लखनऊ में तीन नगर निगम हों: विचार मंच

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   लखनऊ, आज बुद्धिजीवियों की पुरानी एवं महत्वपूर्ण संस्था ‘विचारमंच’ द्वारा कोरोना की बंदिशों के कारण दूरभाष पर अपनी नियमित संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें ‘लखनऊ नगर निगम का विभाजन’विषय पर विचार व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने कहा कि लखनऊ नगर का क्षेत्र इतना अधिक विस्तृत हो गया है कि यहां उत्तरी, दक्षिणी एवं गोमतीपार क्षेत्रों के लिए तीन स्वतंत्र नगर निगमों का गठन किया जाय। तीनों नगर निगमों के महापौर एक हों, जो लखनऊ के महापौर कहलाएं। इसके साथ ही महापौर के अधिकारों में काफी वृद्धि की जाय, क्योंकि वर्तमान समय में महापौर की स्थिति ‘दंतहीन शेर’-जैसी है।
     मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार पीबी वर्मा ने कहाकि लोकतंत्र का मूल आधार स्थानीय प्रशासन होता है, जो नागरिकों की समस्याओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है। विदेशों में महापौर बहुत अधिकारसम्पन्न होते हैं तथा उनकी बड़ी प्रतिष्ठा होती है। किन्तु हमारे यहां ऐसा नहीं है।इसलिए नगर निगमों को अधिक साधनसम्पन्न बनाया जाना चाहिए तथा महापौरों को अधिक    अधिकार दिए जाने चाहिए।

वर्तमान स्थिति यह है कि सारे प्रशासनिक अधिकार नगर आयुक्त के पास होते हैं तथा महापौर केवल शोभा की वस्तु होकर रह जाते हैं। उदाहरणार्थ डायमंडडेरी काॅलोनी कल्याण समिति के वर्षाें से बार-बार अनुरोध के बावजूद काॅलोनी की दुर्दशा को दूर नहीं किया जा रहा है। पार्क जर्जर हो रहे हैं। सर्फा की ठीक व्यवस्था न होने के कारण बीमारियां फैल रही हैं तथा सेनेटाइजेशन भी नहीं कराया जा रहा है। तीन नगर निगमों के बनने से नगर आयुक्तों की दादागिरी नहीं चलेगी तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा।
      संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पत्रकार श्याम कुमार ने कहाकि लखनऊ ही नहीं, कानपुर, वाराणसी, आगरा-जैसे अन्य जो बहुत बड़े क्षेत्रफल वाले महानगर हैं, वहां भी एक से अधिक नगर निगम बनाए जाने चाहिए। महानगरों में हर नगर निगम का मुखिया अलग-अलग नगर आयुक्त हो। किन्तु पूरे महानगर में महापौर एक ही होना चाहिए, जिसके अंतर्गत उस महानगर के सभी नगर निगम हों।
महापौर अधिक अधिकारसम्पन्न होने चाहिए। जब हेमवतीनंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अपने गृहनगर प्रयागराज के नगर प्रमुख(अब महापौर) रामजी द्विवेदी को व्यवहार में इतना अधिकारसम्पन्न कर दिया था कि नगर प्रमुख की गरिमा बहुत बढ़ गई थी। उस समय नगर प्रमुख रामजी द्विवेदी मंडलायुक्त, जिलाधिकारी आदि बड़े-बड़े अफसरों के पास स्वयं नहीं जाते थे, बल्कि आवश्यकतानुसार उन्हें अपने पास तलब करते थे।


       वरिष्ठ मजदूर नेता एवं राजनीतिक विश्लेषक सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने कहाकि लखनऊ नगर का क्षेत्रफल बहुत बढ़ जाने से उसका आकार अब इतना बड़ा हो गया है कि एक नगर आयुक्त के संभाले नहीं संभल रहा है। वह बस लकीर पीट रहे हैं और आंकड़ेबाजी करते हैं। परिणाम यह है कि लखनऊ नगर निगम गंभीर भ्रष्टाचारों में आकंठ डूबा हुआ है, जिससे नगर व नगरवासियों का भीषण नुकसान हो रहा है। नगर के कल्याण एवं विकास के काम तो दूर रोजमर्रा के नियमित कार्य भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहे हैं। नगर निगम में कुछ इंजीनियरों, ठेकेदारों, पार्षदों, कर्मचारियों आदि का जो काॅकस बना हुआ है, नगर निगम का अधिकांश धन उस काॅकस की जेब में जा रहा है।
       उपेन्द्र शुक्ल, कैलाश वर्मा, अतुल मोहन सिंह, राजू यादव आदि पत्रकारों तथा सुशीला मिश्र, डाॅ. सूर्यभानु सिंह गौतम, अनुरक्ति मुद्गल,शौकत अली, रुकैया परवीन, डाॅ. अजय दत्त शर्मा, कमलेश कुमार पांडेय, कुमार अशोक पांडेय, महर्षि इंद्रप्रकाश, रामलखन यादव, मुरलीधर सोनी आदि समाजसेवियों ने नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार की किसी स्वतंत्र ईकाई से गहन जांच कराए जाने की मांग की।
      (श्याम कुमार)
                                                      अध्यक्ष