यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम

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यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम
यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम

यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम

लौटनराम निषाद

जाति है कि जाती नहीं,यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम। मनुस्मृति,रामचरितमानस,बंच ऑफ थॉट्स पूर्णतः जातिवादी व बहुजन विरोधी साहित्य।”जाति है कि जाती नहीं” वर्तमान में ये वाक्य कितना प्रासंगिक है? वर्तमान समय में यह एक प्रसांगिक सवाल है। क्योंकि ऐसा देखने को मिलता है कि जातिवाद ने किस तरह से पूरे समाज को खोखला कर रखा है। जातिवाद वो दीमक है, जो समाज को खाता जा रहा है।


कटिंग चाय व उल्टा चश्मा से अपनी पहचान बनाने वाली यादव जी की दुल्हनिया मिश्रा जी का ब्राह्मण प्रेम आखिर कुलाचे मारने ही लगा।बिहार सरकार के शिक्षामंत्री प्रो.चन्द्रशेखर सिंह यादव द्वारा मनुस्मृति, रामचरितमानस, बंच ऑफ थॉट्स को जातिवादी व बहुजन विरोधी बताने पर पत्रकार श्रीमती मिश्रा जी को ओछी टिप्पणी तुच्छजातिवाद का परिचायक है। शिक्षामंत्री प्रो.चंद्रशेखर की शिक्षा पर मिश्रा जी द्वारा टिप्पणी करने पर भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि जाति है कि जाती नहीं कि कहावत को चरितार्थ करते हुए यादव जी की दुल्हनिया का ब्राह्मण प्रेम उबाल मारने ली लगा।

उन्होंने कहा कि यादव जी दुल्हनिया मिश्रा जी बंच ऑफ थॉट्स का अनुपालन करते हुए ही यादव जी की दुल्हनिया बनी हैं।उन्होंने आगे कहा कि क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले,राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले व मैकाले नहीं होते तो प्रज्ञा पत्रकार व एंकर नहीं,मनुस्मृति के विधान के अनुसार चौका बर्तन तक सीमित होतीं।मनुस्मृति का “स्त्री शूद्रो नाधियतां” का विधान सभी जाति की स्त्रियों व 85 प्रतिशत ओबीसी,एससी, एसटी को शिक्षा न देने का नियम बनाया था।उन्होंने मनुस्मृति, रामचरितमानस व गुरु गोलवलकर की बंच ऑफ थॉट्स,वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड पूर्णतया जातिवादी,मानवता व संविधान विरोधी साहित्य हैं। निषाद ने रामचरितमानस, मनुस्मृति को संविधान और मानव विरोधी ग्रंथ बताते हुए उसे असंवैधानिक और मानवद्रोही घोषित कर प्रतिबंधित किया जाना चाहिए

जातिवाद किसे कहते हैं? भारत में वैदिक काल से हि वर्ण व्यवस्था थी. वर्ण व्यवस्था जातिवाद का पर्याय नहीं हैं लेकिन पूर्ववर्ती जरूर कहि जा सकती हैं. वैदिक समय में वर्ण व्यवस्था का स्वरुप इस दोहे से समझा जा सकता हैं। “शूद्रेण हि समस्तावत यौद्धे दे न जायते।जन्मनाजायतेशूद्रः संस्काराद्विज उच्च्यते।” अर्थात जन्म से सभी शुद्र हैं किन्तु शुद्धि संस्कार से ह्म द्विज आदि उच्च वर्ण को प्राप्त करते हैं।इसके वाद रामायणकाल में भी लगभग यही व्यवस्था रही और महाभारतकाल तक आते आते वर्ण व्यवस्था जन्म से होने लगी। उत्तराधिकार भी नियम बदल गए। राजा का बेटा राजा बनने लगा। क्षतिर्य ब्राह्मण योग्यता से नही कर्म से भी नही जन्म से ही माने जाने लगे। समांज में यह विकृति आ गयी।


संविधान के अनुच्छेद 45 में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं की शिक्षा अनिवार्य और मुफ्त करने की बात लिखी गयी है लेकिन तुलसी की रामायण इसका विरोध करने की वकालत करती है।उन्होंने बताया कि तुलसी के रामायण में लिखा है- “अधम जाति में विद्या पाए,भयहु यथा अहि दूध पिलाए।” अर्थात जिस प्रकार से सांप को दूध पिलाने से वह और विषैला (जहरीला) हो जाता है वैसे ही शूद्रों (नीच जाति ) को शिक्षा देने से वे और खतरनाक हो जाते हैं। संविधान जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव करने की मनाही करता है तथा दंड का प्रावधान देता है लेकिन तुलसी का रामायण (राम चरित मानस) जाति के आधार पर ऊंच-नीच मानने की वकालत करती है।रामचरितमानस दोहा 99 (3) उत्तर-कांड इसका उदाहरण है। “जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,स्वपच किरात कोल कलवारा।” अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी(वाल्मीकि, धानुक), आदिवासी,कोल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं।यह संविधान की धारा-14 व 15 का उल्लंघन है।संविधान सब की बराबरी की बात करता है। जबकि तुलसी की रामायण जाति के आधार पर ऊंच-नीच की बात करती है, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।


“आभीर (अहीर) यवन किरात खल स्वपचादि अति अधरूप जे”


अर्थात अहीर (यादव), यवन (बाहर से आये हुए लोग जैसे इसाई और मुसलमान आदि), आदिवासी, दुष्ट, सफाई कर्मचारी आदि अत्यंत पापी हैं,नीच हैं। तुलसी दास कृत रामायण (रामचरितमानस) में तुलसी ने छुआछूत की वकालत की है, जबकि यह कानूनन अपराध है।रामचरितमानस का दोहा 12(2)अयोध्या-कांड उदाहरण है।

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निषाद ने आगे बताया की तुलसी ने निषाद के बारे में लिखा है- “कपटी कायर कुमति कुजाती,लोक,वेद बाहर सब भांति।” तुलसी ने रामायण में निषाद को कायर,कुमति, नीच जाति वाला कहकर अपमानित किया, जो संविधान का खुला उल्लंघन है।आगे इसने निषाद की तरफ से लिखा है- “लोक वेद सब भाँतिहि नीचा,जासु छांह छुई लेईह सींचा।” केवट (निषाद, मल्लाह) समाज, वेद शास्त्र दोनों से नीच है,अगर उसकी छाया भी छू जाए तो नहाना चाहिए।तुलसी ने केवट को कुजात कहा है जो संविधान का खुला उल्लंघन है।दोहा 195 (1) अयोध्या-कांड इसका प्रमाण है।तुलसी ने निषाद के मुंह से उसकी जाति को चोर, पापी, नीच कहलवाया है। “हम जड़ जीव जीवगन घाती,कुटिल कुचाली कुमति कुजाती”,”यह हमरि अति बड़ सेवकाई,लेहि न बासन बसन चोराई।”,”एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं, बड़ वशिष्ठ सम को जग माहीं।” अर्थात हमारी तो यही बड़ी सेवकाई है कि हम आपके कपड़े और बर्तन नहीं चुरा लेते (यानि हम तथा हमारी पूरी जाति चोर हैं।हम लोग जड़जीव हैं, जीवों की हिंसा करने वाले हैं।

निषाद ने कहा कि जब संविधान सबको बराबर का हक देता है तो रामायण को गैर-बराबरी एवं जाति के आधार पर ऊंच-नीच फैलाने वाली व्यवस्था के कारण उसे तुरंत जब्त कर लेना चाहिए, नहीं तो इतने सालों से जो रामायण समाज को भ्रष्ट करती चली आ रही है इसकी पराकाष्ठा अत्यंत भयानक हो सकती है।नफरत से भरी मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच आफ थाट्स जैसी किताबों को जला देना चाहिए।यह पूर्णतः भेदभाव पर आधारित जातिवादी और संविधान साहित्य है।कहा कि आज तुलसीदास ज़िन्दा होते तो उनपर जाति अपमान करने के लिए मानहानि का मुकदमा ठोक देते।वनवास काल मे तथाकथित राम की जिन निषाद, केवट,कोल, भील,किरात,वानर,ऋक्ष आदि आदिवासियों ने शरण दिया, मदद किया,उन्हीं को तुलसीदास से गाली लिखा।

तथाकथित राम की मदद किसी सवर्ण या ब्राह्मण ने तो नहीं किया।जिन जातिवादियों को अहीर,महार, चमार,खटिक,कोरी,भील,दुसाध,निषाद, मल्लाह,यवन से छूट लगता है,घिन आती है,बड़ा आदमी बनने पर उन्हीं समाजविध्वंशकों ने डॉ.अम्बेडकर,डॉ. महेन्द्र सिंह यादव, रामदास अठावले,उदितराज, रामबिलास पासवान,रामनाथ कोविंद, बृजराज मीणा,जुबिन ईरानी,मो. करीम, मो.अजरूद्दीन, आमिर खान, शाहरुख खान, सुहेल खान,अरबाज खान,सैफ अली खान, नसीरूद्दीन शाह,संजय मल्लाह आदि को बंच ऑफ थॉट्स के अनुसार रिश्तेदार बना लिया।

( यह लेखक के अपने विचार हैं संपादक का सहमत होना जरूरी नहीं है)

यादव जी की दुल्हनिया का जागा ब्राह्मण प्रेम