गंदगी व कचडे़ में गुम होता देश का स्वच्छता अभियान

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स्मार्ट सिटी कानपुर-अनुशासनहीन यातायात,गंदगी व कचडे़ में गुम देश का स्वच्छता अभियान।


संजय कुमार पाण्डेय

कानपुर। कानपुर का शुमार औद्योगिक नगरी ही नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी के रूप में भी है। अब आप इस शहर के निवासी हैं तो इस स्मार्ट सिटी के स्मार्टनेंस का हाल आपका दिल व दिमाग जानता ही होगा। अब र्स्माट सिटी की समस्याओं का स्मार्ट समाधान कब होगा यह पता नहीं, क्योंकि यह झूठ-फरेब और राजनीति की चासनी से निकला स्मार्ट सिटी है। तभी तो सूबे का ही नहीं वरन देश का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर कानपुर वर्तमान में अनियोजित विकास के दलदल में फंसा कराह रहा है। पूरे शहर में जाम का झाम, गंदगी का अम्बार, घूल-धकड़ और कूडे़-कचडे़ के ढेर यत्र-तत्र-सर्वत्र पसरे देखने को मिल रहा है। लगता है कि यहां मोदी जी की महात्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत योजना या तो लागू ही नहीं हुई है या फिर गंदग, कूडे़-कचड़ों, बजबजाती नालियों और शहर की गलियों में गुम हो गई है। यहां सड़कें तो हैं पर फुटपाथ या तो गायब है या फिर अतिक्रमण के शिकार हैं अथवा सड़क के दोनों तरफ उबड़-खाबड़, धूल-गंदगी या कीचड़ युक्त स्थान जिसे फुटपाथ कह सकते है या बना सकते हैं। यही नहीें शहर में जगह-जगह खुले स्थान भी हैं जिसे हरियालीयुक्त मनोहारी पार्क का रूप दिया जा सकता था लेकिन नहीं, शहर के ऐसे खुले स्थानों में कूडे़-कचड़ों का अंबार लगा हुआ है जिस पर सुअर और कुत्ते लोट रहे हैं, और दमघांेटू दुर्गंध पसर रही है या फिर ट्रकों या अन्य भारी वाहनों का यह रिपेयरिंग स्थल बना हुआ है, जो गंदगी व कीचड़ से युक्त है।


जी हां, यह कानपुर स्मार्ट सिटी है और इस स्मार्टनेस की परिभाषा राजनीतिज्ञों द्वारा गढ़ी गई है, जहां कि सड़कों पर पैदल चलना भी बड़ा कठिन है। चाहे ओबरब्रिज हो या अन्य सड़कें बेतरतीब वाहनों के रेलपेल में आप घिर जाएंगे और बुत बनकर रह जाएंगे। यदि अव्यवस्था का आलम यही रहा तो यहां की रेलपेल में मेट्रो भी गुम हो जाएगी, लोगों को ज्यादा राहत नहीं मिलेगी, अलबत्ता नेताओं को अपनी पीठ थपथपाने का मौका तो मिल ही जाएगा। यही नहीं कई जगहों पर शौचालयों के दर्शन तो हो रहे हैं लेकिन सोचनीय साफ-सफाई और पुलों और सड़कों के किनारे मूत्र त्याग करने की प्रवृति से उठती दुर्गन्ध से लगता है कि प्राण ही निकल जाएगा। पूरे शहर में कही भी जाइए जाम का झाम हर तरफ लगा मिलेगा। कहने को तो शहर में औवरब्रिज, बाईपास सड़कें, आदि सब है परंतु राहत व सकून मयस्सर किसी को नहीं है। इस शहर के मूलभूत ढांचे को विकसित करने का प्रयत्न तो किया गया है परंतु लगता है इन सब निर्माणों में नीति-नियंताओं की दूरदर्शिता व कल्पनाशीलता का नितांत अभाव रहा है। तभी तो सड़कों के सामानांतर अधिकांश जगहों पर फुटपाथ और नालियां गायब मिलेंगी।


इस औद्योगिक नगरी कानपुर में अनुशासित यातायात व्यवस्था और इसको लेकर जागरूकता का साफ अभाव है। सड़कों पर बेतरतीब वाहनों को खड़ा करने की प्रवृत्ति विशेषकर ऑटो चालकों में खूब देखी जाती है। चालकों का नशे में धुत होकर वाहनों को चलाना और यात्रियों के साथ बदसलूकी करना भी आम बात है। एैसा नहीं है मुख्य चौराहों पर होमगार्ड या पुलिस वालों की डियूटी नहीं लगी हैं, डियूटी लगी है लेकिन वो तब तक नहीं हिलते-डुलते जब तक कि जाम न लग जाए या फिर जाम लगने की नौबत न आ जाए। अलबत्ता, चौराहों पर डियूटी देने वाले ऐसे अधिकांश पुलिस वाले बडे़ मनोयोग से अपने स्मार्ट फोन से खेलने में लगे रहते हैं। घंटाघर से टाटमिल आने वाले रास्ते पर टेम्पों-ऑटो और अन्य वाहन लगभग पूरी सड़क को घेरे रहते है जिससे पैदल चलना भी काफी कठिन होता है। घंटाघर चौराहे पर मंजूश्री सिनेमाहाल के सामने टेम्पों, ऑटो व सिटी बस खड़ी रहती हैं। मैने देखा एक नशे में धुत टेम्पो चालक एक यात्री को जबरदस्ती अपने वाहन में खीचकर बिठाने जा रहा था जबकि वह यात्री चिल्लाकर कह रहा था कि हमें वहां नहीं जाना है।

फिर यात्री अपना हाथ झटककर अलग कर लिया तो चालक उसके साथ और अधिक अभद्रता पर उतारू हो गया। जबकि बगल में ही सुतरखाना पुलिस चौकी बूथ है और यहां पर पुलिस कर्मी मौजूद थे। कहने का आशय यह है कि कानपुर की चरमराई यातायात व्यवस्था में कई झोल हैं। अनुशासन और जागरूकता का अभाव तो साफ ही झलकता है। यहां नशे में धुत होकर वाहन चलाना आम बात है। कहने को तो शहर के 140 चौराहों परे 650 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं परंतु 110 चौराहों के 150 सीसीटीवी कैमरे ही काम कर रहे हैं। यही नहीं इन कैमरों की गुणवत्ता भी काफी खराब है, इनके फुटेज भी अस्पष्ट और किसी काम के नहीं होते, लगता है कि ये कैमरे यातायात नियंत्रण और अपराधों की रोकथाम के लिए न होकर सिर्फ वाहनों के चालान काटने के लिए ही लगाए गए हैं। जो भी हो जैसे कि स्मार्ट सिटी कानूपुर की गंदगी व बजबजाती गलियों में स्वच्छ भारत अभियान गुम हो गया है वैसे ही कैमरों की खरीद कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गई होगी, अब यह तो समझने और जांच करने की बात है। हां एक बात और है कि पूरे शहर में हर समय, हर स्थानों पर भारी वाहनों का आवागमन बना रहता है। नो इंट्री के बावजूद शहर में भारी वाहनों का प्रवेश कैसे हो रहा है, यह भी गौर करने की बात है। नौबस्ता से यदि टाटमिल चौराहे पर आए तो रास्ते में कई जगहों पर भारी वाहनों का आवागमन होता दिख सकता है, यों तो इस प्रकार की स्थिति पूरे शहर की है। वस्तुतः होना तो चाहिए कि रात्रि 12 बजे से सुबह पांच बजे तक ही शहर में भारी वाहनों को प्रवेश दिया जाए और नो इंट्री का पालन सख्ती, ईमानदारी और जिम्मेदारी से करना तथा कराना चाहिए। अभी तो कोरोना के चलते स्कूल-कालेज बंद हैं यदि खुल जाएंगे तो शहर की यातायात व्यवस्था पर और भी दबाव बढ़ जाएगा और भगवान न करे यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले टाटमिल जैसे हादसे को अंजाम दे।


दरअसल, यातायात व्यवस्था की अंदरूनी खामियों के चलते ही टाटमिल हादसा हुआ जो दुखद, गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण है। वैसे तो जांच हो रही है और संभवतः जांच की आंच बस चालक और निचले कर्मचारियों पर गिर सकती है परंतु व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की उम्मीद शायद बेमानी ही है। यदि ई-बस चालक का लाइसेंस 2 जनवरी को समाप्त हो चुका था तो उसे क्यों बस चलाने दिया गया, इसके लिए जो दोषी है और जिम्मेदार है उसपर भी क्या कार्रवाई की गाज गिरेगी? यहीं नहीं खिलौना बने सीसीटीवी कैमरे, नशे मेें धुत होकर वाहन चलाने की प्रवृत्तियों पर रोक कौन लगाएगा, जांच कौन करेगा?बहरहाल, वर्तमान में चुनाव का माहौल है और माननीय बनने के लिए विभिन्न दलों के प्रत्याशी हाथ पांव मार रहे हैं। शहर का कायाकल्प करने और विकास की गंगा बहाने का वादा कर जनता को लुभाने का प्रयत्न कर भी रहे हैं। परंतु इस आद्योगिक नगरी की खास्ता हालत के लिए पूर्व से वर्तमान में सत्ता में रहने वाले दल और इनके प्रतिनिधि तो दोषी है ही इसके साथ ही अधिकारियों की भी भूमिका को भी नदरंदाज नहीं किया जा सकता। अब चुनाव के समय जनता को इनसे हिसाब तो मांगना ही चाहिए, उनकी भावी विकास योजनाओं के ब्लूप्रिंट को देखना और समझना चाहिए। यदि इन नेताओं के दिखाए दिवास्वप्न में खो गए तो, सचमुच जनता के हिस्से में अशांति, विपन्नता के साथ टाटमिल हादसे ही आएंगे, जिसमें किसी मां-बाप को अपना पुत्र खोना पडे़गा तो, किसी युवती को अपना पति और बच्चों को मांता या पिता खोना पड़ेगा। अतः यह हादसा वहुत कुछ सबक सिखा गया है, इस पर चिन्तन मंथन करने की जरूरत है।