आत्मघाती गलतियां ….!

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भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा एवं उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में प्रचण्ड बहुमत मिल जाने पर पार्टी ने जनता की उपेक्षा शुरू कर दी तथा उससे कई गंभीर गलतियां हुईं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे देश में अवतार-पुरुष की तरह उभरे हैं। पूरे विश्व में उनके-जैसा विराट व्यक्तित्व वाला अन्य कोई नेता नहीं है। उन्होंने हमारे मृत राष्ट्र को न केवल प्राणवान किया, बल्कि आज भारत पुनः ‘विश्वगुरु’ एवं ‘सोने की चिड़िया’ बनने की दिशा में अग्रसर है। यदि देश पर विश्वव्यापी कोरोना महामारी का घातक प्रकोप न हुआ होता तो हमारा देश मोदी के नेतृत्व में अबतक बुलंदी पर न जाने कहां पहुंच गया होता! कोरोना के कारण मोदी के उस महाअभियान को क्षति पहुंची। ऐसे महामानव नरेंद्र मोदी से भी चूकें हुईं।


लालकृष्ण आडवाणी-जैसे उच्चकोटि के नेता ने भारतीय जनता पार्टी को शून्य से शिखर पर पहुंचाया तथा भाजपा में मोदी सहित तमाम काबिल नेताओं की पीढ़ी तैयार की। ऐसे महान नेता की सिर्फ इसलिए उपेक्षा कर दी गई कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थे। यदि वह दौड़ में थे तो इसमें बुरा क्या था? इससे उनका अद्भुत योगदान कदापि कम नहीं हो जाता। रामजन्मभूमि आंदोलन के कारण भारतीय जनता पार्टी की जब तूती बोल रही थी, उस समय पूरे देश में लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता चरम पर थी और माना जा रहा था कि भाजपा की सरकार बनने पर वही प्रधानमंत्री बनेंगे। लेकिन यह उनका त्याग था कि मुम्बई की जनसभा में उन्होंने घोषणा कर दी कि भाजपा की सरकार बनने पर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनेंगे।जब अटल जी मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटा रहे थे, उस समय लालकृष्ण आडवाणी ने ही अड़कर मोदी को संरक्षण प्रदान किया था। यदि मोदी उस समय हटा दिए गए होते तो वह भी किसी कोने में पड़े रह जाते तथा हमारा देश एक बड़े उद्धारकर्ता के योगदान से वंचित हो जाता।
प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए था कि वह आडवाणी की प्रतिष्ठा के अनुरूप कोई अत्यंत महत्वपूर्ण आयोग बनाकर उन्हें उसका मुखिया बना देते। मोदी के घोर प्रशंसकों को भी अडवाणी की उपेक्षा बहुत खली।


इसी प्रकार बलराज मधोक-जैसी महान हस्ती भी उपेक्षित अवस्था में संसार से चली गई। मैं बहुत वर्षों से इस प्रयास में लगा था कि भारतीय जनता पार्टी बलराज मधोक को राज्यसभा में भेजे, लेकिन मेरा वह अथक प्रयास निष्फल हुआ। वर्तमान समय में सुब्रमण्यम स्वामी उपेक्षित पड़े हुए हैं, जबकि देशद्रोही नेहरू वंश से देश को बचाने में सुब्रमण्यम स्वामी की बहुत बड़ी भूमिका है। विलम्ब तो हो गया है, किन्तु भाजपा द्वारा उन्हें अब राज्यसभा में अविलम्ब भेजा जाना चाहिए।प्रधानमंत्री मोदी की एक और बड़ी गलती पचहत्तर साल वाला फारमूला है। उम्र के आधार पर किसी विशिष्ट योग्यता एवं क्षमता वाले व्यक्ति को किनारे कर देना बहुत अनुचित है। व्यक्ति उम्र से नहीं, विचारों से बूढ़ा होता है। एक से एक युवा व्यक्ति निष्क्रिय बूढ़ों से ज्यादा निरर्थक मिलेंगे। किन्तु राम नाईक-जैसे उम्रदराज व्यक्ति हैं, जो अट्ठासी वर्ष की अवस्था में भी पूरी तरह चुस्त-दुरुस्त और सक्रिय हैं। पचहत्तर वर्ष के हो जाने वाले व्यक्ति की क्षमता का फील्ड के बजाय अन्य रूपों में सदुपयोग किया जा सकता है।


७५ साल से अधिक उम्र के लोगों की उपेक्षा करते हुए नौजवानों के प्रति मोदी का झुकाव वैसा ही है, जैसा गांधीजी का हिंदुओं की उपेक्षा करते हुए मुसलमानों एवं नेहरू के प्रति था। हिंदुओं का फर्जी सेकुलरवाद एवं जातिवाद के प्रति लगाव भी बिलकुल उसी प्रकार घातक है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी चूक भाजपा शासित राज्यों में हुई। मोदी ने उन राज्यों को पूरी तरह छुट्टा छोड़ दिया, जबकि उन्हें ऐसा तंत्र बनाना चाहिए था, जिसके माध्यम से भाजपा – शासित राज्यों की सही एवं उपयोगी निगरानी सतत रूप से होती रहती। ऐसा होने पर वहां की सरकारों की गलतियों पर तुरंत अंकुश लग जाया करता।


मोदी का खुफियातंत्र भी कारगर नहीं सिद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप ‘शाहीनबाग’, ‘दिल्ली दंगा’, ‘लाल किले पर हमला’, ‘किसान आंदोलन’ आदि विनाशकारी घटनाएं हुईं। मोदी जिस उदारतावादी नीति पर चल रहे हैं, वह उचित है। लेकिन इस नीति का यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि नब्ज पर हाथ रखना बंद कर दिया जाय। नब्ज पर हाथ योग्य एवं कारगर खुफियातंत्र के माध्यम से ही रखा जा सकता है। आचार्य चाणक्य ने क्षमतावान खुफियातंत्र के महत्व पर बहुत अधिक जोर दिया है। भगवान राम भी अपने रामराज में खुफियातंत्र की उपेक्षा नहीं कर सके।


मोदी का उदारतावाद ठीक है, किन्तु देशद्रोहियों के प्रति उदारता बहुत घातक हुई है। नेहरू वंश का संरक्षण पाकर देशभर में देशद्रोही तत्व तरह-तरह के रूपों में काबिज हो गए और वे घुन की तरह देश को नष्ट कर रहे हैं। इन लोगों को अपने इस षड्यंत्र में सबसे बड़ी बाधा हिंदू धर्म एवं राष्ट्रवाद प्रतीत हो रही है, इसीलिए वे इन पर चौतरफा प्रहार कर रहे हैं। ऐसे तत्व संवैधानिक संस्थाओं एवं सरकारी विभागों में भी घुसे हुए हैं। यहां तक कि आश्चर्यजनक रूप से सूचना और प्रसारण मंत्रालय में भी उनकी मौजूदगी है। इन देशद्रोही तत्वों के प्रति मोदी को शुरू से उदारता की नहीं, अति कठोरता की नीति अपनानी चाहिए थी। खुफियातंत्र द्वारा देशभर में फैले हुए देशद्रोही तत्वों को ढूंढ़-ढूंढ़कर बाहर निकाला जाना चाहिए था,जिन्हें दंडित किया जाता।लोगों की आम धारणा है कि लोकतंत्र एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर न्यायपालिका देशद्रोही तत्वों को संरक्षण देती है। अतः इस समस्या की भी काट निकाली जानी चाहिए थी।


भाजपा द्वारा अगली गलती यह की गई कि जनता की समस्याओं के कारगर निराकरण की व्यवस्था नहीं की गई। भाजपा द्वारा जनता की उपेक्षा केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद ही शुरू हो गई थी। भाजपा के कर्णधार यह भूल गए कि युद्ध में बड़े-बड़े शस्त्रास्त्र महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन आम फौजी के योगदान के बिना विजय नहीं मिला करती है। नेहरू वंश ने लोकतंत्र को लोकविहीन कर तिकड़म की राजनीति की नींव डाली। उसने चुनाव को लोकसमर्थन के बजाय तिकड़मों द्वारा जीतने की प्रवृत्ति पैदा की। भारतीय जनता पार्टी को इस बुराई को समाप्त कर ‘लोक’ का महत्व पुनः स्थापित करना चाहिए था। ‘लोक’ का महत्व तब स्थापित होता, जब जनता की फरियाद की आसानी से सुनवाई होती तथा उसकी समस्याओं का त्वरित रूप से निस्तारण होता। लेकिन इस आशय का कोई सही तंत्र नहीं बनाया गया तथा केवल दिखावा होता रहा।


मुझे स्मरण है, जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे और अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष थे, उस समय अशोक मार्ग पर स्थित भाजपा के तत्कालीन मुख्यालय में फरियादियों की समस्याएं सुनने की कोई सही व्यवस्था नहीं थी। वहां मैंने अनेक बार देखा था कि प्रार्थी सुबह से शाम तक खड़े हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। बाद में जो व्यवस्था बनाई भी गई, वह दिखावे भर की सिद्ध हुई।दिल्ली में भाजपा के तमाम प्रकोष्ठ इसलिए निरर्थक हो गए थे उनके पदाधिकारियों के कहने पर प्रकोष्ठों से सम्पर्क करने वालों की समस्याएं कभी नहीं निस्तारित हो पाती थीं। इसी से प्रकोष्ठों के पदाधिकारी या तो मुख्यालय में मौजूद नहीं होते थे और आते भी थे तो निष्क्रिय बैठे रहते थे।