार के लिए सूचना अधिकारी के रुप में सम्बंद्ध किया गया था। मै लगभग आठ साल इस कार्य को किया और मुझे अच्छी तरह से याद है इन न्यायमूर्ति के साथ माननीय उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच के शिलान्यास कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री केजी बालाकृष्णन जी के कार्यक्रम में तथा इसके उद्घाटन के समय माननीय मुख्य न्यायमूर्ति सर्वोच्च न्यायालय श्री दीपक मिश्रा के कार्यक्रम में भी उपस्थित हुआ था। अनेक कार्यक्रमों मंे जाने का सौभाग्य मिला और न्यायिक अधिकारियों के न्यायिक प्रक्रिया को भी समझने का मौका मिला जिसमें न्यायमूर्ति श्री सिंह के द्वारा अपने समस्त निर्णयों में रामायण काल, महाभारत काल, वैदिक काल का उल्लेख मिलता रहा है तथा इसके विशाल पुस्तकालय को भी देखने का मौका मिला जिसमें भारत का ऐसा कोई हिन्दू धर्म शास्त्र का ग्रन्थ नहीं है जो इसमें न हो। उनके पुस्तकालय में 27 प्रकार के रामकथा पर आधारित रामायण भी देखने को मिला जो भारत के उत्तर दक्षिण के भाषाओं के साथ साथ फारसी जापानी, चीनी आदि भाषाओं में है। इससे प्रमाणित होता है कि भगवान राम चरित्र विस्तार ऐशिया महादेश के बाहर अन्य महादेशों में अर्थात पूरे भूमण्डल पर था। इस पुस्तक को पढ़ने पर अयोध्या के जागीरदारों, जमीनदारों की भी जानकारी मिलेगी तथा उनके न्यायिक प्रक्रिया एवं अयोध्या के वर्तमान स्वरुप में अंग्रेजो द्वारा स्थापित की गयी न्यायिक व्यवस्था को एवं विभिन्न प्रकार के न्यास/ट्रस्ट के वास्तिविक उत्तराधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों के नियंत्रण/देखरेख का भी मौका मिलेगा। इस पुस्तक में जहां अयोध्या के कल और आज का उल्लेख है वहीं इसके विधि दण्ड न्याय युद्ध और शांति, नारी का स्थान, राम राज्य तथा राम के वंशजों आदि का उल्लेख है। इस पुस्तक में श्रीमद्भागवत, एवं महाभारत के भी अंश लिये गये है जिसमें भगवान राम के वंश के बीसवें पीढ़ी में महाभारत काल में कौरव सेना के तरफ से लड़ते हुए जयभद्र राजा का उल्लेख है। जो महाभारत के पाण्डव खण्ड/शांति पर्व में उल्लेख किया गया है। इनकी मृत्यु अभिमन्यु से युद्ध के दौरान हुई थी।
मेरा मानना है कि 15 अध्याय एवं 321 पृष्ठो वाली रामराज्य आधुनिक परिवेश में नामक लिखी गयी न्याय मूर्ति द्वारा यह पुस्तक अयोध्या के वैदिक पौराणिक मध्य कालीन अंग्रेजी शासन एवं वर्तमान शासन के स्वरुप को समझाने में न्यायिक दृष्टि से कारगर होगी जो हमारे विद्वत जन इसका लाभ उठायेंगे एवं आगामी दिनों में हमारे देश के प्रधानमंत्री जी का आगमन प्रस्तावित है उस  आगमन  के पश्चात अयोध्या विश्व पटल पर अपना सवोत्कृष्ठ स्थान पुनः स्थापित करने में कामयाब होगी। हम अयोध्या वासियों का अयोध्या वासियों व यहां के संस्थानांे का गौरव भी बढ़ेगा।