लखनऊ जेल मे फिर मिला 1.16 लाख

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लखनऊ जेल मे फिर मिला 1.16 लाख रुपये,आठ माह पहले गल्ला गोदाम से मिला था 35 लाख रुपयाशिकायत की जांच करने गए डीआईजी जेल को मिला बक्सा।

राकेश यादव

लखनऊ। राजधानी की जिला जेल के वीवीआईपी सर्किल की बैरक से एक बक्सा मिला, जिसमें एक लाख 16 हजार रुपए की नकद धनराशि बरामद हुई है। सूत्रों के मुताबिक इस मामले को भी पुराने 35 लाख बरामदगी के मामले जैसे ही निपटाने की तैयारी है। यह बरामदगी पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर की शिकायत पर जांच करने गए डीआईजी जेल की जांच के दौरान हुआ। उधर डीआईजी ने कहा कि बक्से में नोट नहीं कूपन मिले है।

सात माह तक जेल में बंद रहने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार ने लोकायुक्त से जेल में दैनिक उपयोग व खानपान की वस्तुओं को मनमाने दामों पर बेंचे जाने की शिकायत की थी। इसकी जांच विभाग के डीजी जेल आनंद कुमार ने लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी शैलेंद्र मैत्रेय को सौंपी थी। बताया गया है कि डीआईजी जेल शैलेंद्र मैत्रेय मंगलवार को शिकायत की जांच करने के लिए जिला जेल पहुंचे। सूत्रों का कहना है कि डीआईजी के जेल पहुंचते ही इसकी सूचना वीवीआईपी तीन नंबर सर्किल में पहुंच गई। आनन-फानन में सुरक्षाकर्मियों ने नम्बरदार कैदियों के माध्यम से अवैध सामान हटवा दिया।

पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने की थी यह शिकायत –

सात माह तक जेल की सलाखों में कैद रहकर जेल से रिहा होने वाले पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने लोकायुक्त को भेजी गई शिकायत में आरोप लगाया था कि जेल में कैदी कल्याण के तहत दैनिक उपयोग में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को मनमानें दामों पर बेंचा जा रहा है। उन्होंने कहा कि पांच रुपए का पारले बिस्किट दस रुपए में, दस रुपए का टूथ पेस्ट 20 रुपए में, 19 रुपए वाला दूध 40 रुपये में बेचा जाता है।


सूत्रों की मानें तो डीआईजी जेल को बैरक में कोई अवैध सामान तों नहीं मिला, किंतु बैरक से एक बक्सा जरूर मिला। इस बक्से में दो दिन की बिक्री की करीब एक लाख 16 हजार रुपए रखा हुआा था। डीआईजी बक्से को लेकर अधीक्षक कार्यालय पहुंचे, जहां बक्सा को खोला गया तो उसमें नोट मिले। जेल प्रशासन के अधिकारियों के पास न तो स्टॉक बुक मेनटेन मिली और न हीं सेल व लाभांश का रजिस्टर मेनटेन मिला। इसके बाद डीआईजी जेल ने कैंटीन की बिक्री के संबंध में कुछ बंदियों के बयान भी दर्ज किए। सूत्रों का कहना है कि कैंटीन प्रभारी डिप्टी जेलर सुधाकर गौतम ने बयान के लिए उन्हीं बंदियों को पेश किया, जो उनके दबाव में थे। जिससे शिकायत की पुष्टिï न हो सके। करीब तीन घंटे निरीक्षण व बंदियों के बयान लेने के बाद डीआईजी जेल वापस चले गए।