चाचा शिवपाल के घर पहुँचे अखिलेश
इन सभी मुद्दों को लेकर सोमवार को अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच लगभग एक घंटा मंथन हुआ। अति पिछड़ों एवं दलितों को साथ लेकर संगठन के विस्तार पर भी दोनों में एकराय बनी। मैनपुरी लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सपा-प्रसपा का विलय हो गया है। बीते दिनों अखिलेश ने कहा था कि शुभ दिन आने के बाद संगठन का विस्तार करेंगे। आखिरकार वह शुभ दिन आ गया और बीते विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार अखिलेश शाम को राजधानी में शिवपाल के घर पहुंचे। दोनों के बची सियासी मंथन किया।
सूत्रों का कहना है कि शिवपाल व आदित्य के अलावा उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले नेताओं को भी समायोजित करने पर सहमति बनी। इस बार राष्ट्रीय एवं प्रदेश कार्यकारिणी में कुछ नए चेहरों को जगह मिल सकती है। नए पदाधिकारियों को लेकर भी दोनों के बीच बातचीत हुई है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि शिवपाल के नेतृत्व में जिलेवार आंदोलन शुरू किया जा सकता है। क्योंकि सपा निकाय चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव में भी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है। इसके लिए शिवपाल का मैदान में उतरना जरूरी माना जा रहा है। पिछले सप्ताह शिवपाल ने खुद कहा था कि अखिलेश उनके भतीजे हैं। वे पूरे देश के नेता हैं।
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जब तक मुलायम सिंह यादव रहे या जब तक समाजवादी पार्टी अपने शीर्ष पर थी तब तक शिवपाल यादव के लिए सबसे पसंदीदा पद प्रदेश का प्रमुख महासचिव का पद हुआ करता था। लेकिन अब शिवपाल यादव के लिए प्रदेश में कोई पद बचा नहीं है, ऐसे में उनकी वरिष्ठता को देखते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष या राष्ट्रीय महासचिव का ही ऐसा पद है जो शिवपाल यादव को दिया जा सकता है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी संगठन को नये सिरे से बनाने के लिये पिछले साल जुलाई में पार्टी की सभी इकाइयों को भंग कर दिया था। इसमें पार्टी के भी युवा संगठन, महिला सभा तथा अन्य प्रकोष्ठ भी शामिल थे। कभी एक-दूसरे के विरोधी रहे अखिलेश और शिवपाल की दूरियां पिछले साल दिसंबर में पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव के दौरान खत्म हुई नजर आ रही थीं। आठ दिसंबर को उपचुनाव परिणाम में सपा उम्मीदवार और अखिलेश की पत्नी डिम्पल को विजयी घोषित किये जाने के बाद अखिलेश ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन कर चुके शिवपाल को सपा का झंडा देकर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कराया था।
लखनऊ में शिवपाल के आवास पर इससे पहले 21 दिसंबर 2021 को अखिलेश गए थे। दोनों के बीच बातचीत हुई। शिवपाल ने समर्थन का एलान किया। उन्होंने 50 उम्मीदवारों की सूची दी। लेकिन टिकट सिर्फ शिवपाल को मिला। चुनाव बीता। विधायक दल की बैठक में शिवपाल नहीं बुलाए गए। नाराज शिवपाल ने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लेकिन सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शिवपाल-अखिलेश साथ-साथ रहे। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के दौरान अखिलेश पत्नी डिंपल के साथ चाचा के घर पहुंचे और उन्हें राजी कर लिया। मैनपुरी चुनाव जीतने के बाद शिवपाल ने अपनी गाड़ी से प्रसपा का झंडा उतारकर सपा का झंडा लगा लिया।
मुलायम कुनबे में सियासी विरासत को लेकर छिड़ी जंग अब थम चुकी है। शिवपाल यादव और अखिलेश यादव गिले-शिकवे भुलाकर साथ आ चुके हैं। दोनों नेता मिशन-2024 में जुट गए हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से उनके घर जाकर मुलाकात की। यह मुलाकात शिवपाल को सपा संगठन में जल्द ही कोई बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की अटकलों के मद्देनजर महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच अब एक सहमति बनी हुई है कि शिवपाल यादव हर हाल में समाजवादी पार्टी के लिए ही ‘जिएंगे-मरेंगे’ शिवपाल यादव के साथ के सभी लोग पहले ही या तो सपा या भाजपा की तरफ रुख कर चुके हैं। कोई बड़ा चेहरा शिवपाल यादव के साथ अब नहीं बचा है। ऐसे में शिवपाल यादव किसी खास के लिए कुछ मांगेंगे इसकी उम्मीद कम है, लेकिन इस मुलाकात से इतना दिखेगा कि संगठन में बदलाव पर शिवपाल यादव की भी मुहर है। जो शिवपाल के समर्थक या उनके चाहने वालों को संतुष्ट करने के लिए काफी हो सकता है।
चाचा शिवपाल के घर पहुँचे अखिलेश