नहर अउ नलकूप ते केतना धान होइ….?

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चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे से….


नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान

ककुवा ने प्रपंच का आगाज करते हुए कहा- बताव, आषाढ़ क ग्यारह दिन होइगे। स्वाति नक्षत्र चलि रहा। आजु एकादशी हय। आजु ते चतुर्मासव शुरू होइगा। चार नवंबर तलक चतुर्मास चलि। धान रोपाई क्यारु समय बीतत जाय रहा। मुला, बरिखा महरानी क कौनव अतापता नाइ हय। रोज खाली बादर आसमान म उमड़-घुमड़त हयँ। कड़ी धूप अउ उमस ते प्रान जाय रहे। धान केरी पौध झुलस रही। आखिर बरसात कब होई? का जब खेती बंटाधार होय जाइ। आषाढ़ म झमाझम बरिखा होय क चही। जिहते धान रोपाई समय ते होय जाय। नहर अउ नलकूप त केतना धान पइदा होई? वहय कहावत ‘का बरसे कृषि सुखाने’। राजा इंदर जाने कब झोरि क बरसिहैं?


चतुरी चाचा अपने प्रपंच चबूतरे पर पलथी रमाये बेना झल रहे थे। ककुवा, मुंशीजी, कासिम चचा व बड़के दद्दा तपते आषाढ़ से बेहाल थे। आज उमस भरी सड़ी गर्मी थी। कड़ी धूप में धरती जल रही थी। आसमान में सफेद-भूरे बादल किसानों को चिढ़ा रहे थे। पुरई श्यामा गाय को नहला रहे थे। वहीं, गांव के बच्चे पेड़ों के झुरमुट में लुकी-लुकव्वर खेल रहे थे। मेरे चबूतरे पर पहुँचते ही ककुवा ने प्रपंच शुरू कर दिया। उनका कहना था कि आषाढ़ के 11 दिन हो गए। स्वाति नक्षत्र चल रहा। आज से चतुर्मास भी लग गया है। लेकिन, बरसात अभी भी नहीं हो रही है। आखिर बारिश कब होगी? धान रोपाई का यही सीजन है। सबकी ‘बेढ़’ तैयार है। नहर और नलकूप से कितना धान पैदा हो पाएगा? नहरों में जरूरत के मुताबिक पानी नहीं आता है। सरकारी नलकूपों की संख्या सीमित है। निजी नलकूपों की सिंचाई बड़ी महंगी है। किसान तो बरखा के ही सहारे रहता है। जब अच्छी बरसात होती है। तब धान की उपज अच्छी मिलती है। अब झमाझम बारिश होनी चाहिए। अगर अभी बरसात न हुई तो खेती बंटाधार हो जाएगी। इंद्रदेव को पता नहीं क्या सूझा है?


इस पर चतुरी चाचा बोले- सब जलवायु परिवर्तन केर खेला हय। प्रकृति ते खेलवाड़ महंगा परय लाग हय। मौसम क्यार चक्र बिगरि रहा। न समय ते बारिखा होत हय अउ न जाड़ा-गरमी। तुम पंच याक बात अउर नोट किहे होइहौ। कयू सालन ते बरसात अउ जाड़ घटा हय। गरमी जरूरत ते जादा बढ़ी हय। भूजल क्यारु स्तर पाताल जाय रहा। लोगन केरी बोरिंगय फेल होय रहीं। कुआं-ताल तौ मानो सब सुखिनगे। यही तिना जौ रहा तौ याक दिन सिंचाई क पानी छोड़व, पीयय वाले पानी ख़ातिन कटाजूझज होई। इहिमा भगवान कय कौनिव गलती नाइ हय। युह सब हमार पँचन क्यार कीन धरा आय। हम पंच जल, जंगल, जमीन अउ आसमान पय अतिक्रमण-प्रदूषण करतय जाय रहेन। नदी बांधत अउ पहाड़ खोदत जाय रहेन। बिरवा-पालव काटि क कंक्रीट केरे जंगल उगाय रहेन। यहिका खामियाजा तौ भुगतय क परी न।इसी बीच चंदू बिटिया जलपान लेकर आ गई। आज जलपान में कटहल की स्वादिष्ट बरिया और बेल का ठंडा शर्बत था। हम सबने कटहल की दो-दो बरिया ख़ाकर नल का ताजा पानी पीया। फिर बेल के शर्बत के साथ प्रपंच आगे बढ़ा।


बड़के दद्दा ने कहा- जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं से केवल भारत ही नहीं, बल्कि समूचा विश्व जूझ रहा है। मौसम का मिजाज हर देश में बिगड़ चुका है। भारत में तो फिर भी गनीमत है। इस पर विश्व समुदाय को बहुत कुछ करना होगा। प्रकृति से खिलवाड़ अब बिल्कुल बन्द करना होगा। प्रदूषण पर लगाम लगानी पड़ेगी। साथ ही, जल संरक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। धरती का दोहन कम से कम किया जाए। पृथ्वी पर वन का अनुपात ठीक करने की सफल कोशिश होनी चाहिए। कागज के बजाय जमीन पर पौधरोपण हो। तभी इस समस्या से मुक्ति मिल सकेगी। मोदी सरकार इस दिशा में बड़ा काम कर रही है। देश में बड़े पैमाने पर पौधारोपण हो रहा है। हर जिले में 75 अमृत सरोवरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा प्रदूषण को कम करने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार द्वारा उठाये गए इन कदमों से निकट भविष्य में बड़ा लाभ होगा। लेकिन, अपेक्षित लाभ तभी होगा। जब समाज जागरूक और संगठित होकर सरकार का साथ देगा। हर व्यक्ति को अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध रखने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी।


मुंशीजी ने विषय परिवर्तन करते हुए कहा- भाजपा ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर देश को बड़ा संदेश दिया है। बहन मुर्मू की जीत भी सुनिश्चित है। राष्ट्रपति चुनाव की रस्म अदायगी होनी है। क्योंकि, एनडीए के घटक दलों के अलावा अन्य कई क्षेत्रीय दल भी मुर्मू के समर्थन में हैं। बस, विपक्ष ने मुर्मू को निर्विरोध राष्ट्रपति नहीं होने दिया। उन लोगों को तो अपने दलों में कोई राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार ही नहीं मिला। अंततः भाजपा के ही बागी नेता यशवंत को लाकर खड़ा कर दिया। भाजपा ने इसके पहले भी कानपुर के एक दलित अधिवक्ता कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया था। खबरों की माने तो भाजपा उप राष्ट्रपति के पद पर किसी मुस्लिम नेता को बैठा सकती है। सच पूछिए तो सत्ता प्रतिष्ठान में दलितों, पिछड़ों, वंचितों, अल्पसंख्यकों, जनजातियों और आदिवासियों की भागीदारी बहुत जरूरी है।


कासिम चचा ने जम्मू कश्मीर में बादल फटने की चर्चा करते हुए कहा- यहाँ हम लोग बारिश का इंतजार कर रहे हैं। उधर, अमरनाथ में बादल फट पड़ा। जुम्मे के रोज बड़ी दर्दनाक घटना घटित हुई। अचानक बादल फटने से भारी बारिश हुई। पहाड़ों से हुए तेज जल प्रवाह में मन्दिर के समीप के तमाम टेंट बह गए। बताया जा रहा है कि 15-20 शिव भक्त बेमौत मारे गए। वहीं, 35-40 श्रद्धालु लापता हो गए। जाने कहाँ-कहाँ से बेचारे भोलेनाथ के दर्शन करने गए थे। परन्तु, सबके सब दैवीय आपदा के शिकार हो गए। इसी तरह कुछ साल पहले केदारनाथ में जल प्रलय हुई थी। वहां भी सैकड़ों लोग काल कलवित हो गए थे। भगवान को अपने भक्तों पर रहम करना चाहिए।


मैंने कोरोना अपडेट देते हुए प्रपंचियों को बताया कि विश्व में अबतक करीब 56 करोड़ लोग कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं। इनमें 63 लाख 71 हजार से अधिक लोग बेमौत मारे जा चुके हैं। इसी तरह भारत में अब तक करीब चार करोड़ 36 लाख लोग कोरोना की जद में आ चुके हैं। देश में अब तक सवा पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में कोरोना वैक्सीन की 198 करोड़ से अधिक डोज लग चुकी हैं। देश की 91.8 करोड़ आबादी को कोरोना के दोनों टीके लग चुके हैं। भारत में टीकाकरण अभियान अंतिम चरण में है। यहां वृहद टीकाकरण की वजह से कोरोना महामारी नियंत्रित है।अंत में चतुरी चाचा ने सभी को बकरीद और कावड़ यात्रा की बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। कासिम चचा ने चलते समय सबको बकरीद की दावत का न्यौता दिया। इसी के साथ आज का प्रपंच समाप्त हो गया। मैं अगले रविवार को चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे पर होने वाली बेबाक बतकही के साथ फिर हाजिर रहूँगा। तबतक के लिए पँचव राम-राम…!