भाजपा के आगे कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग फेल

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राज्यसभा चुनाव—–

भाजपा के आगे कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग फेल,कांग्रेस ने एक भी पिछड़े को नहीं बनाया उम्मीदवार,भाजपा ने दिया 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व।

राजू यादव

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,हरियाणा,कर्नाटक,महाराष्ट्र ,राजस्थान, उत्तराखंड,बिहार से राज्यसभा के 16 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है।उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्य सभा उम्मीदवारों की सूची में 6 नाम हैं और 6 जातियों का प्रतिनिधित्व है।भाजपा ने जातिगत समीकरण को साधते हुए निषाद, ब्राह्मण, यादव/मौर्य, गुर्जर, ठाकुर, वैश्य जाति को प्रतिनिधित्व दिया है। वहीं कांग्रेस विभिन्न राज्यों से 10 नेताओं को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है, जिसमें एक भी ओबीसी नहीं है। कांग्रेस को समझना होगा कि ये 1952 का भारत नहीं है।भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के आगे कांग्रेस पूरी तरह फेल हैकांग्रेस,भाजपा,आप,टीएमसी सवर्ण नेतृत्व वाली पार्टियां हैं।भाजपा व कांग्रेस को सवर्ण बेस वोटबैंक आधारित दल कहा जाता है।लेकिन दोनों की सोशल इंजीनियरिंग में काफी अंतर है। 2014 से भाजपा ने पिछड़ी जातियों पर ज्यादा फोकस किया, यही उसकी मजबूती का मुख्य कारण है,दूसरी तरफ कांग्रेस पिछड़ों को विशेष महत्व न देकर दरकिनार ही करती आ रही है।बार बार हार का सामना करने के बाद भी कांग्रेस अपनी नीति व सोच में बदलाव नहीं ला पा रही है।


भारतीय जनता पार्टी ने जिन 16 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा किया है,उसमें 8 ओबीसी,4 ब्राह्मण,1 एससी,1 राजपूत,2 वैश्य हैं।भाजपा के 8 ओबीसी उम्मीदवारों में 2 कुर्मी/पाटीदार,1-1 निषाद, सैनी,गुर्जर,यादव/मौर्य, वोक्कालिगा, मराठा हैं।वहीं कांग्रेस ने 2 कश्मीरी ब्राह्मण सहित 5 ब्राह्मण,1-1 धोबी/बौध्द, चेट्टियार/नागराथर(बनिया),जाट(सामान्य),मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है।भाजपा के 16 उम्मीदवारों में 50 प्रतिशत ओबीसी व कांग्रेस के 10 घोषित राज्यसभा उम्मीदवारों में 50 प्रतिशत ब्राह्मण हैं।कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के 3 नेताओं को दूसरे राज्यों से राज्यसभा में भेजने जा रही है,जिसमे 2 ब्राह्मण व 1 मुस्लिम है।वहीं भाजपा ने उत्तर प्रदेश से अभी जिन 6 उम्मीदवारों का नाम तय किया है उसमें 1-1 राजपूत,ब्राह्मण,वैश्य व 3 ओबीसी(1-1 निषाद, यादव/मौर्य, गूजर) हैं।


मंडलवाद व सामाजिक न्याय के मुखर नेता चौ.लौटनराम निषाद से जब यह पूछा गया कि कांग्रेस ने किसी भी पिछड़े को राज्यसभा के उम्मीदवार नहीं बनाया तो उनकी प्रतिक्रिया थी कि यह कांग्रेस रणनीतिकारों व नीति-नियंताओं का निर्णय है।उन्होंने जिन नेताओं को उच्च सदन में भेजने का निर्णय लिया है,पार्टी हित में मंथन करके ही लिया होगा।हम पार्टी के प्राथमिक सदस्य मात्र हैं।वैसे कोई भी दल हो बिना पिछड़ों,अतिपिछडों के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,गुजरात,कर्नाटक,हरियाणा,तेलंगाना,आंध्रप्रदेश,केरल,महाराष्ट्र में आगे नहीं बढ़ सकता।इन राज्यों में पिछडों की आबादी 50 से 71 प्रतिशत तक है।काँग्रेस ने 13 से 15 मई तक राजस्थान के उदयपुर में 3 दिवसीय चिंतन शिविर कर जातीय व सामाजिक मुद्दों पर चर्चा किया और संगठन व टिकट वितरण में ओबीसी, एससी, एसटी को 50 प्रतिशत हिस्सेदारी का निर्णय लिया है।वैसे इस निर्णय में कुछ संशोधन आवश्यक है,क्योंकि एससी/एसटी को तो राजनीति में समानुपातिक कोटा निर्धारित है,ऐसे में 52 प्रतिशत से अधिक ओबीसी की हिस्सेदारी सामाजिक न्याय के अनुकूल नहीं है।कहा कि कांग्रेस की मजबूती के लिए पिछड़ी,अतिपिछड़ी जातियों को सम्मानजनक हिस्सेदारी देने पर विचार करना होगा।


कांग्रेस के एक ओबीसी पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि भाजपा की बढ़त का सबसे बड़ा कारण उसकी सोशल इंजीनियरिंग हैं।संगठन,मन्त्रिमण्डल से लेकर लोकसभा व विधानसभा चुनाव में पिछड़ों,अतिपिछडों को अन्य दलों से कहीं अधिक टिकट देती है। भाजपा से उत्तर प्रदेश से 22-23 सांसद व 90 विधायक हैं।काँग्रेस ने पिछड़ी जातियों को जोड़ने व सम्मान देने को आगे नहीं बढ़ी तो भाजपा को पिछाड़ना कठिन ही नहीं बेहद मुश्किल होगा,क्योंकि सवर्ण जातियाँ निकट भविष्य में भाजपा को छोड़ नहीं सकतीं।कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर में ओबीसी के विद्यायक वीरेन्द्र चौधरी तक को नहीं बुलाया गया।कहने को छत्तीसगढ़ व राजस्थान के मुख्यमंत्री पिछड़ी जाति के हैं,पर एक भी पिछड़े को राज्यसभा में नहीं भेजवा पाए और अपने राज्य में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की भी व्यवस्था नहीं कर पाए।