लोकतंत्र में ऐसे बुरे दिन क्या कभी हो सकते हैं….?

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राजेंद्र चौधरी

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा है कि इधर जबसे लोकसभा उपचुनाव- 2022 के नतीजे आये हैं भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कुछ ज्यादा ही इतरा रहा है। एक दूसरे को मिठाई खिलाना, एक दूसरे की पीठ थपथपाना लोकतंत्र का उपहास है। हालांकि भाजपा इस सच्चाई से अवगत है कि इन चुनावों में भी जीत के लिए वहीं सब धांधली की गई जैसी सन् 2022 के आम विधानसभा चुनावों में की गई थी।भाजपा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती है कि अखिलेश यादव के विराट व्यक्तित्व और स्वच्छ छवि के सामने भाजपा तमाम अनियमितताएं करके भी टिक नहीं सकती। यह कैसी विडम्बना है कि जनहित में बिना कोई विकास कार्य किए कपटपूर्ण राजनीति की जा रही है और उसे ही अपनी उपलब्धियों में शामिल किया जाता है। लोकतंत्र में ऐसे बुरे दिन क्या कभी हो सकते हैं कि नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति को परास्त करने की साज़िश हो, और इसे ही अपनी सफलता का मूल समझा जाने लगे?


अखिलेश यादव के सहज, सरल, बेदाग और सक्षम नेतृत्व से भाजपा सहमी-सहमी रहती है। यह वही श्री अखिलेश यादव हैं जो 24 घण्टा लगातार गाजीपुर से लखनऊ तक बिना रुके, बिना थके जगह-जगह एकत्र विशाल जनसमुदाय को सम्बोधित करते रहे तब केन्द्र की सरकार ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार निश्चित जानकर तीन काले कृषि कानूनों को आनन-फानन में वापस ले लिया था।जाने माने इतिहासकार श्री रामचन्द्र गुहा ने ठीक ही लिखा है कि ‘जब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर आ गए और इनमें से कई राज्यों में भाजपा ने अपनी स्थिति खराब देखी तब 19 नवम्बर 2021 को प्रधानमंत्री जी ने कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए राष्ट्र को सम्बोधित किया। प्रधानमंत्री जी ने किसानों से जो माफी मांगी, उसका कारण भी उत्तर प्रदेश का आसन्न चुनाव ही है। मैंने कृषि कानूनों के कुछ समर्थकों की ट्विटर पर हताश टिप्पणियां देखी कि इनकी वापसी देष के लिए एक बड़ा झटका है। लेकिन इन कानूनों को तैयार करके इन्हें लागू करने और आंदोलनकारियों पर सख्ती बरतने के जरिए संघीय ढ़ांचे, लोकतंत्र और संविधान की गरिमा का जिस तरह मजाक उड़ाया गया उन्हें देखते हुए इन कानूनों की वापसी सत्याग्रह की, अहंकार तथा अक्खड़पन के खिलाफ सत्य की विजय है। यह अधिनायकवाद पर लोकतंत्र की एक दुर्लभ जीत है।


अखिलेश यादव ने यूपी में अकेले दम हजारों सभायें की जिसमें लाखो लोगों की उपस्थिति रहती थी जबकि विधानसभा चुनावों में भाजपा का केन्द्र और राज्य का डबल शीर्ष नेतृत्व भी निष्पक्षता से मुकाबला करने में सक्षम नहीं दिखा। भाजपा ने लोकतंत्र की पवित्रता को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा नेतृत्व तीसमार खां बना बैठा है। वैसे भी भाजपा का लोकतंत्र के बारे में नकारात्मक रूख रहा है। पंचायत चुनावों से लेकर 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों तक भाजपा का ट्रैक रिकार्ड निम्नस्तर पर धांधलेबाजी करने का दिखाई दिया है। चुनाव की निष्पक्षता को कलंकित करने में भाजपा आगे रही है।


भाजपा ने इन उपचुनावों में सत्ता का दुरूपयोग करने और समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। प्रदेश का हर व्यक्ति भाजपा राज में महंगाई, भ्रष्टाचार और अराजकता से परेशान है। कानून व्यवस्था ध्वस्त है। शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। भाजपा ने देश को अंधेरे में ढकेल दिया है। प्रदेश की जनता में भाजपा सरकार के प्रति पनप रहे आक्रोश से भयभीत भाजपा नेतृत्व विपक्ष में भ्रम पैदा करने के षडयंत्र करने लगी है।इसमें श्री यादव ही सबसे बड़े प्रतिरोधक साबित हो रहे हैं। इसलिए भाजपा के साजिशकर्ता श्री अखिलेश यादव को ही निशाने पर रख रहे हैं।


सन् 2024 के लोकसभा के आम चुनावों में अखिलेश यादव न केवल प्रत्येक मंडल और विधानसभा क्षेत्रों में सभायें करेंगे बल्कि इस बीच जनपदो का सघन दौरा भी करेंगे। भाजपा की अन्यायपूर्ण राजनीति का दमखम और भाजपा के तात्कालिक क्षणिक उत्साह का तब कहीं अतापता नहीं चलेगा जब अखिलेश यादव का समाजवादी रथ दौड़ेगा। भाजपा यह समझ ले लोकतंत्र में अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता है।कौन नहीं जानता कि अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में जो विकास का रास्ता अपनाया था उस पर भाजपा दो कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी।अखिलेश यादव ने अपने परिश्रम और संघर्ष से राजनीति के नये मानक गढ़े हैं, यह सब ए.सी. कमरे में बैठ कर सम्भव नहीं हो सकता है। जो अन्यथा सोचते हैं वे वास्तविकता से दूर दीर्घकालिक यथार्थ राजनीति की समझ भाजपा नेतृत्व सहित तमाम ऐसे लोग अंधेरे में खड़े है।