अखिलेश का आत्मविश्वास ले डूबा…?

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सपा जिस आजमगढ़ को अपना अभेद्य किला होने का दंभ भरता था, उसे भाजपा ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। लोकसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को 8679 मतों से हराया। इस जीत के साथ ही भाजपा खेमा भी काफी खुश नजर आया,साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव के नजरिए उत्साह वर्धक रहा है।उत्तर प्रदेश में हर चुनाव नतीजों के नज़रिये से दिलचस्प होता है और प्रदेश की मौजूदा राजनीति में माहौल बनाने का काम करता है।भले ही वो 80 लोकसभा सीटों वाले प्रदेश की सिर्फ 2 सीटों का उपचुनाव ही क्यों न हो।

उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ संसदीय सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव को हराकर जीत दर्ज की है। निरहुआ ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के धर्मेंद्र यादव को 8679 मतों से हराया है। यह दूसरा अवसर था जब निरहुआ आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे। 2019 के आम चुनाव में भी वह भाजपा उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें अखिलेश यादव से शिकस्त मिली थी।उपचुनाव में सपा, बसपा और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर हुई। 35 राउंड तक चली मतगणना में 8679 मतों से भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ जीते। उन्हें कुल तीन लाख 12 हजार 768 मत प्राप्त हुए। जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के धर्मेंद्र यादव को तीन लाख चार हजार 89 मत मिले।

जानें लोकसभा सीट का समीकरण –

आजमगढ़ लोकसभा सीट के तहत मेंहनगर, आजमगढ़ सदर, मुबारकपुर, सगड़ी और गोपालपुर विधानसभा सीटें आतीं हैं। मेंहनगर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां एक लाख से ज्यादा दलित वोटर हैं। इसके अलावा 70 हजार से ज्यादा यादव वोटर भी हैं। राजभर और चौहान मतदाताओं की संख्या भी 35 हजार से अधिक है। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या भी 20 हजार से ज्यादा है। आजमगढ़ सदर सीट पर सबसे ज्यादा 75 हजार से अधिक यादव वोटर हैं। दलित और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी 60 हजार के करीब है। मुबारकपुर मुस्लिम बहुल सीट है। यहां मुस्लिम मतदाता एक लाख 10 हजार से ज्यादा हैं। वहीं, दलित वोटरों की संख्या 78 हजार तो यादव वोटरों की संख्या 61 हजार के करीब है। बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली इस सीट से 2017 में विधानसभा चुनाव जीते थे। सगड़ी सीट 82 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति के मतादाता हैं। वहीं, यादव मतदाताओं की संख्या भी 55 हजार से ज्यादा है। कुर्मी वोटरों की संख्या 40 हजार से ज्यादा है तो मुस्लिम मतदाता भी 30 हजार से अधिक हैं। आजमगढ़ लोकसभा के तहत आने वाली पांचवीं सीट गोपालपुर यादव बहुल है। यहां 68 हजार से ज्यादा यादव वोटर हैं। दलित मतदाताओं की संख्या भी 53 हजार से ज्यादा है। वहीं, मुस्लिम मतदाता भी 42 हजार से अधिक हैं।

अखिलेश यादव ने अपनी ही छोड़ी सीट अपने भाई को जीता नहीं पाये।आजमगढ़ के चुनावी इतिहास को देखें तो पिछले करीब पांच चुनावों में यह सीट दो नेताओं के आसपास घूमती दिखती है। वह हैं रमाकांत यादव और यादव परिवार। रमाकांत यादव ने तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ा और जीते। जब वर्ष 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ आए तो यह सीट उनके पाले में चली गई। इसके बाद उनके बेटे अखिलेश यादव ने यहां से जीत दर्ज की।अखिलेश आजमगढ़ से चुनाव जितने के बाद से उसे भूल ही गए थे। जब याद आयी तो उन्होंने उसे छोड़ दिया आजमगढ़ उन्होंने भाई को देनी चाही लेकिन अनमने मन से। भाई धर्मेंद्र को टिकट तो दिया पर प्रचार एक दिन भी करने नहीं गए जिसका नतीजा यह हुआ की भाई को शहीद होना पड़ा मात्र कुछ ही मत से। अगर अखिलेश यादव वहां प्रचार कर एक बार जनता से भाई के लिए अपील की होती तो भाई आज लोकसभा सांसद होता। साल 2019 में अखिलेश यादव आज़मगढ़ की सीट 24 प्रतिशत वोटों के मार्जिन से जीते थे। लेकिन इस बार उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ के हाथों हारना पड़ा।यूपी चुनाव 2022 में मैनपुरी के करहल विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर पहली बार विधानसभा पहुंचे अखिलेश यादव ने सांसदी छोड़ दी।

आजमगढ़ से हार के बाद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव ने कहा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी कुछ मर्यादाएं बनाई थीं, उनके ना आने पर मैं भी जिद पकड़ लेता अगर मैं आम कार्यकर्ता होता, लेकिन मैं उनका भाई भी हूं। मैं ऐसा नहीं कह सकता, उनसे जो हो सकता था उन्होंने किया। हमारे कार्यकर्ता लगातार धमकाए जा रहे थे। पुलिस लगातार प्रेशर बना रही थी। मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं।

आजमगढ़ जहां अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव तो रामपुर आजम खान का गढ़ रहा है। आजमगढ़ पर जीत हासिल करने के लिए सपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी। अलग-अलग राज्यों से सपा के कद्दावर नेताओं को धर्मेंद्र यादव के पक्ष में प्रचार के लिए उतारा गया था, जबकि सहयोगी दल के नेताओं ने भी उनके समर्थन में रैली की थी। वहीं, रामपुर में चुनाव जीताने की जिम्मेदारी आजमगढ़ के कंधे पर थी।हालांकि इन कोशिशों के बावजूद भी सपा को चुनाव में जीत नहीं मिल पाई। आजमगढ़ में भोजपुरी फिल्मों के स्टार और बीजेपी उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को मात दी तो रामपुर में घनश्याम सिंह लोधी ने सपा का किला भेद दिया। निरहुआ ने धमेंद्र को 9 हजार से अधिक वोटों से जबकि लोधी ने सपा के आसिम राजा को 40 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी।लेकिन योगी आदित्यनाथ किसी भी सूरत में बगैर लड़े हथियार डालने के पक्षधर नहीं हुए। उन्हें यह समझाने की कोशिश भी हुई कि आजमगढ़ और रामपुर चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचना चाहिए, लेकिन योगी ने कहा कि अधूरे मन से लड़ा जाने वाला युद्ध जीता नहीं जा सकता। इसके बाद उन्होंने आजमगढ़ और रामपुर का मोर्चा संभाला। अलग-अलग पार्टियों के इन तीन बड़े नेताओं की इस मनोदशा ने ही आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में नई इबारत लिख दी।दरअसल साल दर साल, चुनाव दर चुनाव भाजपा विपक्ष से अपने को अगर आगे करती जा रही है, तो उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वह हर चुनाव को एक नई चुनौती के रूप में लेती है। हर नतीजे से सबक भी लेती है, लेकिन विपक्ष ने अपने चारों तरफ ऊंची दींवारें खींच ली हैं, जिनके चलते वह जमीनी हकीकत को देख ही नहीं पा रहा है और ऐसा लगने लगा है कि वह देखना भी नहीं चाहता है।

अखिलेश यादव ने आजमगढ़ और रामपुर में प्रत्याशियों की घोषणा तक में देरी की थी। अखिलेश ने आजमगढ़ में अपने चचेरे भाई के नाम की घोषणा तो नामांकन के आखिरी वक्त में की थी। सबसे बड़ा सवाल तो अखिलेश के इन सीटों पर चुनाव प्रचार नहीं करने को लेकर है। अखिलेश के प्रचार नहीं करने को लेकर ये दलील दी कि बहुजम समाज पार्टी चीफ मायावती भी आजमगढ़ में प्रचाार करने नहीं गईं। आजमगढ़ कभी भी बीएसपी का मजबूत गढ़ नहीं रहा है। ऐसे में अखिलेश की मायवती से तुलना बेमानी है। इस सीट पर 2014 में मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी जबकि अखिलेश ने 2019 में यहां से मुकाबला जीता था। तो ऐसी क्या बात हुई कि अखिलेश यहां प्रचार करने नहीं आए? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये हार अखिलेश के अति आत्मविश्वास का परिणाम है।आजमगढ़ और रामपुर में बीजेपी की जीत का श्रेय बीजेपी की मजबूत किलेबंदी को जाती है। पार्टी ने जहां अपने वोटर्स को अपने पाले में रखने में कामयाबी पाई वहीं, विपक्ष के वोटों में सेंध भी लगाई। चूंकि राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार है तो लोगों को उनकी सख्त छवि और माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर अभियान का फायदा भी बीजेपी कैंडिडेट्स को मिला। अखिलेश जहां आजमगढ़ और रामपुर में झांकने तक नहीं गए वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने इन दोनों क्षेत्रों में प्रचार किया। पार्टी के सभी दिग्गजों ने पूरी ताकत झोंक दी थी।

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस जीत ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बड़ा संदेश दिया है। जीत के बाद पार्टी ऑफिस पहुंचे योगी ने कहा कि आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीट पर जीत ने साफ संदेश दे दिया कि 2024 में बीजेपी सभी 80 लोकसभा सीटें जीतेगी।