आखिर क्या हुआ नेता जी मुलायम सिंह को

109

उत्तर प्रदेश की सियासत की बात हो और समाजवादी कुनबे का जिक्र न हो ऐसा ही नहीं सकता। 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले में सैफई नामक गांव में जन्मे मुलायम सिंह ने साधारण से परिवार से निकल देश की सियासत में काफी ऊंचा कद पाया। नेताजी के नाम से लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफर जितना लंबा है उतना से विवादाें से घिरा हुआ भी। सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की एक बार रक्षा मंत्री के तौर पर देश की कमान संभाली। खुद को समाजवादी कहने वाले मुलायम सक्रिय राजनीति में एक नहीं कई बार विवादों के घेरे में आए। 

  • अपने जन्मदिन पर भी परिवार को एक नहीं कर सके मुलायम ।
  • 90 के दशक में दिग्गज नेताओं को दी पटखनी, खड़ी की नई पार्टी ।
  • नेहरु-गांधी घराने के बाद मुलायम कुनबा भी बना बड़ा राजनीतिक परिवार ।
  • पार्टीजनों के बीच रही चर्चा, नेताजी की आंखें तो कुछ और देखना चाहती हैं ।
  • चर्चाओं पर लगा विराम नेताजी के जन्मदिन पर एक ना हुआ परिवार ।


90 के दशक में घटित कुछ राजनीतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं होगा कि नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ने उस दौरान राजनीति के अखाडे में बडे व दिग्गज राजनीतिक पुरोधाओं के साथ कई परंपरावादी युवा राजनेताओं को पटखनी दी और अपने दमखम पर लोहिया के नये समाजवाद की नींव रखी। इसी आधार पर नई पार्टी बनाई और यूपी में तीन बार सीएम पद से लेकर केंद्र सरकार में रक्षा मंत्रालय जैसे अहम पद पर अपनी जगह बनायी। यानी जब तक मुलायम के सीधे देखरेख व नियंत्रण में उनकी पार्टी सपा रही, तब तक सूबे से लेकर सेंटर तक दल की साख बनी रही। लेकिन यह क्या, कहीं धरतीपुत्र तो कहीं समाजवाद के जादूगर के अलग-अलग नामों से चर्चित मुलायम रविवार को अपने जन्मदिवस पर इतने थके क्यों दिखे। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दबे जुबां यह स्वीकार किया कि दरअसल, नेताजी के माथे पर दिखती यह थकान व पीड़ा उनकी उम्र के ढलान की वजह से शारीरिक नहीं बल्कि पार्टी में उनके परिवार को लेकर चल रही रार-टकरार के चलते है। साथ ही मुलायम के साथ शुरूआती दौर से ही हर सुख-दुख में शामिल रहे कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं से जब बात की गई तो उन्हें भी इस बात का मलाल है कि भले ही नेताजी ने समाजवाद के साये में सपा पार्टी बनाई, मगर इस क्रम में वो दल को बढ़ाने के साथ-साथ अपने परिवारीजनों को भी अलग-अलग रूपों में राजनीतिक संरक्षण देते रहे। और इसी का परिणाम रहा कि अक्सर यह कहा जाता रहा कि नेहरू-गांधी परिवार के बाद शायद मुलायम परिवार की राजनीतिक श्रृंखला इतनी बड़ी है।

1996 मुलायम सिंह यादव के लिए कभी न भूलने वाला साल रहा।वो चाहकर भी इस साल को कभी याद नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि यह वही साल था, जब वो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे।मीडिया रिपोर्ट्स और कई सियासी विशेषज्ञों द्वारा दावा किया जाता है कि इस वर्ष प्रधानमंत्री पद के लिए मुलायम सिंह यादव के नाम पर मुहर लग गई थी । यहां तक कि शपथ ग्रहण की तारीख और समय सब कुछ तय हो चुका था।लेकिन लालू प्रसाद यादव अपनी बेटी की शादी अखिलेश यादव से करना चाह रहे थे।इस बात का पता जब अखिलेश को चला तो उन्होंने डिंपल से शादी की बात कही।जिस पर मुलायम ने पूरी कोशिश की,लेकिन जब अखिलेश नहीं माने तब लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने समर्थन नहीं दिया।इसके बाद मुलायम सिंह यादव की जगह एचडी देव गौड़ा का प्रधानमंत्री का शपथ दिलाया गया।

नेताजी के जन्मदिवस पर पार्टी मुख्यालय से लेकर उनके आवास तक बधाईयां देने वालों का तांता लगा रहा। मगर कहीं न कहीं मुलायम की आंखें इस बेहद खास मौके पर अपने सभी परिवारीजनों को एकसाथ और एकमंच पर देखने की दिली ख्वाहिश पाले हुए थे। यह भी अजीब स्थिति दिखी कि नेताजी को बधाई देने वालों में ट्विटर के जरिये पीएम मोदी व सीएम योगी रहे और यह सिलसिला यही नहीं थमा कांग्रेसी दिग्गज प्रमोद तिवारी व आप नेता संजय सिंह खुद उनके आवास पर जाकर उन्हें बधाई दी। रालोद के प्रमुख पदाधिकारी भी मुलायम से मिलने पहुंचे। पर जिस तस्वीर को देखने की इच्छा नेताजी के हृदय में रही, वो कहीं न कहीं अधूरी रह गई। कुछ दिन पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि अखिलेश-शिवपाल इस खास दिन गले मिल जायेंगे और मुलायम परिवार फिर से एकजुट हो जायेगा, पर आज ऐसा दूर-दूर तक नहीं दिखा। अब तो स्थिति यह दिख रही कि मुलायम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कई दिग्गज नेता और उनके प्रमुख दावेदार सपा में हाशिये पर आते जा रहें, ऐसे में चाहे पुत्र मोह कहें या फिर भ्राता प्रेम नेताजी सब कुछ जानते और समझते हुए भी जमीनी धरातल पर कोई निर्णायक भूमिका नहीं निभा पा रहे।