साहब के डॉगी का बर्थडे-श्याम कुमार

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आज साहब के लाडले डॉगी का बर्थडे है। एक साल पहले उसे साहब के एक बिल्डर मित्र बहुमूल्य उपहार के रूप में भेंट कर गए थे, इसलिए आज का दिन साहब ने डॉगी का जन्मदिन माना और बर्थडे पार्टी का आयोजन किया। सुबह से बधाई के फोन आने लगे थे। साहब उस समय नित्यकर्म में व्यस्त थे, इसलिए स्टाफ बधाई देने वालों के नाम रजिस्टर में नोट कर रहा था। लोग सहेज रहे थे कि साहब को जरूर बता देना। धीरे-धीरे तमाम लोग केक या मिठाई के डिब्बे लिए हुए सषरीर भी उपस्थित होने लगे। ‘साहब अभी बाहर आने वाले हैं’ कहकर स्टाफ सबको दालान व लॉन में लगी कुरसियों पर बिठाने लगा। बरसात की आषंका को ध्यान में रखकर लॉन में वाटरप्रूफ पंडाल लगाया गया था। सभी आगंतुकों को जूस और स्नैक्स पेष किए जा रहे थे। अनेक लोग बडे़-बड़े गिफ्ट पैकेट लेकर आए थे। यही तो सुनहरा मौका होता है साहब की नजरों में चढ़ने का! तभी साहब बाहर निकले। ‘कांग्रेचुलेषंस’ और ‘थैंक्यू’ से वातावरण गमक उठा। साहब के कपड़ों से विदेषी सेंट की खुषबू माहौल को और भी खुषनुमा बना रही थी।

साहब अपने को खुदा से कम नहीं समझते हैं। क्यों न समझें, उनकी जबरदस्त तूती जो बोल रही है! वह जिसकी ओर मुस्कुराकर देख लें, वह धन्य हो जाता है। वैसे तो अहंकार के कारण साहब का चेहरा हमेषा तना रहता है, किन्तु आज उनके खूसट चेहरे पर मृदु मुस्कान विराजमान थी। आगंतुकों का श्रद्धाभाव देखकर साहब गद्गद थे। एक सेवक आए उपहार भीतर ले जाकर रखने लगा। पहले बड़ी मेज पर सजाया गया, जब वह भर गई तो दूसरी मेज लाई गई। वह भी भर गई तो जमीन पर करीने से लगाया जाने लगा।

डॉगी बड़े कौतूहल से यहसब देख रहा था। ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’ की तरह वह समझ नहीं पा रहा था कि किस पर भूंके और किस पर दुम हिलाए! साहब के चेहरे पर नायाब मुस्कान देखकर वह खुषी से कभी-कभी दुम हिला लेता था। उसे अंदाज नहीं था कि यह उत्सव उसके लिए हो रहा है, क्योंकि उसकी ओर तो कोई ध्यान दे नहीं रहा था। सब साहब के चरणों पर बिछे जा रहे थे। तभी डॉगी उठा और टांग उठाकर एक कुरसी के पाए को तर करने लगा। एक श्रद्धालु बोला- ‘अपने डॉगी जी कितना सुंदर सूसू कर रहे हैं!’ तुरंत उस श्रद्धालु के समर्थन में अन्य श्रद्धालु भी चहक उठे। साहब को आषंका हुई कि कहीं कोई अधिक श्रद्धा में उस सूसू का आचमन न करने लगे, अतः उन्होंने एक सेवक को इषारा किया, जिसने फर्ष पर फैला सूसू साफ किया और डॉगी को ले जाकर उसके गद्दे पर बिठा दिया। तभी एक आगंतुक ने ‘हैप्पी बर्थडे’ कहते हुए उसके गले में माला पहना दी। डॉगी चौंका और सोचने लगा कि यह उसका पिछले जन्म का कोई नजदीकी रिष्तेदार तो नहीं!
उसी समय आगंतुकों में से किसी ने सुझाव दिया कि आज बर्थडे पर डॉगी जी का नामकरण हो जाय। समर्थन के साथ कई नाम सुझाव में आने लगे। पर साहब मौन रहे, क्योंकि सारे नाम देषी थे, जो उनके लाडले डॉगी की गरिमा के अनुकूल नहीं थे। एक महाषय ने ‘पप्पू’ नाम सुझाया तो कई लोग बोल पड़े कि यह नाम बहुत बदनाम हो गया है और महामूर्ख का पर्याय बन गया है। अपने डॉगी जी तो बड़े जीनियस हैं। ‘पप्पू’ नाम खारिज होते ही किसी ने सुझाव दिया-‘एंटोनियो’, जिसे प्यार से ‘अंटू’ भी पुकारा जा सकेगा।

साहब की उंगली उठी, जिसका आषय था कि यह नाम उन्हें पसंद आया। तुरंत सुझाव देने वाले पर बधाइयां बरसने लगीं और सब लोग साहब की पसंद से अपने को जोड़ने लगे। एक बोला-‘हमारे गोरेचिट्टे डॉगी जी पर यह नाम खूब फबेगा।’ तब तक कोई बोला कि ‘केक सेरीमनी पूरी कर ली जाय।’ साहब ने स्वीकृति में सिर हिलाया। लोगों को जिज्ञासा थी कि साहब किसका लाया केक चुनते है? जिस केक की ओर साहब ने इषारा किया, उसे लाने वाला गदगद हो गया और खुषी से उसकी आंखें नम हो उठीं। अन्य केक लाने वालों ने मन ही मन अपने भाग्य को कोसा। फूंक मारकर केक पर लगी हुई मोमबत्ती बुझाई गई, जिसके साथ ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ के बोल गूंज उठे। सारा स्टाफ, दरबान, पुलिसवाले भी अटेंषन होकर ऐसा स्वर में स्वर मिलाने लगे, जैसे राश्ट्रगान कर रहे हों। सबके मुंह में साहब का जूठा केक का टुकड़ा लगाया गया। बेचारा डॉगी टुकुर-टुकुर ताक रहा था। उसने भी ‘भों-भों’ कर साथ देना चाहा, लेकिन यहां पर अवतरित होने के बाद वह इतने दिनों में यह तो समझ ही गया था कि उसका साहब कोई बहुत बड़ा आदमी है, जिसके सामने सारे बिना दुम वाले दुम हिलाते रहते हैं। फिर भी उसने अपनी छोटी-सी दुम हिलाई और ‘भों भों’ के बजाय ‘कूं-कूं’ से हैप्पी बर्थडे में साथ दिया।

‘केक सेरीमनी’ के बाद किनारे लगी मेजों पर षानदार लंच का इंतजाम था। एक हास्यकवि ने ऐसी बुफे दावत को ‘कुकुरभोज’ नाम दिया था। अब तक साहब के स्तर के तमाम लोग भी आ चुके थे। कुछ ने मोटे लिफाफे थमाए तो कुछ अन्य प्रकार के बहुमूल्य उपहार लाए थे। ‘कुकुरभोज’ षुरू होते ही सब उस पर टूट पड़े। आगंतुक बड़े साहबों के लिए भीतर आलीषान हॉल में इंतजाम किया गया था। टाई लगाए हुए स्मार्ट बेयरे बड़े अदब से मेहमानों का ख्याल रख रहे थे। कैटरिंग का मालिक देखरेख के लिए खुद मौजूद था, ताकि साहब को खुष करने में कोई कमी न रह जाय। आखिर उनकी खुषी पर ही तो उसका भविश्य टिका है।

आगंतुक बड़े लोगों की कारों के ड्राइवरों के लिए बाहर सड़क के किनारे मेजें लगाकर खाने का इंतजाम किया गया था। हर कोई भोज की जमकर तारीफ कर रहा था और साहब का दिल बहुत बड़ा होने का सर्टिफिकेट उछाल रहा था। पूरे परिसर में व्यंजनों की खुषबू छायी थी, जो डॉगी जी के नथुनों तक पहुंच रही थी। वह दुम हिलाकर ‘कूं कूं’ करते हुए बार-बार ललचाई नजर से लोगों की ओर देख लेते थे कि षायद कोई उन पर भी इनायत कर दे। धीरे-धीरे सारा मजमा विदा हुआ। तब साहब का ध्यान डॉगी की ओर गया और कैटरर को हुक्म मिला कि थोड़े-थोड़े सारे व्यंजन डॉगी के सामने पेष किए जाएं। उन व्यंजनों को सामने पाकर डॉगी जी तो खुषी से झूमे ही, उनसे अधिक उनकी दुम झूमने लगी। अगले दिन सारे अखबारों में साहब के डॉगी की बर्थडे एवं नामकरण पार्टी का सचित्र विवरण विस्तार में प्रकाषित हुआ।