उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बजने से पहले हलचल

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 उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश की सभी राजनीतिक पार्टियां अब तक प्रदेश में कूदना शुरू कर दिया है,और कोई भी पार्टी यह नहीं चाहती कि उत्तर प्रदेश में उसका कबजा ना हों, इस वक्त सत्ता में मौजूद भाजपा के अंदर खींचतान चल रही है, उत्तर प्रदेश की प्रमुख पार्टियों में एक पार्टी बसपा अपने अस्तित्व खोती जा रही है, समाजवादी पार्टी एक बार फिर से अपने 2012 वाले फॉर्म पर लौटने का प्रयास कर रही है।वहीं कांग्रेस चुन-चुन कर अपनी सीटों को जीतने में लगी हुई है।छोटे दल भी अपनी राजनीतिक समीकरण को टटोलना में लागे है, मगर इन सबके बीच बसपा और भाजपा एक ऐसा समीकरण बना रहे हैं जिससे उत्तर प्रदेश क्या देश के राजनीतिज्ञों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जा सकती है।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल भले ही अभी नहीं बजा है, लेकिन उसकी आहट ने दस्तक दे दी हैं। रोज ही नए समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं, ऐसे में यह अनुमान लगाना भी कुछ असहज प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आते-आते सत्ता का ऊंट आखिर किस करवट बैठेगा। सियासत का सरताज कौन होगा, यह तो वोट के माध्यम से जनता ही बता सकेगी, लेकिन हाल-फिलहाल में राजनीतिक दलों में चल रखी खलबली या यूं कहें बेचैनी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव की दस्तक से पहले ही यहां की राजनीति को रोचक बना दिया है। ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में ऐसा राजनीतिक घमासान पहली बार हो रही है। फिर भी इस बात इन सभी बातों से एक बात अलग नजर आ रही है। सत्ताधारी पार्टी जहां पिछले चार साल के दौरान उत्तर प्रदेश में किए गए विकास के मुद्दों को जनता के बीच उठा रही है, वहीं विकास की बात करने वाली भाजपा इस पर चर्चा करने से भी भाग रही है। उल्टा एक बार फिर धार्मिक धु्रवीकरण के प्रयासों में जुटी है।

दूसरी ओर बसपा में असमंजस की स्थिति नजर आ रही है। एक के बाद एक उसके सिपहसलार पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। ये सारी बातें बेवजह नहीं हैं, अखिलेश यादव के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में जिस तरह से विकास कार्य हुए थे उससे दूसरी पार्टियों के पास आने वाले चुनाव में मुद्दों का अकाल हो गया है। वहीं नेतृत्व के मामले में भी अखिलेश यादव एक कर्मठी और तरक्की पसंद नेता के तौर पर उभरे हैं। जबकि इसके विपरीत दूसरे दलों के पास ऐसा नेतृत्व नजर नहीं आता है। हां बसपा में जरूर मायवती नेता हैं, लेकिन उनकी पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार और हाल-फिलहाल में पार्टी के अंदर मचे घमसान से उनके पास भी चुनाव को लेकर कोई ठोस एजेंडा नजर नहीं आ रहा है।जिसके कारण उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में मायवती का भाजपा से मोह साफ झलक रहा है।

कामकाज की बात करें तो अखिलेश यादव मोदी, योगी और माया से कही आगे हैं। बुनियादी तौर पर देखा जाए तो अखिलेश सरकार द्वारा कराए गए कामकाज ने प्रदेश की छवि को बदलने का काम किया था। जो लोग इस पर सवाल जवाब करते हैं आखिर में उनकी भी राय अखिलेश के पक्ष में ही होती है।आज सत्ताधारी पार्टि के खिलाफ विरोध की लहर है,जो अखिलेश यादव के पछ में काम करता नजर आ रहा है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण अखिलेश यादव का जन सरोकारों से जुड़ा काम और बेदाग व बेहद शालीन व्यक्तित्व है। यही वजह है कि विपक्षी भी उनकी तारीफ करते हैं। अखिलेश यादव कि कार्यशैली को लेकर उनकी सकारात्मक सोच ने भी उत्तर प्रदेश की जनता में अखिलेश यादव को सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित किया है।

May be an image of 3 people and text that says 'खुशहाली वापस लायेंगे. को प्रगति पर्याय उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष मा0 श्री अखिलेश यादव जन्मदिन मुबारक अनुराग यादव पूर्व प्रत्याशी 170, सरोजनी नगर विधानसभा'

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश युआ दिलों की धड़कन अखिलेश यादव ने सत्ता की बागडोर संभालने के बाद से ही न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया भर से आई सलाह का ईमानदारी से पालन किया। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पुत्र और उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर वे उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं तो सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी माॅडल अपनाएं। वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन अपनी किताब ‘अखिलेश यादवः बदलाव की लहर ’ में अखिलेश यादव की सोच का जिक्र करती हैं। मैं चाहता हूं कि मेरा काम बोले। चाहे मैं रहूं या न रहूं, लेकिन आने वाले समय में विकास का काम जारी रहे।

अखिलेश कार्यकाल में राज्य की आर्थिक वृद्धि दर एवं प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी हुई। उत्तर प्रदेश की ग्रामीण एवं नगरीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की। यूपी का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 2012-13 की तुलना में पिछले वित्त वर्ष में 2.7 ऊंचा रहा। 2012-13 में प्रदेश की जीएसडीपी वृद्धि दर जहां 3.9 फीसदी थी, वहीं यह 2015-16 में बढ़कर 6.6 हो गई। वहीं शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद (एनएसडीपी) में भी प्रभावकारी सुधार हुआ है। 2012-13 में प्रदेश की एनएसडीपी वृद्धि 3.7 फीसदी थी, जो 2015-16 में बढ़कर 6.5 हो गई। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हासिल की गई। मार्च 2016 में समाप्त वित्त वर्ष में प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 48,584 रुपये रही जो 2012-13 में 35,358 रुपये ही थी। इससे जाहिर है कि अखिलेश सरकार की विकास परियोजनाओं का असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा था।

एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने कहा था, ‘एक मुख्यमंत्री के तौर पर आपको उन लोगों की बात सुननी चाहिए जो आपके फैसलों से प्रभावित हो रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर योजनाओं को जनता पसंद नहीं करती तो, हमें उन्हें वापस लेने का साहस होना चाहिए। गलत फैसलों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।’ ये शब्द अखिलेश यादव के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं। वैसे अखिलेश के सजग कार्यों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट है, जिसकी तारीफ न केवल प्रदेश में, बल्कि देश और विदेश की संस्थाओं में भी हो रही हैं।

अखिलेश यादव फिलहाल यूपी के विकास कार्यों पर ध्यान टिकाए हुए थे और वह अपनी किसी भी सभा में ताल ठोककर कहते थे कि विकास के मामले में यूपी को अब कोई आँख भी नहीं दिखा सकता है। आज यूपी में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेदान्ता मेडिसिटी से लेकर आईटी सिटी, अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम, मेट्रो से लेकर साईकिल ट्रैक सब कुछ बन गया है। इसके अलावा महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए वुमेन हेल्पलाईन 1090, आशा ज्योति 181 जैसी सुवाधाओं की भी देश में तारीफ हो रही है। इसका मतलब ये हुआ की यूपी बदलाव की राह पर तेजी से अग्रसर है और ये सब बातें ही सीएम अखिलेश की सबसे मजबूत ताकत है। जबकि ये ही बातें विपक्ष को कमजोर बना रही हैं।आज उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने योजनाओं को या तो बंद कर दिया या फिर उनका नाम बदल दिया है। विकास के नाम पर योगी ने कोई कार्य नहीं किया है आज गावं हो शहर जनता बेहाल है।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि ये जो महंत हैं, अपना काम भूलकर कुर्सी पर जमे हैं। योगी का मतलब क्या है, सबकुछ त्याग दें। सबको एक नजर से देखें। सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा को हो गई विकास रोको बीमारी। ये जो सड़कें (यमुना और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे) देश और प्रदेश की राजधानी को जोड़ रही हैं। इनके किनारे मंडियां बननी थीं, ताकि किसान व्यापारियों का विकास हो, लेकिन भाजपा ने इसे रोक दिया। वह बोले, जिस तरह पशुओं में गलाघोंटू बीमारी हो जाती है, उसी तरह भाजपा को विकास रोको बीमारी हो गई है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर से प्अरदेश में विकास की गंगा बहेगी।