सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज

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सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज
सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज


लौटनराम निषाद
लौटनराम निषाद

राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून, 1874 में हुआ था। शिवाजी (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी (चतुर्थ) कोल्हापुर में राज करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी (चतुर्थ) का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने एक जागीरदार अबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को 17 मार्च, सन 1884 में गोद लिया था। अब उनका नाम छत्रपति शाहूजी महाराज हो गया था। छत्रपति शाहूजी महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार विद्यालय में हुई थी। महात्मा फुले के मित्र और विश्वासपात्र मामा परमानंद की पुस्तक ‘लैटर्स टू ऐन इंडियन राजा’ इस पुस्तक में प्रकाशित पत्रों में शिवाजी को किसानों का नेता और अकबर को एक न्यायप्रिय शासक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस पुस्तक का युवा शाहू पर गहरा प्रभाव पड़ा। शाहू ने 1894 में कोल्हापुर की सत्ता संभाली, तब उन्होंने पाया कि उनके प्रशासन पर ब्राह्मणों का एकाधिकार है। उन्हें यह अनुभव हुआ कि ब्राह्मणों का यह एकाधिकार ब्रिटिश राज से भी ज्यादा खतरनाक है। इसलिए उन्होंने अपने शासन के दौरान शूद्र/अतिशूद्र जातियों के हितों में अनेक सामाजिक, प्रशासनिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक कदम उठाए। जिनमें 26 जुलाई, 1902 को 50% आरक्षण दिया, शिक्षा पर विशेष ध्यान देकर बहुत सारे छात्रावास और विद्यालय बनवाया एवं छत्रवृति का प्रावधान किया। मुस्लिम शिक्षा समिति का गठन किया। खेल कूद के क्षेत्र में जिम्नास्टिक और कुश्ती को विशेष बढ़ावा दिया। सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज

छत्रपति शाहूजी महाराज ने सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए अनेकों कदम उठाए। उन्होंने ब्राह्मणों को विशेष दर्जा देने से इनकार कर दिया। ब्राह्मणों को रॉयल धार्मिक सलाहकारों के पद से हटा दिया। उन्होंने ब्राह्मण की बजाय एक युवा मराठा विद्वान को ‘ जगद्गुरु’ (राजगुरु) का खिताब देकर नियुक्त किया। एक अतिशूद्र (अछूत) गंगाराम काम्बले की चाय की दुकान खुलवाया, अंतर जाति विवाह को वैध बनाया। महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए देवदासी प्रथा पर कानूनी प्रतिबंध लगाया, विधवा पुनर्विवाहों को वैध बनाया एवं बाल विवाह रोकने के प्रयास किए। वंचित समाज के हित में शाहूजी महाराज के मौलिक योगदान के लिए कानपुर के कुर्मी योद्धा समुदाय ने उन्हें राजर्षि की उपाधि देकर सम्मानित किया।सारांश के तौर पर शाहूजी महाराज के कार्यों का आंकलन करें तो उन्होंने महात्मा ज्योतिबा फुले के उत्तराधिकारी के रूप में उनके अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाते हुए उनके द्वारा गठित सत्य शोधक समाज का संरक्षण किया।

डॉ. अम्बेडकर और शाहूजी महाराज- दोनों महापुरुषों का सम्बंध बड़ा आत्मीय था। बाबा साहब अम्बेडकर बड़ौदा महाराज की छात्रवृति पर विदेश पढ़ने गए थे। लेकिन बीच मे ही छात्रवृति खत्म हो जाने के कारण उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा। इसकी जानकारी जब शाहूजी महाराज को हुई तो भीमराव का पता लगाकर महाराज स्वयं मुंबई की चाल में उनसे मिलने पहुंच गए और आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए बाबा साहब को आर्थिक सहयोग दिया।शाहूजी महाराज एक राजा होते हुए भी एक अछूत छात्र (बाबा साहब) को उसकी बस्ती में जाकर मिलते हैं, इससे पता चलता है कि शाहूजी महाराज कितने अदभुत इंसान रहे होंगे। इस प्रसंग की अनुभूति जब बहुजन मिशन के अनुयायी करते हैं तो उनके मन में शाहूजी महाराज के प्रति असीम श्रद्धा और सम्मान उमड़ आता है। इतना ही नहीं उन्होंने बाबा साहब को पिछड़े और वंचित समाज का नायक घोषित करते हुए एक तरह से फुले/शाहू मिशन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।


बाबा साहब अम्बेडकर का भी शाहू महाराज के प्रति कम सम्मान नही था। उन्होंने अपने अनुयायियों को स्पष्ट सन्देश दिया है कि, “एक बार मुझे भुला दोगे चल जाएगा, लेकिन वंचितों के लिए सदैव तैयार रहने वाले सच्चे राजा छत्रपति शाहूजी महाराज को कभी मत भूलना, आप उनकी जयंती को त्योहार व उत्सव की तरह मनाना।” इस तरह 28 वर्ष तक कोल्हापुर रियासत का शासन करते हुए बहुजन राजा शाहूजी महाराज का 48 वर्ष की उम्र में 6 मई, 1922 को उनका मुम्बई में परिनिर्वाण हो गया। महात्मा फुले का उत्तराधिकारी थे शाहूजी महाराज- आधुनिक युग में बहुजन मिशन को लिंक करके जब हम देखते हैं तो शाहूजी महाराज हमें महात्मा ज्योतिबा फुले के उत्तराधिकारी के रूप में नजर आते हैं, जिसे हम निम्न तीन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित कर समझ सकते हैं-

सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज

आत्म-सम्मान का आंदोलन- छत्रपति शाहूजी महाराज को जब ब्राह्मण पुरोहित वेदोक्त मंत्रों के बजाय पुराणोक्त मंत्रों से स्नान कराते हैं तो शाहूजी महाराज इसका कारण पूछते हैं,तो पुरोहित कहता है- महाराज! आप कर्म से राजा हो लेकिन जन्म से शूद्र (कुर्मी) हो, इसलिए मुझे धर्मानुसार आपको शूद्र की हैसियत से ही स्नान कराना पड़ेगा। इस पर शाहूजी महाराज ने ब्राह्मण पुरोहित को दुत्कारते हुए भगा दिया।लेकिन शाहूजी महाराज समझ गए कि जब मेरी ही यह अवस्था है तो ब्राह्मणों के सामने आम जनता की क्या हैसियत होगी। इस अपमान ने शाहूजी महाराज को धर्मद्रोही बना दिया।

जाति उन्मूलन का आंदोलन- महात्मा ज्योतिबा फुले शूद्र/अतिशूद्र जातियों को संघठित करना चाहते थे लेकिन शाहूजी महाराज समझ रहे थे कि ऊंच-नीच के भेद को खत्म किए बगैर यह सम्भव नहीं है। मगर यह भेद केवल आदेश देने से भी खत्म नहीं होगा, इसलिए कुछ व्यवहारिक कदम उठाने होंगे। इसी क्रम में अछूत गंगाराम काम्बले की चाय की दुकान खुलवाकर स्वयं महाराज चाय पीते थे। अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा आदि उनके उस जमाने में जाति व्यवस्था के खिलाफ उठाये गए साहसिक कदम थे।

समाज को आत्मनिर्भर बनाया- ब्राह्मणवादी मान्यता, परम्परा और संस्कारों से समाज को आजाद कराने के लिए तार्किक वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ाया दिया। 50% आरक्षण देकर वंचितों की शासन में भागीदारी सुनिश्चित किया आदि ऐसे कदम थे जिनके माध्यम से समाज को आत्मनिर्भर बनाया गया ताकि समाज अपनी लड़ाई स्वयं लड़ सके।निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि छत्रपति शाहूजी महाराज 108 साल तक चले फुले/शाहू/अम्बेडकर बहुजन मिशन के बीच की कड़ी हैं।