दुनिया के आकर्षण का केंद्र

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….. अजमेर का पुष्कर मंदिर …..

पुष्कर राजस्थान ज्यादातर राजाओं, रानियों और महलों की भूमि के रूप में भी प्रसिद्ध है, लेकिन यात्रियों के लिए, यह एक ऐसा स्थान भी है जहाँ बहुत सारे धार्मिक स्थल मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि पुष्कर को स्वयं सृष्टि के हिंदू देवता ब्रह्मा द्वारा निर्मित किया गया था, ऐसे में यहां धार्मिक महत्व दिखना लाजमी है। खूबसूरत वास्तुकला और धार्मिक एकांत की तलाश में अगर आप पुष्कर आ रहे हैं, तो यकीन मानिए पुष्कर के मंदिर आपका दिल खुश कर देंगे।

ब्रह्मा मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित भगवान ब्रह्मा को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जिन्हें ब्रह्मांड का निर्माता माना जाता है। भारत में ब्रह्मा को समर्पित एकमात्र मंदिर होने के कारण यह हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। ब्रह्मा मंदिर यहां उपस्थित होने की वजह से पुष्कर शहर बेहद पवित्र है। यह दुनिया के टॉप 10 धार्मिक स्थानों और भारत में हिन्दुओं के टॉप 5 पवित्र स्थलों में से एक है। बता दें कि मूल रूप से 14 वीं शताब्दी में निर्मित ब्रह्मा जी के इस मंदिर को लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है। शुरुआत में इस मंदिर का निर्माण ऋषि विश्वामित्र के द्वारा शरू किया गया था जिसकें बाद आदि शंकराचार्य के अधीन इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया।

यहाँ ब्रह्मा जी का एक मन्दिर है।  पुष्कर अजमेर शहर से १४ की.मी दूरी पर स्थित है।  आखिर क्यूं है ब्रह्माजी  का सिर्फ ‘एक ही मंदिर ? आखिर क्या छुपा है ‘रहस्य’ यहाँ ? क्या आप जानते हैं कि क्यों नहीं होती ?राजस्थान के पुष्कर जिले में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर अपनी एक अनोखी  विशेषता की वजह से न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है।  यह ब्रह्मा जी एकमात्र मंदिर है । भगवान ब्रह्मा को हिन्दू धर्म में संसार का रचनाकार  माना जाता है।

ऐतिहासिक तौर पर यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था।  लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह मंदिर लगभग 2000 वर्ष प्राचीन है।  संगमरमर और पत्थर से बना यह मंदिर पुष्कर झील के पास स्थित है जिसका शिखर लाल रंग से रंगा  हुआ है।  इस मंदिर के केंद्र में भगवान ब्रह्मा के साथ साथ उनकी दूसरी पत्नी गायत्री कि प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर का यहाँ की स्थानीय गुर्जर समुदाय से विशेष लगाव है।  मंदिर  की देख-रेख में लगे पुरोहित वर्ग भी इसी समुदाय के लोग हैं।  ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी गायत्री भीगुर्जर समुदाय से ही थीं।

आइये जानने की कोशिश करते हैं कि इस स्थान का नाम ‘पुष्कर’  कैसे पड़ा ?

  पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन जगहों पर पुष्प गिरा ।  इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बन गई थी ।  एक झील जो यहाँ बनी थी और जो पुष्प यानी फूल के गिरने के कारण बनी थी अतः इस जगह का नाम पुष्कर पड़ा । कहा जाता है कि इस घटना के बाद ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ करने का फैसला किया था । सनातन प्रथा के अनुशार यज्ञ में पूर्णाहुति के लिए साथ में  पत्नी का होना अनिवार्य है ।  ब्रह्माजी की पत्नी  सरस्वती का उस समय ना होने की अवस्था में ब्रह्माजी ने  गुर्जर समुदाय की एक कन्या ‘गायत्री’ से विवाह  कर इस यज्ञ को पूर्ण किया था ।

एक लोकोक्ति के अनुशार ब्रह्माजी जब यज्ञ की पूर्णाहुति पर बैठे थे उसी दौरान देवी सरस्वती वहां पहुंच गई । उन्होंने जब ब्रह्माजी  के बगल में दूसरी कन्या को साथ  बैठा देखा तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद भी उनके इस अनुचित कार्य के लिए कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। क्रोध शांत होने पर हालाँकि बाद में इस श्राप के असर को कम करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि चुकि पुष्कर में उन्होंने यज्ञ कार्य संपन्न कराया है अतः  एक मात्र स्थान पुष्कर में उनकी उपासना संभव होगी।चूंकि विष्णु ने भी इस कार्य में ब्रह्मा जी की मदद की थी इसलिए देवी सरस्वती ने उन्हें भी यह श्राप दिया था कि उन्हें भी अपनी पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। कहा जाता है कि इस श्राप ही के कारण विष्णु भगवन जब राम के रूप में अवतरित हुवे तो उन्हें अपने 14 साल के वनबास के दौरान अपनी  पत्नी से अलग रहना पड़ा था।

ब्रह्माजी की पूजा सिर्फ पुष्कर में ही की जाती है, इस सम्बन्ध में एक और कारण भी प्रकाश में आता है । हिन्दू धर्मग्रन्थ ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा जब सृष्टिकर्म  करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि  “तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है,अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो  जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।” तब इस घटना के बाद कहते हैं कि नारद जी भी बड़े दुखित हुवे थे,  क्योंकि उनके पिता  ब्रह्मा ने उन्हें अनायाश ही श्रापित किया था ।  अतः तब नारद ने भी अपने पिता ब्रह्मा को शाप देते हुवे कहा था कि -”हे  तात! आपने बिना किसी कारण के, बिना सोचे – विचारे मुझे शाप दिया है,  अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके भी मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।”

नाग पहाड़ राजस्थान के पुष्कर झील और अजमेर के बीच स्थित है। माना जाता है कि इस स्थान पर अगस्त्य मुनि निवास करते थे। यह भी कहा जाता हैं कि नाग कुंड का अस्तित्व नागा प्रहार पर था। नाग पहाड़ को भगवान ब्रह्मा के पुत्र वातु का निवास स्थान भी माना जाता हैं जोकि शरारत करने के लिए च्यवन ऋषि द्वारा दंडित किए जाने के बाद इस पहाड़ी पर रुके थे। यह स्थान पर आकर्षण और धार्मिक महत्व को बहुत खूबसूरती के साथ देखा जा सकता है। नाग पहाड़ी ट्रेकिंग और आध्यात्मिक सैर के लिए भी प्रसिद्ध है।

तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी  पूजा–अर्चना होती है।हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर  ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा जी का मंदिर स्थापित है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं।यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धनीमानी व्यक्तियों द्वारा बनाए गए हैं। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। सर्ग ६२ श्लोक २८ में विश्वामित्र के यहाँ तप करने की बात कही गई है। सर्ग ६३ श्लोक १५ के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। साँची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे।  पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् १२५ का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है।  यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर ३००० गायों एवं एक गाँव का दान किया था।

ब्रह्मा मंदिर में मनाये जाने वाले उत्सव की बात करें तो ऐसा कोई भी त्यौहार नहीं है जो मंदिर में मनाया जाता है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा को सबसे शुभ दिन माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर कार्तिक के हिंदू चंद्र महीने की पूर्णिमा की रात (अक्टूबर -नवंबर) पुष्कर में भारत के सबसे धार्मिक उत्सवों में से एक पुष्कर मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में पर्यटकों और भक्तों की भारी भीड़ आती है। इस मेले के दौरान पुष्कर शहर कई रोमांचक गतिविधियों के साथ जीवित हो जाता है। पांच दिवसीय लंबे इस उत्सव के दौरान भक्त पवित्र पुष्कर झील में डुबकी लगाते हैं और ब्रह्मा मंदिर में कई विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

इन लेखों से पता चलता है कि ई. सन् के आरंभ से या उसके पहले से पुष्कर, तीर्थस्थान के रूप में विख्यात था। स्वयं पुष्कर में भी कई प्राचीन लेख मिले है जिनमें सबसे प्राचीन लगभग ९२५ ई. सन्  का माना जाता है। यह लेख भी पुष्कर से प्राप्त हुआ था और इसका समय १०१० ई. सन् के आसपास माना जाता है। पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को “तीर्थराज” कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को “पुष्करराज”  कहा जाता है।  पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है।

पुष्कर सरोवर तीन हैं – ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर,  मध्य (बूढ़ा) पुष्कर,  कनिष्क पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है।  जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है।  मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है।  पास में ही एक ओर सनकादि की मूर्तियाँ हैं,तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति।  एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं। पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है।  इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं।  चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं।

ब्रह्मा मंदिर की यात्रा करने का आदर्श समय सर्दियों के मौसम में यानि अक्टूबर से मार्च के बीच होता है। इस दौरान राजस्थान का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है, जो ज्यादा ठंडा नहीं है। गर्मियों में पारा 45 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। सर्दियों के दौरान आप कार्तिक पूर्णिमा पर नवंबर में आयोजित होने वाले पुष्कर मेले में शामिल हो सकते हैं।

हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है। वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है।  अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है।  यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।