Saturday, June 10, 2023
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सियासत

भारतीय सियासत ने अजीब हाल कर दिया है मानव क़ौम का। आज़ादी से पहले उसका सिर्फ एक ही दुश्मन था। जिससे वतन को आज़ाद कराने के लिए क़ौम के हज़ारों बेटों ने अपनी जानों के नज़राने पेश किये थे। अपने मुल्क़ को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ाद करके की दम लिया था। सोचा था अब दुश्मन चले गए। अब देश में अमन कायम होगा।उन्नति एवं तरक्की के रास्ते खुलेंगे।

देश में भाईचारे का माहौल होगा। आजादी के 75 सालों के बाद वही खुद को अपने ही देश मे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। बचपन से हम ये बात सुनते आए हैं हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई। मगर इस बात को सियासत नही मानती। क्या सियासत चाहती है कि नफरत का परचम बुलंद रहे? सियासत में विरासत के सहारे चुनावी जंग लडऩे की बात नई नहीं है।

विरासत की सियासत पर राजनीतिक दलों का भरोसा पहले के मुकाबले बढ़ा है।विरासत की राजनीति लगभग सभी प्रमुख दल खेला करते हैं। आज भारतीय सियासत की व्यवस्था बदली नज़र आती है। हमारे यहां संविधान में संसदीय शासन की व्यवस्था की गई है। विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका के मध्य शक्तियों एवं कार्यों का विभाजन है। हमारे यहाँ कानून निर्माण में विधायिका सर्वोच्च है।

आज राज्यों में विधायिका और कार्यपालिका की पूरी शक्ति मुख्यमंत्रियों में ही समाहित हो गई हैं। हमारे देश में पार्टी नहीं अपितु चेहरों का शासन हो रहा है। जैसे शिवराज सरकार,अखिलेश सरकार,कमलनाथ सरकार, योगी सरकार, रमन सरकार, खट्टर सरकार।यह नई राजनीतिक संस्कृति एक बड़ा संवैधानिक नुकसान भी कर रही है। धीरे-धीरे यह राज्यों में विधायिका का महत्व कम कर रही है।

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