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5 बेटियां होने पर मां-बाप को सुनने पड़ते थे ताने, आज उन्हीं ने सिर किया ऊंचा- 3 हैं IAS अफसर; दो इंजीनियर।

बरेली, कहते हैं कि एक पिता का सीना तब गर्व से और चौड़ा होता है, जब वह अपने बेटे-बेटियों की बदौलत समाज में शोहरत अर्जित करते हैं, कहीं पर नज़र पड़ते ही लोग कहते हैं, इनकी बेटी तो आईएएस है, बरेली के चंद्रसेन सागर और उनकी पत्नी मीना सागर उन तमाम मां-बाप के लिए सबक हैं, जो कि बेटियों को बोझ समझते हैं। 

चंद्रसेन सागर की कुल पांच बेटियां और एक बेटा है। चंद्रसेन सागर के घर जब 5वीं बेटी पैदा हुई तो लोग ताने मारने लगे। लोगों ने कहा कि क्या अब इन्हें आईएएस बनाओगे। यह बात सच साबित हो गई। चंद्रसेन सागर की पांच में से तीन बेटियों ने यूपीएससी परीक्षा पास की। दो बेटियां आईएएस और तीसरी बेटी आईआरएस अधिकारी है। वहीं बाकी दो बेटियां भी इंजिनियर हैं। सागर परिवार ने यह संदेश देने का काम किया है कि-अगर बेटियों की परवरिश और शिक्षा-दीक्षा में कोई भेदभाव न किया जाए तो वे सफलता का परचम लहरा सकती हैं।

सागर परिवार के घर में सबसे पहली खुशखबरी 2009 में आई, जब बड़ी बेटी अर्जित आइआरएस अफसर बनीं, अर्जित ने गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी से बीटेक करने के बाद तैयारी की फिलहाल मुंबई में कस्टम डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर हैं, 2009 के बाद ठीक छठें और सातवें साल परिवार को लगातार गुड न्यूज़ मिले, जब परिवार की दो और बेटियां आईएएस बनकर निकलीं, दूसरी बेटी अर्पित को 2015 में सफलता मिली वहीं पांचवे नंबर की सबसे छोटी बेटी आकृति 2016 बैच में सफल हुई, अर्पित को गुजरात काडर मिला है, फिलहाल ठासरा की एसडीएम है, वहीं आकृति को कनार्टक काडर मिला हैं, फिलहाल उनकी गुलबर्गा में बतौर ट्रेनी मजिस्ट्रेट तैनाती है, अर्पित ने मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट इलाहाबाद से बीटेक के बाद आईआईएम कोलकाता से एमबीए किया औऱ फिर आईएएस बनीं, जबकि आकृति ने श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स दिल्ली से ग्रेजुएशन के बाद तैयारी की और आईएएस बनने का सपना पूरा किया।

चंद्रसेन सागर की तीसरे नंबर की बेटी अंशिका फैशन डिजाइनर हैं, वहीं चौथे नंबर की बेटी अंकिता भी फैशन डिजाइनिंग के बाद अब बाकी बहनों से प्रेरणा लेकर दिल्ली में सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गई हैं, चंद्रसेन की छठे नंबर के इकलौते बेटे का भी ग्रेजुएशन पूरा हो चुका है, वे भी बहनों की तरह आईएएस बनना चाहते हैं।माता-पिता को बेटियों पर गर्वचंद्रसेन सागर मूलतः बरेली के आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के मझारा गांव के रहने वाले हैं, वे खुद आईएएस-पीसीएस बनने का सपना पाले थे, गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद 1975 में बरेली कॉलेज से ग्रेजुएशन और फिल एलएलबी किए, तब प्रिलिम्स की जगह सीधे मेन एग्जाम से आईएएस-आइपीएस सलेक्ट होते थे।

मगर पहले हिंदीभाषी छात्रों के लिए इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता आसान नहीं थी, आईएएस और पीसीएस की परीक्षा में कई बार बैठे, मगर सफलता नहीं मिली, अफसर बनने का सपना पूरा नहीं हुआ तो फिर परिवार के लिए बिजनेस आदि का सहारा लेना पड़ा, इस बीच भाई सियाराम सागर सियासत में सक्रिय हो चुके थे, सियाराम पांच बार विधायक रहे उन्हें देखकर वे भी सियासत में उतर पड़े दो बार से भुता ब्लॉक के प्रमुख रहे, पहला कार्यकाल 1996 से 2001 तक और दूसरा कार्यकाल 2007 से 2012 के बीच रहा, चंद्रसेन कहते हैं कि-जब लाख कोशिशों के बाद भी वे आईएएस नहीं बन पाए तो उन्होंने बच्चों के ज़रिए अपना अधूरा सपना पूरा करने की सोची. उन्हें गर्व है कि उनकी बेटियों ने उनका अधूरा ख्वाब पूरा कर दिखाया, पहले परिवार गांव में रहता था तो वहां अच्छे स्कूल नहीं थे, इस पर परिवार ने बरेली शिफ्ट होने का फैसला किया, शहर के सबसे अच्छे सेंट मारिया गोरेटी स्कूल में बेटियों को दाखिले दिलाने की कोशिश की तीन में से एक बेटी को ही दाखिला मिल पाया।

बाद में किसी तरह से अन्य दो बेटियों का भी सेंट मारिया में एडमिशन हुआ 2016 में 24 साल की उम्र में आईएएस बनीं सबसे छोटी बेटी आकृति सेंट मारिया गोरेटी से 12वीं टॉप कर चुकीं हैं, फिर आकृति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, ग्रेजुएशन 2013 में पूरा हो गया, पहले प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंचीं मगर अंतिम रूप से सफलता दूसरे प्रयास में मिली।चंद्रसेन सागर कहते हैं कि-समाज में सचमुच बेटियों को लेकर पहले सोच अच्छी नहीं रही जब लगातार बेटियां हुईं तो कुछ लोग अल्ट्रासाउंड की सलाह देकर कहने लगे कि बेटी का पता लगते ही अबॉर्शन करा दो, पहले अल्ट्रासाउंड से लिंग जांच पर प्रतिबंध नहीं था, मगर हम किसी के बहकावे में नहीं आए, हम पति-पत्नी ने मिलकर सोचा कि बेटा हो या बेटी क्या फर्क पड़ता है, सब भगवान की देन है, आज हमें अपने फैसले पर गर्व है। जिन बेटियों के अबॉर्शन की लोग सलाह देते थे, उन्हीं बेटियों ने मेरा अधूरा सपना पूरा कर गर्व से सिर ऊंचा कर दिया, एक पिता के लिए इससे बड़ी सफलता और खुशी की क्या बात हो सकती है, आज ब्यूरोक्रेसी हो या फिर फैशन डिजाइनिंग की दुनिया उनकी पांचों बेटियां सफलता का परचम लहरा रहीं हैं।

चंद्रसेन सागर कहते हैं कि-समाज में सचमुच बेटियों को लेकर पहले सोच अच्छी नहीं रही जब लगातार बेटियां हुईं तो कुछ लोग अल्ट्रासाउंड की सलाह देकर कहने लगे कि बेटी का पता लगते ही अबॉर्शन करा दो, पहले अल्ट्रासाउंड से लिंग जांच पर प्रतिबंध नहीं था, मगर हम किसी के बहकावे में नहीं आए, हम पति-पत्नी ने मिलकर सोचा कि बेटा हो या बेटी क्या फर्क पड़ता है, सब भगवान की देन है, आज हमें अपने फैसले पर गर्व है। जिन बेटियों के अबॉर्शन की लोग सलाह देते थे, उन्हीं बेटियों ने मेरा अधूरा सपना पूरा कर गर्व से सिर ऊंचा कर दिया, एक पिता के लिए इससे बड़ी सफलता और खुशी की क्या बात हो सकती है, आज ब्यूरोक्रेसी हो या फिर फैशन डिजाइनिंग की दुनिया उनकी पांचों बेटियां सफलता का परचम लहरा रहीं हैं।