ब्राह्मण कौन....!
ब्राह्मण कौन....!

ब्राह्मण कौन….!

ब्राह्मण वह है जो वशिष्ठ के रूप में केवल अपना एक दंड जमीन में गाड़ देता है,जिससे विश्वामित्र के समस्त अस्त्र शस्त्र चूर हो जाते हैं और विश्वामित्र लज्जित होकर कह पड़ते हैं- धिक बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलं बलं। एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्वस्त्राणि हतानि में। (क्षत्रिय के बल को धिक्कार है।ब्राह्मण का तेज ही असली बल है।ब्राह्मण वशिष्ठ का एक ब्रह्म दंड मेरे समस्त अस्त्र शस्त्र को निर्वीर्य कर दिया) ब्राह्मण वह है जो परशुराम के रूप में एक बार नहीं,21 बार आततायी राजाओं का संहार करता है।जिसके लिए भगवान राम भी कहते हैं-


विप्र वंश करि यह प्रभुताई। अभय होहुँ जो तुम्हहिं डेराई।
जिनके विषय मे यह श्लोक प्रसिद्ध है-
अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः । इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

ब्राह्मण जाति का इतिहास प्राचीन भारत से भी पुराना माना जाता है, ब्राह्मण जाति की जड़े वैदिक काल से जुड़ी हुई हैं। प्राचीन काल से ही ब्राह्मण जाति के लोगों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था, उस समय ब्राह्मण जाति के लोग सबसे ज्ञानी माने जाते थे। इस जाति के लोगों को प्राचीन काल से ही उच्च एवं बड़े लोगों की श्रेणी में देखा जाता रहा है।ब्राह्मण समाज की अगर बात करें तो ब्राह्मण समाज दुनिया के सबसे पुराने संप्रदाय एवं जाति में से एक है। पुराने वेदो एवं उपनिषदों के अनुसार “ब्राह्मण समाज का इतिहास”, सृष्टि के रचयिता “ब्रह्मा” से जुड़ा हुआ है। वेदों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि “ब्राह्मणों की उत्पत्ति” हिंदू धर्म के देवता “ब्रह्मा” से हुई थी। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान समय में जितने भी ब्राह्मण समाज के लोग हैं वे सब भगवान ब्रह्मा के वंशज हैं।

उस दौर में धार्मिक एवं जाति मतभेद वर्तमान समय के मुकाबले चरम सीमा पर था, हिंदू धर्म के लोगों को “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र” चार हिस्सों में बांटा गया था। इस जाति के बंटवारे में ब्राह्मण समाज के लोगों को सबसे उच्च स्थान प्राप्त हुआ। उस दौर में ब्राह्मण जाति के लोगों को सबसे ज्ञानी एवं कर्मठ माना जाता था इसलिए इनका मुख्य कार्य ज्ञान धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा देना एवं राजकुमारों एवं राजघराने के लोगों को आचार्य बनकर ज्ञान देना होता था।ब्राह्मणों को राज परिवारों में सबसे अधिक शोहरत और इज्जत दी जाती थी। इतिहासकारों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक हिंदू राजा के राज दरबार में राजगुरू (ब्राह्मण) की आज्ञा के बिना राजा कोई कार्य नहीं करता था। इस बात का सबसे प्रमुख उदाहरण चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की जोड़ी थी।

महर्षि मनु के अनुसार ब्राह्मण किसे कहते हैं? महर्षि मनु के अनुसार विधाता शासिता वक्ता मो ब्राह्मण उच्यते।तस्मै नाकुशलं ब्रूयान्न शुष्कां गिरमीरयेत्॥
अर्थात-शास्त्रो का रचयिता तथा सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, शिष्यादि की ताडनकर्ता, वेदादि का वक्ता और सर्व प्राणियों की हितकामना करने वाला ब्राह्मण कहलाता है। अत: उसके लिए गाली-गलौज या डाँट-डपट के शब्दों का प्रयोग उचित नहीं” (मनु; 11-35)

प्राचीनकाल से वर्तमान काल तक ब्राह्मण समाज के लोगों ने कला, साहित्य, विज्ञान, राजनीति, संस्कृति और संगीत जैसी प्रमुख क्षेत्रों में अपना अहम योगदान दिया। प्राचीन भारत से आधुनिक भारत तक ब्राह्मण समाज में अनेकों महान व्यक्तियों एवं महान आत्माओं ने जन्म लिया जिनमें से परशुराम चाणक्य बाल गंगाधर तिलक आदि प्रमुख थे।
ब्राह्मण निर्धारण (ब्राह्मण कौन है?) प्राचीन समय से ब्राह्मणों का निर्धारण माता पिता की जाति के आधार पर होने लगा है, लेकिन स्कंदपुराण के अनुसार ‘ब्राह्मण’ जाति नहीं है। स्कंद पुराण में आध्यात्मिक दृष्टि से बताया गया है कि जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के पश्चात भी ब्राह्मण वाले कर्मकांड ना करें या फिर मदिरा एवं मांस का सेवन करें तो वह व्यक्ति एक शूद्र के समान है, ऐसे व्यक्ति को ब्राह्मण का दर्जा देने का कोई अधिकार नहीं है।

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ब्राह्मण का व्यवहार एवं दिनचर्या

ब्राह्मण समाज के लोगों की जो पारंपरिक दिनचर्या और व्यवहारिक स्थिति थी, वह अपने आप में एक आदर्श दिनचर्या थी। लेकिन वर्तमान समय में पारंपरिक दिनचर्या में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। पारंपरिक दिनचर्या के अनुसार हिंदू ब्राह्मण अपनी धारणा और धर्म आचरण को महत्व देते थे, यह दिनचर्या कुछ इस प्रकार थीं – “सुबह जल्दी उठकर स्नान करना, संध्या वंदना करना, व्रत एवं उपासना करना आदि।व्यवहारिक दृष्टि से ब्राह्मण काफी सरल होते हैं, वे मांस शराब आदि का सेवन एवं धर्म के विरुद्ध हो वह काम नहीं करते हैं। ब्राह्मण स्वाभाविक रूप से सकारात्मक होते हैं और वे दूसरों के सुखी और संपन्न होने की कामना करते हैं। सामान्यतः ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं लेकिन वर्तमान समय में ब्राह्मण जाति के लोगों में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है जो समय के साथ जारी हैं।परन्तु आजकल इसका अभाव होता जा रहा है।

कोई भी मनुष्य ब्राह्मण बन सकता है। जितना सत्य यह है कि केवल जन्म से ब्राह्मण होना संभव नहीं है, यह भी उतना ही सत्य है कि कर्म से कोई भी ब्राह्मण बन सकता है। इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते जो इस प्रकार हैं।

ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे। परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है।
ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। जुआरी और हीनचरित्र भी थे। परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये|ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया। (ऐतरेय ब्राह्मण२.१९)
सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे। परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।
राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। (विष्णु पुराण ४.१.१४)
राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए। पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण ४.१.१३)
धृष्ट नाभाग के पुत्र थे, परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण ४.२.२)
आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए। (विष्णु पुराण ४.२.२)
भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए।
विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने।
हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए। (विष्णु पुराण ४.३.५)
क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया। (विष्णु पुराण ४.८.१)
वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं।
मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने।
ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना।
राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ।
त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया। विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया।
विदुर दासी पुत्र थे। तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया।


ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति

ब्राह्मण जाति के लोग मुख्यत उत्तर और मध्य भारत के ज्यादातर पठार इलाकों में पाए जाते हैं, इसके अलावा ब्राह्मणों की कुछ संख्या पूरे भारत में पाई जाती है। ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति बेहतर है, इस जाति के लोग अपनी जीविका चलाने के लिए व्यवसाय, नौकरी, खेती, ज्योतिष शास्त्र आदि पर निर्भर होते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण जाति से कई बड़ी हस्तियां हैं जो न्यायजगत,राजनीति प्रशासनिक अधिकारी, बॉलीवुड, क्रिकेट अन्य क्रिएटिव फील्ड एवं खेल जगत आदि में आसीन है


ब्राह्मणों की उपजातियाँ

ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में शुक्ल,त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में खाण्डल विप्र, ऋषीश्वर,वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज ,सनाढ्य ब्राह्मण, राय ब्राह्मण त्यागी अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखंड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण,रम पाल मध्य प्रदेश में कहीं कहीं वैष्णव (बैरागी)(, बाजपेयी, बिहार व बंगाल में भूमिहार, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मणमें चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि, बिहार में मैथिल ब्राह्मण आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय (मग)कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है।

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। गुरुकुल की अब वह परंपरा नहीं रही। जिन लोगों ने ब्राह्मणत्व अपने प्रयासों से हासिल किया था उनके कुल में जन्मे लोग भी खुद को ब्राह्मण समझने लगे। ऋषि-मुनियों की वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं, जबकि उन्होंने न तो शिक्षा ली, न दीक्षा और न ही उन्होंने कठिन तप किया। वे जनेऊ का भी अपमान करते देखे गए हैं।

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