योगासनों में सर्वश्रेष्ठ सूर्य नमस्कार, जाने रहस्य

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योगगुरु के0 डी0 मिश्रा

 योगासनों में सर्वश्रेष्ठ  प्रक्रिया है सूर्य नमस्कार, यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। ‘सूर्य नमस्कार’ स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।

सूर्य नमस्कार करने से शरीर को प्रयाप्त मात्रा में विटामिन डी मिलता हैं, जोकि त्वचा को निखरी और बेदाग बनाता हैं। इसके अलावा इससे सिर के बाल भी स्वस्थ और मजबूत होते हैं। योग एक्सपर्ट्स के मुताबिक योग ऐसी क्रिया है, जो चिंता को दूर कर मन को शांत रखने में सहायक साबित हो सकती है। इस कारण यह माना जा सकता है कि सूर्य नमस्कार के अंतर्गत अलग-अलग चरणों में आने वाले अलग-अलग 12 योगासनों का नियमित अभ्यास चिंता और तनाव जैसी समस्या को दूर कर बालों को मजबूती प्रदान करने के साथ त्वचा संबंधित कई समस्याओं से राहत दिलाने में सहायक साबित हो सकता है।

सूर्य नमस्कार एक योग मुद्रा है जिसमें 12 लगातार योग किए जाते हैं। इन आसनों की क्रिया शरीर के हर हिस्से को प्रभावित करती है। साथ ही, योग प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक चरण पर सांस लेने की विधि आपकी आंतों की गतिविधि को भी बढ़ाती है और शरीर की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद करती है। रोजाना 10-15 मिनट सूर्य नमस्कार करने से शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता हैं। इससे आपके शरीर को ऊर्जा मिलती है,जोकि आपको बीमारियों से बचाती हैं।

सूर्य नमस्कार में कई आसन शरीर को अधिक ताकत देते हैं। इनमें से कई योगासन शरीर से जुड़ी मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत बनाने का काम भी करते हैं। इसका शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

रोजाना सूर्य नमस्कार करने से एक नहीं अनके फायदे होते हैं, ये तो आपने जान लिया है। लेकिन किसी भी प्रकार का योग या व्यायाम करें, लेकिन इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि उसे सही तरीके से करें। सूर्य नमस्कार एक आसन न होकर 12 योग आसनों का एक क्रमबद्ध तरीके से किया जाने वाला योग है। इसके 2 चरण किये जाते हैं तब पूर्ण सूर्य नमस्कार पूरा होता है।

प्रणाम मुद्रा – सूरज की तरफ चेहरा करके सीधे खड़े हों और दोनों को पैरों को मिलाएं, कमर सीधी रखें। अब हाथों को सीने के पास लाएं और दोनों हथेलियों को मिलाकर प्रणाम की अवस्था बनाएं।सबसे पहले स्टेप में दोनों हाथों को जोड़कर (नमस्कार की पोजिशन में) सीधे खड़े हो जाएं। अपना पूरा वजन दोनों पैरों पर समान रूप से डालें। फिर अपनी आंखों को बंद करके तथा मन को शांत और एकाग्र चित करके अपने कन्धों को ढीला छोड़ें फिर दोनों हाथो को उठाकर सामने लाये और सांस छोड़ते हुए हथेलियों को आपस में जोड़कर अपनी छाती या वक्षस्थल के सामने नमस्कार मुद्रा में लाएं और सूर्य नमस्कार श्लोक का आवाहन करें। ॐ सूर्याय नमः,ॐ भास्कराय नमः, ॐ मित्राय नमः सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं प्रणाम मुद्रा।

उत्तानासन –सूर्य नमस्कार के अब दूसरे स्टेप में गहरी सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर उठाएं और पीछे कानों की ओर से ले जाते हुए कमर के पीछे की तरफ झुकाएं। इस दौरान अपने पूरे शरीर को एड़ियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक सभी अंगों को ऊपर की तरफ स्ट्रेच करने की कोशिश करें। सूर्य नमस्कार की इस स्थिति को कहा जाता है।

उत्तानासन के अभ्यास के समय सिर आपके दिल के नीचे होता है। इस वजह से रक्त का प्रवाह पैरों में होने की बजाय सिर की तरफ होने लगता है। इससे दिमाग में रक्त और ऑक्सीजन की अच्छी-खासी मात्रा पहुंचने लगती है। 

हस्तपाद आसन या पाद-हस्तानासन – सूर्य नमस्कार के अब तीसरे स्टेप में सांस को बाहर निकालते हुए धीरे-धीरे आगे की और झुकना है। हाथों को सीधे रखते हुए आगे की ओर झुकाएं और दोनों हाथों को पैरों के दाएं-बाएं करते हुए जमीन को टच करें। ध्यान रखें कि इस दौरान रीढ़ की हड्डी और घुटने सीधे रहें। सूर्य नमस्कार की इस स्थिति को कहा जाता है, हस्तपाद आसन।

अश्व संचालन आसन – सूर्य नमस्कार के अब चौथे स्टेप में सांस भरते हुए जितना संभव हो सके अपना दायां पैर पीछे की ओर ले जाएं। फिर दाएं घुटने को जमीन पर रखें और नजरें ऊपर आसमान की ओर रखें। इस दौरान ये कोशिश करें कि आपका बायां पैर दोनों हथेलियों के बीच में ही रहे। इस आसन में थोड़ी देर रूके। सूर्य नमस्कार की इस स्थिति को कहा जाता है, अश्व संचालन आसन।

दंडासन – सूर्य नमस्कार के अब पांचवें स्टेप में सांस भरते हुए बाएं पैर को पीछे ले जाएं और पूरे शरीर को सीधी रेखा में ही रखें। इस दौरान आपके हाथ जमीन के लंबवत होने चाहिए। दोनों एड़ियों को आपस में सटाकर रखें। सूर्य नमस्कार की इस स्थिति को कहा जाता है, दंडासन।

दंडासन, योग मुद्रा का एक सरल आसन है। यह आत्म-जागृति की ऊर्जा के लिए मार्ग बनाता है। इसलिए दंडासन को शक्ति और अच्छे रूप को बढ़ावा देने के लिए आदर्श आसन माना जाता है, जो किसी की आध्यात्मिक यात्रा का समर्थन करता है। आइये दंडासन करने के तरीके, फायदे और सावधानियों को विस्तार से जानते हैं।

अष्टांग नमस्कार – सूर्य नमस्कार के अब छठे स्टेप में आराम से अपने दोनों घुटने जमीन पर लाएं और सांस बाहर की ओर छोड़ें। अपने कूल्हों को ऊपर उठाते हुए पूरे शरीर को आगे की ओर खिसकाएं। इस स्थिति में अपनी कोहनियों को थोड़ा ऊपर ही रखना है परंतु छाती, दोनों हथेलियां,और ठोड़ी यह जमीन से टच करती रहेंगी। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं।

श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को ‘अनाहत चक्र’ पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

भुजंगासन – सूर्य नमस्कार के अब सातवें स्टेप में सांस भरते हुए अपने शरीर के ऊपरी भाग को गर्दन पीछे करते हुए उठाएं।अब हथेलियों को जमीन पर रखकर पेट को जमीन से मिलाते हुए सिर को पीछे आसमान की ओर जितना हो सके झुकाएं। ऐसा करते समय थोड़ी देर के लिए इसी स्थिति में रुकें और कंधे कानों से दूर, नजरें आसमान की ओर रखें। यह स्तिथि भुजंग यानी की cobra से मिलती-जुलती लगती है। दोनों पैरों को आपस में जोड़कर रखेंगें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं भुजंगासन।

पर्वत आसन – सूर्य नमस्कार के अब आठवें स्टेप में सांस बाहर की ओर छोड़ते हुए कूल्हों और रीढ़ की हड्डी के निचले भाग को ऊपर की ओर उठाएं। चेस्ट को नीचे झुकाकर एक उल्टे वी की तरह शेप में आ जाएं। इस दौरान एड़ियों को ज़मीन पर ही रखने का प्रयास करें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं पर्वत आसन।

अश्वसंचालन आसन – सूर्य नमस्कार के अब नौवें स्टेप में आपको धीरे-धीरे सांस लें और सीधा पैर पीछे की ओर फैलाएं। सीधे पैर का घुटना जमीन से मिलना चाहिए। अब दूसरे पैर को घुटने से मोड़े और हथेलियों को जमीन पर सीधा रखें। सिर को आसमान की ओर रखें। सांस भरते हुए दायां पैर दोनों हाथों के बीच ले जाना है और बाएं घुटने को जमीन पर रखना है। इस दौरान सिर और चेहरा ऊपर की तरफ रखें और पीछे देखने का प्रयत्न करें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं अश्वसंचालन आसन।

हस्तपाद आसन – सूर्य नमस्कार के अब दसवें स्टेप में सांस बाहर की ओर छोड़ते हुए बाएं पैर को आगे लाएं और हथेलियों को जमीन पर रखें। धीमे-धीमे अपने घुटनों को सीधा करें। हथेलियों को ज़मीन पर लगाकर रखें और सर नीचे की तरफ रहेगा और घुटनों को थोड़ा मुड़ा भी रहने दे सकतें हैं। अगर संभव हो तो अपनी नाक को घुटनो से छूने का प्रयत्न करें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं हस्तपाद आसन।

हस्तउत्थान आसन – सूर्य नमस्कार के अब ग्यारहवें स्टेप में सांस लेते हुए रीढ़ की हड्डी को धीरे से ऊपर की ओर लाएं और हाथों को ऊपर और पीछे की ओर ले जाएं। इस दौरान आपने कूल्हों को आगे की ओर धकेलें। दोनों हाथ कानों को स्पर्श करेंगे और खींचाव ऊपर की ओर महसूस करें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं हस्तउत्थान आसन।

प्रणाम मुद्रा – सूर्य नमस्कार के अब बारहवें स्टेप में सूरज की तरफ चेहरा करके सीधे खड़े हों और दोनों को पैरों को मिलाएं, कमर सीधी रखें। अब हाथों को सीने के पास लाएं और दोनों हथेलियों को मिलाकर प्रणाम की अवस्था बनाएं।सांस बाहर की ओर छोड़ते हुए पहले शरीर सीधा करें, फिर हाथों को नीचे लाएं और पहले जैसी प्रणाम की स्थिति में आ जायें। इस दौरान एकचित्त होकर शरीर में हो रही हलचल को महसूस करें। सूर्य नमस्कार की ऐसी स्थिति को ही कहते हैं प्रणाम मुद्रा।

सूर्य नमस्कार के आसन करने से वात, पित्‍त और कफ तीनों ही दोष शांत हो जाते हैं। खासतौर पर सूर्य नमस्कार वेट लॉस और डायबिटिज के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

सूर्य नमस्कार उगते सूरज के सामने करना बेहद लाभदायक माना जाता है। सुबह के समय खाली पेट सूरज की मुख करके सूर्य नमस्कार का आसन करना चाहिए। इससे शरीर को विटामिन डी मिलता है और आपके तन-मन की शक्ति में विकास होता है।

सूर्य नमस्कार और सावधानी

हर चीज के दो पहलू होते हैं। किसी भी चीज की अति बुरी होती है। इसी तरह सूर्य नमस्कार को गलत तरीके से करने व क्षमता से अधिक करने पर कई बार इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। सूर्य को नमस्कार करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अन्यथा आप विपरीत परिणाम भुगत सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि सूर्य नमस्कार के आसन करने के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. गर्भवती महिलाओं को सूर्य नमस्कार योग नहीं करना चाहिए।
  2. हर्निया और उच्च रक्तचाप वाले लोगों को भी सूर्य नमस्कार से दूर रहना चाहिए।
  3. शुरुआत में सूर्य नमस्कार के आसन धीरे-धीरे करने चाहिए। तेजी से करने व गलत करने से झटका लग सकता है और आपके अंग इससे प्रभावित भी हो सकते हैं।
  4. यदि आपको पीठ दर्द कम है, तो आपको नियमित रूप से सूर्य नमस्कार करना चाहिए। लेकिन वहीं अगर आपका पीठ दर्द ज्यादा है तो इस योग को करने का जोखिम न उठाएं।
  5. सूर्य नमस्कार के दौरान ढीले और आरामदायक कपड़ें ही पहनें।
  6. महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सूर्य को नमस्कार नहीं करने की सलाह दी जाती है। क्योंकि इससे रक्तस्राव ज्यादा होने का खतरा होता है।
  7. सूर्य नमस्कार करते समय हमें अपने शरीर की क्षमता के अनुरूप ही सभी स्टेप्स को करना चाहिए।
  8. सूर्य नमस्कार पूरे हो जाने के बाद कुछ देर शव-आसन करें। क्योंकि इससे सांसें सामन्य हो जाती हैं।
  9. सूर्य नमस्कार को सुबह ताज़ी हवा में खाली पेट करना चाहिए। खाना खाने के बाद या फिर रात में इस योग को करने से आपको काफी नुकसान हो सकता है।