आख़िर क्यों कर्ज लेकर घी पी रहे हैं कारपोरेट

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कर्ज लेकर घी पी रहे हैं कारपोरेट, ईडी की नजर कारपोरेट पर क्यों नहीं। कर्ज के सहारे अडानी समूह का हो रहा विस्तार विस्तार।कंपनी मुनाफा नहीं दे रही है तो कर्ज लेकर कंपनी चला रहे हैं। ग्रोथ बढ़ाने के लिए कर्ज लिए जा रहे हैं। स्टार्टअप शुरू करने वालो को आईटी, फार्मा जैसे सेक्टर में तो कई कंपनियां आ चुकी हैं। अब ज्यादा मौके शिक्षा,मीडिया और एंटरटेनमेंट, डिफेंस और सप्लाई चेन मैनेजमेंट जैसे सेक्टर में ही हैं।

सनत कुमार जैन

बैंकों का अडानी ग्रुप पर बड़ा कर्ज बकाया है। वित्त वर्ष 2021-22 में अडानी समूह पर कर्ज बढ़ गया है और 40.5 फीसदी बढ़कर 2.21 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। जबकि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में यह 1.57 लाख करोड़ रुपये था। फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में अडानी एंटरप्राइजेज का कर्ज 155 बढ़ा है। कंपनी का कर्ज बढ़कर 41,024 करोड़ रुपये पर जा पहुंचा है। अडानी पावर और अडानी विल्मर के कर्ज में कमी आई है। अडानी पावर पर बकाया कर्ज 2021-22 में 6.9 फीसदी घटकर 48,796 करोड़ रुपये रह गई है वहीं अडानी विल्मर का कर्ज 12.9 फीसदी घटकर 2568 करोड़ रुपये रह गया है।

भारत की 286 कंपनियों पर बैंकों का भारी कर्ज है। 85 कंपनियों पर 4 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। पिछले 8 वर्षों में लगभग 10 लाख करोड़ का कर्ज बैंकों ने राइटऑफ कर अपनी बेलेन्सशीट को बेहतर बनाने का काम किया है। विगत वर्ष की तुलना में भारत का आयात-निर्यात घाटा 3 गुना बढ गया है। विदेशी मुद्रा का भंडार कम होता जा रहा है। कारपोरेट कागजों पर प्रोजेक्ट तैयार करते हैं। बैंकों से लोन लेते हैं। प्रोजेक्ट के नाम पर शेयर होल्डरों से बिना ब्याज के 10 रुपये के शेयर पर सैकड़ों रुपये का प्रीमियम लेकर जनता से पैसा लेतें हैं। सरकार से जमीनें और टेक्स की छूट लेतें हैं। खुद का कोई पैसा नहीं लगाते। प्रोजेक्ट लगाकर लागत बढ़ाकर सुनियोजित रुप से कर्ज और शेयर होल्डरों की रकम को मनमाने तरीके से खर्च करतें है। चहेतों को नौकरी पर रखते हैं। चहेतों से 2 से 3 गुना मंहगा सामान खरीदतें हैं। प्रोजेक्ट शुरु होने पर घाटा बताकर सरकार से टेक्स-शुल्क में छूट की गुहार लगाते हैं। कुछ समय के बाद कम्पनी को घाटे पर बताकर दिवालिया कानून की शरण में चले जाते हैं। पिछले 8 वर्षों से कारपोरेट जगत में यह खेल बड़े पैमाने पर शुरु हो गया है। सरकारी संरक्षण में यह खेल चरम पर पंहुच गया है। बैंकों द्वारा कारपोरेट से कर्ज की बसूली नहीं होने पर बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। यही कारपोरेट शेयर होल्डर और बैंकों के कर्ज राशि का वेतन, एवं सेल कम्पनियों के नाम पर राशि ट्रांसफर कर बड़ा घोटाला करते हैं।

अडानी समूह पर 2.20 लाख करोड़ का कर्ज-

पिछले वर्षों में अडानी समूह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता हुआ भारत का औद्योगिक संगठन है। पिछले वर्ष मार्च 2021 पर इस समूह पर 1 लाख 55 हजार 463 करोण का कर्ज था। जो मार्च 2022 में बढकर 2 लाख 20 हजार 584 करोड़ पर पंहुच गया है। सरकारी संरक्षण में पिछले वर्षों में एअरपोर्ट, पोर्ट, पावर, ग्रीन एनर्जी, गैस, टेलीकाम सेक्टर तथा देशी कंपनियों के विनिवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबार फैलाने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों से बड़े पैमाने पर कर्ज, अडानी समूह को मिला रहा है। पिछले 1 वर्ष में अडानी समूह का कर्ज 70 हजार करोड़ बढ गया है। पोर्ट बिजनेश में समूह के ऊपर वर्ष 2021 में 34, 401 करोड़ का कर्ज 2022 में 45654 करोड़ रुपया हो गया। अडानी इंटरप्राइजेज पर 2021 में 16051 करोड़ का कर्ज था। जो 2022 में बढकर 41023 करोड़ रुप्या हो गया है। ग्रीन एनर्जी पर अडानी समूह के ऊपर 2021 में 23874 करोड़ का कर्ज था। जो मार्च 2022 में बढकर 52188 करोड़ रुप्या हो गया। इसी तरह गैस सेक्टर में कम्पनी समूह का कर्ज 2021 में 684 करोड़ था। जो 2022 में बढकर 1099 करोड़ हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अडानी समूह भारी कर्ज ले रहा है। कम्पनियों के अधिग्रहण करने के लिए ग्लोबल इन्टरनेशनल बैंक से बांड के जरिए तथा निजी बैंकों से भी अडानी समूह ने भारी कर्ज ले रखा है। कर्ज की तुलना में कम्पनी का लाभ, निर्यात एवं औद्योगिक गतिविधियॉ कमजोर होने से बैकों में कर्ज वापिसी को लेकर आशंका है। आर्थिक मंदी की मार से दुनिया भर में अर्थ-व्यवस्था को लेकर कारोबार में गिरावट आ रही है। उससे भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों की चिंतायें बढ़ गई है।

एक रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रोजेक्ट में शुरुआती निवेश के लिए 19,000 करोड़ रुपये की दरकार है। अडानी समूह प्रोजेक्ट के लिए कर्ज और इक्विटी के जरिए पैसा जुटाने की योजना बना रही है। अडानी समूह की होल्डिंग कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज के जरिए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है। इससे पहले मार्च में अडानी एंटरप्राइजेज की कंपनी नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने बैंकों से 12,770 करोड़ रुपये जुटाए थे। हाल ही में कंपनी ने मुंद्रा में अपने ग्रीनफील्ड कॉपर रिफाइनरी प्रोजेक्ट के लिए 6,071 करोड़ रुपये जुटाए हैं। पीवीसी प्रोजेक्ट के लिए लोन पर अभी एसबीआई से बातचीत चल रही है।

सरकार की निकटता का लाभ-

पिछले 8 वर्षों में भारत सरकार से निकटता का लाभ अडानी समूह को मिल रहा है। बैंकों से त्रृण जल्द मिलता है। भारत में जो अंतराष्ट्रीय संस्थायें कारोबार बढ़ाना चाहती है। वह भी अडानी समूह के माध्यम से भारत में कारोबार करने के लिए अडानी समूह का सहारा ले रही है। अडानी समूह टेलीकाम एवं मीडिया के क्षेत्र में विस्तार कर रहा है। सरकारी संरक्षण के चलते अडानी समूह का आर्थिक विस्तार देश एवं दुनिया में बड़ी तेजी के साथ हो रहा है। वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज तेजी के साथ पिछड़ रही है। बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों की चिंता इस बात की है जिस तेजी के साथ समूह पर कर्ज बढ़ रहा है। उस तुलना में कम्पनी का कारोबार एवं लाभ नहीं बढ़ रहा है। आर्थिक मंदी के इस दौर में बैंकों की कर्ज वसूली प्रभावित हुई है। बैंकों के विलय के बाद भी स्थिति सुधरने के स्थान पर दिनों-दिन बिगड़ रही है।

कई कॉरपोरेट चार्वाक दर्शन पर काम करते हुए कर्ज लेकर घी पी रहे हैं। मतलब कंपनी मुनाफा नहीं दे रही है तो कर्ज लेकर कंपनी चला रहे हैं। ग्रोथ बढ़ाने के लिए कर्ज लिए जा रहे हैं। स्टार्टअप शुरू करने वालो को आईटी, फार्मा जैसे सेक्टर में तो कई कंपनियां आ चुकी हैं। अब ज्यादा मौके शिक्षा, मीडिया और एंटरटेनमेंट, डिफेंस और सप्लाई चेन मैनेजमेंट जैसे सेक्टर में ही हैं।

अर्थ-व्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण

अर्थ-व्यवस्था को लेकर भारत सरकार, कारपोरेट कम्पनियों के सहारे है। कारपोरेट के लाभ को ध्यान में रखते हुए, सरकार नीतियां बना रही है। बैंकों से बड़े पैमाने पर कारपोरेट को कर्ज् उपलब्ध कराया गया है। सरकार को आशा थी कारपोरेट के जरिये बडे पैमाने पर देशी और विदेशी निवेश कार्पोरेट के जरिये आयेगा। विनिवेश के माध्यम से केंद्र सरकार को लाखों करोण रुपये प्राप्त होने की उम्मीद थी। इन दोनों मोर्चे पर सरकार को निराशा ही हाथ लगी है। कारपोरेट को वर्तमान आर्थिक स्थिति में सहारा देना सरकार की प्रथम आवश्यकता बन गई है। ऐसी स्थिति में कारपोरेट कम्पनियां सरकार और रिजर्व बैंक पर लगातार दबाव बना रही है। रिजर्व बैंक भी वर्तमान स्थिति पर चिंतित है।

टेलीकाम सेक्टर-

जी 5 स्पेक्ट्रम की नीलामी अभी सम्पन्न हुई है। सरकार को 1.5 लाख करोण नीलामी में मिलने की बात जोर-शोर से प्रचारित की गई। टेलीकाम कम्पनियों ने 5 जी स्पेक्ट्रम लेने के लिए बैंकों से बड़े पैमाने पर कर्ज् लेकर नीलामी में भाग लिया। प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार को 5 जी के राजस्व के रुप में प्रतिवर्ष अधिकमतम 12 से 14 हजार करोण रुपया ही मिलेगा। वहीं टेलीकाम कम्पनियों ने 5 जी शुरु करने के लिए बैंकों से भारी कर्ज लिया है। रिलायंस जियो पर बैंकों का 1.75 लाख करोण, एअरटेल पर 1.35 लाख करोण तथा बोडाफोन-आईडिया पर 2.15 लाख करोण रुपयों का कर्ज हो गया है। टेलीकाम सेक्टर पिछले कई वर्षों से बीमार चल रहा है। 5 जी के बाद टेलीकाम कम्पनियों का कर्ज् और बढ़ गया है। भारत की कारपोरेट कम्पनियां बैंकों से कर्ज लेकर तथा शेयर मार्केट से प्रीमियम के जरिये पैसा जुटाती है। इसके बाद भी इनका प्रदर्शन निवेश की तुलना में बहुत खराब है। भारतीय कम्पनियों में विदेशी निवेश शेयर होल्डिंग के रुप में बढ़ता ही जा रहा है। कालांतर में देशी कम्पनीयों की मालिक भी विदेशी कम्पनियां हो जाएगी।

आयकर विभाग ने जल्द ही जानकारी दी है कि चालू वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में कॉरपोरेट कर संग्रह सालाना आधार पर 34 प्रतिशत बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान कॉरपोरेट कर संग्रह 7.23 लाख करोड़ रुपये था, जो 2020-21 के मुकाबले 58 प्रतिशत अधिक है। कोविड महामारी से पहले वित्त वर्ष 2018-19 के संग्रह से तुलना करें तो 2021-22 में संग्रह नौ प्रतिशत अधिक रहा। आयकर विभाग ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि कॉरपोरेट कर संग्रह वित्त वर्ष 2022-23 में (31 जुलाई 2022 तक) वित्त वर्ष 2021-22 की समान अवधि के मुकाबले 34 प्रतिशत अधिक रहा।

आयात-निर्यात में बढ़ता घाटा-

आयात-निर्यात व्यापार में लगातार घाटा होने से रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार की चिंता बढ़ गई है। कारपोरेट को त्रृण और उनके अनुकूल नीतियां बनाने तथा शुल्क में छूट दिये जाने के बाद भी भारत का निर्यात नहीं बढ़ रहा है। उल्टे भारत को विदेशों से ज्यादा आयात करना पड़ रहा है। मार्च 2022 में 5 लाख 20 हजार करोण का आयात हुआ। वहीं निर्यात 2 लाख 77 हजार करोण का हुआ। 2 लाख 43 हजार के व्यापार घाटे ने विदेशी मुद्रा संकट को बढ़ाना शुरु कर दिया है। डालर के मुकाबले रुपये का दाम लगातार गिर रहा है। रुपये को गिरने से रोकने के लिए रिजर्व बैंक को आगे आना पड़ा। जिस तरह से देश का विदेशी मुद्रा भण्डार कम हो रहा है। निर्यात की तुलना में आयात बढ़ रहा है। भारतीय अर्थ-व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी नहीं वरन घंटा की तरह आवाज कर रहा है।भारत का गुड्स इंपोर्ट पिछले वित्तीय वर्ष में 54.71 फीसदी बढ़कर 610.22 बिलियन डॉलर रहा। इससे पूर्व वित्त वर्ष 2020-21 में यह 394.44 बिलियन डॉलर था। वहीं 2019-20 के 474.71 बिलियन डॉलर के मुकाबले यह 28.55 फीसदी अधिक है। इस साल मार्च महीने में व्यापार घाटा 18.69 बिलियन डॉलर रहा।पूरे वित्त वर्ष 2021-22 में यह 192.41 बिलियन डॉलर था।