वर्षा जल का पूर्ण संचयन हो…..

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श्याम कुमार
लखनऊ। स्वर्गीय चन्द्रभानु गुप्त द्वारा स्थापित बुद्धिजीवियों की पुरानी एवं प्रतिष्ठित संस्था ‘विचार मंच’ द्वारा ‘वर्षा जल का सदुपयोग’ विषय पर फोन-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने कहा कि हमारे यहां जल-संकट बहुत गंभीर रूप लेता जा रहा है तथा भूमिगत जल-स्तर बड़ी तेजी से नीचे जा रहा है। वर्षाकाल में हमारे यहां पर्याप्त बारिश होती है, किन्तु हमारी नासमझी के कारण बरसात का सारा पानी व्यर्थ बह जाता है। अतः वर्षा के उस जल का ठोस उपायों द्वारा समुचित संचयन किया जाना चाहिए।मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार पीबी वर्मा ने कहा कि कई दशकों से विशेषज्ञ वर्षा जल के समुचित संचयन का सुझाव दे रहे हैं तथा विभिन्न सरकारें इस बारे में योजनाएं बनाती रही हैं। लेकिन अन्य विभिन्न योजनाओं की तरह यह योजना भी कागजी होकर रह गई, जिसके परिणामस्वरूप जल-संकट निरन्तर अधिक गंभीर होता जा रहा है। यदि अभी भी हम नहीं चेते तो एक दिन हमें बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्पादक श्याम कुमार ने कहा कि वर्षा जल का संचयन अनिवार्य किया जाना चाहिए तथा इसके लिए शासन को मात्र कागजी उपाय नहीं करने चाहिए, बल्कि ठोस योजना बनाकर सभी भवनों एवं उनके आसपास के क्षेत्रों में वर्षा जल के संचयन की व्यवस्था करनी चाहिए। वर्षा जल के संचयन, सौर ऊर्जा तथा घरों में बागवानी के लिए यदि सरकार लोगों को उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता प्रदान करेगी तो ये तीनों कार्य देश के भविष्य के लिए बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे।
वर्षा जल संचयन – वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से १६० बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है।इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई  के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम २०० मिमी वर्षा होती हो। इस प्रणाली का खर्च ४०० वर्ग इकाई में नया घर बनाते समय लगभग बारह से पंद्रह सौ रुपए मात्र तक आता है।
वरिष्ठ मजदूर नेता एवं विश्लेषक सर्वेश चंद्र द्विवेदी तथा समाजसेवी सुशीला मिश्र व हरिप्रकाश ‘हरि’ ने चिंता व्यक्त की कि जमीन के नीचे जल-स्तर बहुत तेजी से सूख रहा है। हैंडपम्प लगाने के लिए पहले कुछ मीटर खुदाई करने पर ही जल मिल जाता था, किन्तु अब यह स्थिति हो गई है कि बहुत गहराई तक खुदाई करनी पड़ती है।वरिष्ठ पत्रकार राजेश राय एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अम्बिका प्रसाद तिवारी ने कहा कि सरकार की अंधाधुंध शहरीकरण नीति एवं भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप शहरों में जगह-जगह बड़ी संख्या में जो तालाब थे, उन्हें पाटकर वहां काॅलोनियां बना ली गई हैं। उक्त अवैध कृत्य के लिए कभी भी किसी को दंडित नहीं किया गया। सरकार को चाहिए कि शहरों में यदि पुराने तालाबों को पुनर्जीवित करना संभव न हो तो जगह-जगह बड़ी संख्या में नए तालाबों का निर्माण कराए। वृक्षारोपण एवं तालाबों के निर्माण मानव जीवन के भविष्य के लिए बेहद जरूरी हैं।
जल संचयन में घर की छतों, स्थानीय कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप से बनाए गए क्षेत्र से वर्षा का एकत्रित किया जाता है। इसमें दो तरह के गड्ढे बनाए जाते हैं। एक गड्ढा जिसमें दैनिक प्रयोग के लिए जल संचय किया जाता है और दूसरे का सिंचाई के काम में प्रयोग किया जाता है। दैनिक प्रयोग के लिए पक्के गड्ढे को  सीमेंट व ईंट से निर्माण करते हैं और इसकी गहराई सात से दस फीट व लंबाई और चौड़ाई लगभग चार फीट होती है। इन गड्ढों को नालियों व नलियों (पाइप) द्वारा छत की नालियों और टोटियों से जोड़ दिया जाता है, जिससे वर्षा का जल साधे इन गड्ढों में पहुंच सके और दूसरे गड्ढे को ऐसे ही (कच्चा) रखा जाता है। इसके जल से खेतों की सिंचाई की जाती है। घरों की छत से जमा किए गए पानी को तुरंत ही प्रयोग में लाया जा सकता है। विश्व में कुछ ऐसे इलाके हैं जैसे न्यूजीलैंड,जहां लोग जल संचयन प्रणाली पर ही निर्भर रहते हैं। वहां पर लोग वर्षा होने पर अपने घरों के छत से पानी एकत्रित करते हैं।
कमलेश कुमार पांडेय, कुमार अशोक, डाॅ. अजय दत्त शर्मा, रुकैया परवीन, शौकत अली, अली मेहदी रिजवी, गोपाल कौशल, रामपदार्थ गुप्त, ओमप्रकाश शर्मा, सैयद मुईद अहमद, डाॅ. सूर्यभानु सिंह गौतम, विनोद कुमार पासी आदि वक्ताओं ने मांग की कि सरकार वर्तमान वर्षाकाल को व्यर्थ न जाने दे तथा वर्षा-जल के संचयन का कार्यक्रम युद्धस्तर पर कार्यान्वित करे। वर्तमान वर्षाकाल में भूमिगत जल-स्तर पूरी तरह सही कर लिया जाना चाहिए।