क्या खुश नहीं कर्मचारी…?

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क्या खुश नहीं कर्मचारी...?
क्या खुश नहीं कर्मचारी...?

राजस्थान में मंत्रालयिक कर्मचारी बेमियादी हड़ताल पर। सरकार का कामकाज ठप। 35 हजार ग्राम विकास अधिकारी और राजस्व कर्मी भी हड़ताल पर। तो क्या ओपीएस से खुश नहीं हुए कर्मचारी….?

एस0 पी0 मित्तल

राजस्थान में मंत्रालयिक वर्ग के कई लाख कर्मचारी गत 17 अप्रैल से बेमियादी हड़ताल पर है। कर्मचारियों ने जयपुर में महापड़ाव डाल रखा है। प्रदेश भर के कर्मचारी इस महापड़ाव में शामिल हो रहे हैं। कर्मचारियों की बेमियादी हड़ताल से सरकारी कामकाज ठप हो गया है। कर्मचारियों की मांग है कि वेतन स्केल और अन्य सुविधाएं जिस प्रकार सचिवालय कर्मियों को मिलती है, उसी प्रकार मंत्रालयिक कर्मचारियों को भी मिले। हड़ताली कर्मचारियों का तर्क है कि राजस्थान लोक सेवा आयोग से समान रूप से चयन होता है, लेकिन जिन कर्मियों को जयपुर स्थित सचिवालय में नियुक्ति मिलती है, उनके पे-स्केल में स्वत: ही वृद्धि हो जाती है। जबकि चयन प्रक्रिया एक समान है तो पे स्केल और अन्य सुविधा देने में कर्मचारियों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है….?

एक और लाखों कर्मचारी 17 अप्रैल से बेमियादी हड़ताल पर है तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रोजाना अपने भाषणों में कह रहे हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दिए जाने से कर्मचारी बेहद खुश हैं। अपनी सरकार को रिपीट होने का एक कारण सीएम गहलोत ओल्ड पेंशन स्कीम को भी बताते हैं। सवाल उठता है कि जिस कारण से गहलोत अपनी सरकार के रिपीट होने का सपना देख रहे हैं, उसी से जुड़े लाखों कर्मचारी हड़ताल पर हैं। सवाल उठता है कि जब ओपीएस से कर्मचारी खुश हैं तो फिर हड़ताल क्यों कर रहे हैं? जाहिर है कि राज्य कर्मचारी ओपीएस से खुश नहीं है। यदि खुश होते तो गहलोत सरकार को रिपीट करवाने में जुट जाते।

राज्य कर्मचारियों की हड़ताल से अशोक गहलोत को सबक लेना चाहिए। गहलोत को यह नहीं समझना चाहिए कि ओपीएस से ही प्रदेश के 7 लाख कर्मचारी कांग्रेस को वोट दे देंगे। वोट नहीं देने के बहुत से कारण होते हैं। कर्मचारियों की ताजा हड़ताल यह दर्शाती है कि उनके लिए ओपीएस कोई मायने नहीं रखती। कर्मचारियों ने जो मुद्दा उठाया है वह वाजिब है। जब चयन की प्रक्रिया एक समान है तो कर्मचारियों में भेदभाव नहीं होना चाहिए। यदि जयपुर स्थित सचिवालय में नियुक्त कर्मचारी निर्धारित समय से ज्यादा काम करता है तो जिला मुख्यालयों पर कलेक्ट्रेट में नियुक्त कर्मचारी भी निर्धारित समय से ज्यादा काम करता है।

35 हजार कर्मी भी हड़ताल पर


21 अप्रैल से प्रदेश के 12 हजार से भी ज्यादा ग्राम विकास अधिकारी और 21 हजार से भी ज्यादा राजस्व कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं। इन दोनों वर्गों के कर्मचारियों की मुख्य मांग वेतन विसंगतियों को लेकर है। ग्राम विकास अधिकारी के तो गत तीन वर्षों से पदोन्नति भी नहीं हुई है। इन दोनों वर्गों के प्रतिनिधियों का कहना है कि मुख्यमंत्री के स्तर पर समझौता हो रखा है, इसके बाद भी मांगे पूरी नहीं हो रही। कर्मचारियों ने इस बात पर अफसोस जताया कि जब मुख्यमंत्री ही अपने वादे से मुकर रहे हैं तब कर्मचारियों की सुनवाई कौन करेगा। मंत्रालयिक, पंचायती राज और राजस्व विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल से सरकार का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया है।

राहत शिविरों पर असर


सीएम गहलोत ने 24 अप्रैल से महंगाई राहत शिविर लगाने की घोषणा कर रखी है। इसमें सभी प्रदेशवासियों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना ही पड़ेगा। क्योंकि प्रत्येक परिवार सरकार की किसी न किसी योजना का लाभ प्राप्त कर रहा है। सीएम गहलोत यह दिखाना चाहते हैं कि केंद्र सरकार ने जो महंगाई कर रखी है, उसमें राज्य सरकार राहत दे रही है। यह बात अलग है कि रसोई गैस सिलेंडर पर 650 रुपए की सब्सिडी उन्हीं उपभोक्ताओं को मिलेगी, जिन्होंने उज्ज्वला योजना में कनेक्शन लिया है। ऐसी बहुत सी योजना हैं जिनका लाभ आम प्रदेशवासी को नहीं मिल रहा। लेकिन सौ यूनिट बिजली फ्री देने जैसी सुविधा के लिए शिविर में जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना ही पड़ेगा। यह रजिस्ट्रेशन जनआधार कार्ड के आधार पर ही होगा। यदि किसी परिवार के पास जन आधार नहीं है तो उसे पहले जन आधार कार्ड बनवाना होगा। लेकिन कर्मचारियों की हड़ताल के चलते महंगाई राहत शिविरों पर संशय हो गया है। इन शिविरों में कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्या खुश नहीं कर्मचारी…?