क्या सुप्रीम कोर्ट आपसी सहमति से तलाक का डिक्री पारित कर सकती है?

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क्या सुप्रीम कोर्ट की एकल पीठ आपसी सहमति से तलाक का डिक्री पारित कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट के विरोधाभासी फैसले…..

सुप्रीम कोर्ट की एकल पीठ आपसी सहमति से तलाक का डिक्री पारित कर सकती है? कुछ न्यायाधीशों ने अकेले बैठकर तलाक की ऐसी डिक्री पारित की हैं, और कुछ अन्य ने यह कहते हुए कि उनके पास ऐसी शक्ति नहीं है, मामलों को डिवीजन बेंच को भेज दिया है।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की एकल पीठ ने आपसी सहमति से तलाक की डिक्री देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू किया।

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील का निपटारा करते हुए ये आदेश दिया, जिसमें उसकी पत्नी द्वारा उसके खिलाफ धारा 498-ए, 354, 323, 377 और 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने के लिए ‘पति’ की याचिका खारिज कर दी गई थी।

अपील के लंबित रहने के दौरान, पक्षकारों ने मामले को सुलझा लिया था। समझौते को रिकॉर्ड करते हुए, न्यायाधीश ने आपसी सहमति से तलाक की डिक्री देने के उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

हाल ही में न्यायमूर्ति एएस ओका की एक और एकल पीठ ने कहा था कि एक एकल पीठ आपसी सहमति से तलाक की डिक्री पारित नहीं कर सकती है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के नियम 2013 को उन मामलों की श्रेणियों को निर्धारित करने के लिए संशोधित किया गया था जिन्हें एकल न्यायाधीश बेंच द्वारा सुना और निपटाया जा सकता है।

आदेश VI नियम 1 में उक्त संशोधन के बाद निम्नानुसार कहता है:

बशर्ते कि निम्नलिखित श्रेणियों के मामलों की सुनवाई और अंतिम रूप से निपटारा मुख्य न्यायाधीश द्वारा अकेले नामित एक न्यायाधीश द्वारा किया जा सकता है:

(i) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 की 2) की धारा 437, धारा 438 या धारा 439 के तहत पारित आदेश के खिलाफ दायर मामलों में जमानत आवेदन या अग्रिम जमानत आवेदन के अनुदान, खारिज करने या अस्वीकृति से उत्पन्न होने वाली विशेष अनुमति याचिकाएं ) सात साल तक की सजा के साथ दंडनीय अपराध शामिल ;

(ii) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 की 2) की धारा 406 के तहत मामलों के ट्रांसफर के लिए आवेदन;

(iii) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 की 5) की धारा 25 के तहत मामलों के ट्रांसफर के लिए तत्काल प्रकृति का आवेदन;

(iv) मुख्य न्यायाधीश द्वारा समय-समय पर अधिसूचित मामलों की कोई अन्य श्रेणी, जिसे उसके द्वारा अकेले नामित न्यायाधीश द्वारा सुना और निपटाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने इस साल की शुरुआत में पारित एक आदेश में यह भी कहा था कि आपसी सहमति से विवाह के समाप्त करने का आदेश एकल न्यायाधीश द्वारा नहीं दिया जा सकता है और यह केवल डिवीजन बेंच द्वारा ही किया जा सकता है। जबकि न्यायालय का एकल न्यायाधीश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है, यह शक्ति या अधिकार क्षेत्र केवल 2013 के नियमों के आदेश VI नियम (1) के प्रोविज़ो में संदर्भित मामलों की चार श्रेणियों या सहायक या सीधे उनसे संबंधित विषयों तक ही सीमित होना चाहिए।

हालांकि, न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने अकेले बैठकर विवाह- समाप्ति का आदेश पारित कर एक ट्रांसफर याचिका का निपटारा कर दिया। इसी तरह का आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने भी पारित किया था।