हिंदुओं में विवाह रात्रि में क्यों….?

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राजेश कुमार यादव

हिंदुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे ? क्या कभी आपने सोचा है कि हिंदुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे जबकि हिंदुओं में रात में शुभ कार्य करना अच्छा नहीं माना जाता! क्योंकि यह समय 19 आर्चरी समय होता है! रात को देर रात तक जगना सुबह को देर तक सोते रहना राक्षसी प्रवृति बताया जाता है! रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं ! केवल तंत्र सिद्धि करने वाले को ही रात्रि में हवन वह यज्ञ करने की अनुमति है! जैसे प्राचीन समय में ही सनातन धर्म हिंदू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिंदुओं में रात की विवाह की परंपरा कैसे पड़ी कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं। दरअसल भारत में सभी उत्सव। सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही किए जाते थे। चुकी यह सनातनी परंपरा है सीता और द्रोपती का स्वयंवर भी दिन में हुआ था।

शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर {जोकि बाद में पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण }आदि सभी शुभ कार्य दिन में ही होते थे।प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही हिंदुओं को अपनी कई प्राचीन परंपराएं तोड़ने को विवश होना पड़ा था। मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किए गए या आक्रमणकारी हिंदुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे।

अकबर के शासन काल में जब अत्याचार चरम सीमा पर थे ।मुगल सैनिक हिंदू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे` उन्हें अपने आकाओं को सब देते थे `भारतीय इतिहास में सबसे पहले पहली बार रात्रि में विवाह सुंदरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था। जिनका विवाह दूल्हा भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राम्हण युवकों से कराया था ।उस समय दूल्हा भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाए थे ।दूल्हा भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर उनका हिंदू लड़कों से विवाह कराया था। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों की आतंक से बचने के लिए हिंदू रात के अंधेरे में विवाह करने पर मजबूर होने लगे ।लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है की नाचना गाना दावत जय माल आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मंत्रों के साथ फेरे प्रातः में ए फटने के बाद ही हो।

पंजाब से प्रारंभ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया। फिर लाहौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह रात हो जाने के बाद उनकी सेना पर हरि सिंह नलवा ने सनातन वैदिक परंपरा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनकी सुरक्षा देने की घोषणा की थी।हरि सिंह नलवा के संरक्षण में हिंदुओं ने दिनदहाड़े बैंड बाजे के साथ विवाह शुरू की तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचलन शुरू हुआ| पंजाब में आज भी अधिकांश विवाह दिन में ही होते हैं। महाराष्ट्र तमिल नाडु` आंध्र प्रदेश` कर्नाटक `केरल` असम` मणिपुर` नागालैंड` त्रिपुरा एवं अन्य राज्य धीरे धीरे अपने पड़ोसी की ओर लौटने लगे इन प्रदेशों में विवाह दिन में होने लगे।

शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। विवाह के ये प्रकार हैं- ब्रह्म, दैव, आर्य, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। इसके बाद दैव विवाह और आर्य विवाह को भी बहुत उत्तम माना जाता है। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है।

हरि सिंह डलवाने मुसलमान बने हिंदुओं की घर वापसी कराई `मुसलमानों पर जाजिया कर लगाया। हिंदू धर्म की परंपराओं को फिर से स्थापित किया। इसलिए उनको पुष्प मित्र संधू का अवतार कहा जाता है| सभी विवाह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त में ही संपादित किए जाते हैं। ध्रुव तारा को स्थिरता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है `जो ब्रह्म मुहूर्त में ही सबसे अच्छा दृष्टिगोचर होता है। लेकिन साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता है। इसलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है `आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में रात्रि विवाह का खंडन किया किया है । पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी हिंदू गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही संपन्न किए जाते हैं ।आज भी हम भारत के लोग खासकर उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश एवं बिहार के लोग जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से चले गए किंतु आज भी उससे परंपरा मानकर चला रहे हैं। हम गुलामी मानसिकता से उबर ना ही नहीं चाहते हैं। अतः हमको विचार करके पुणे अपने वापसी धुरी पर लौटना पड़ेगा, तभी हमारा विकास होगा।यह लेख काव्य से संग्रह कर कर लिखा गया।

विवाह के प्रकार

1. ब्रह्म विवाह

दोनो पक्ष की सहमति से किसी सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ‘ब्रह्म विवाह’ कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का “पूर्वायोजित विवाह (Arranged Marriage) ‘ब्रह्म विवाह’ का ही रूप है।

2. दैव विवाह

किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना ‘दैव विवाह’ कहलाता है।

3. आर्श विवाह

कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना “आर्श विवाह” कहलाता है|

4. प्रजापत्य विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना ‘प्रजापत्य विवाह’ कहलाता है।

5. गंधर्व विवाह

परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना ‘गंधर्व विवाह’ कहलाता है।दुष्यंत  ने शकुंतला से ‘गंधर्व विवाह’ किया था। उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष बना।

6. असुर विवाह

कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना ‘असुर विवाह’ कहलाता है।

7. राक्षस विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना ‘राक्षस विवाह’ कहलाता है।

8. पैशाच विवाह

कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना ‘पैशाच विवाह’ कहलाता है।