चौ.लौटनराम निषाद

वर्ष 2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह जी द्वारा आरक्षण शुरू हुआ। 10 अप्रैल 2008 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी धन से पोषित संस्थानों में 27% ओबीसी कोटा शुरू करने के लिए सरकारी कदम को सही ठहराया। इसके अलावा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘क्रीमी लेयर’ को आरक्षण नीति के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।ओबीसी को क्रीमीलेयर से प्रतिबंधित करने बिल्कुल असंवैधानिक है।यह पिछड़े वर्ग के आरक्षण को कुंद करने की न्यायालयी साज़िश है।


देश में क्या है आरक्षण की वर्तमान स्थितिमौजूदा दौर में अगर भारत में आरक्षण की स्थिति की बात करें तो केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 49.5% आरक्षण दिया है। वहीं विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए अनुच्छेद-16(4) के तहत कानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राजस्थान, पुड्डुचेरी, कर्नाटक,तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि जैसे राज्यों में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा के बाद 50 प्रतिशत से अधिक कोटा हो गया है।तमिलनाडु सरकार ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने से सीधे बना कर दिया।कहा कि जब राज्य में सवर्णों की आबादी महज 3 प्रतिशत है तो 10 प्रतिशत क्यों दें…?

महात्मा गाँधी से लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय तक भारत के तमाम सामाजिक विचारकों ने ‘पंक्ति में खड़े हुए अंतिम व्यक्ति के हित-चिंतन, विकास और संरक्षण की विचारणा’ दी। आरक्षण का मूल मंतव्य भी अंतिम जन को मुख्यधारा में शामिल करना है। वस्तुतः सरकार की यह पहल सामाजिक न्याय और समावेशी समाज की स्थापना के इसी भावबोध से अभिप्रेरित है। लेकिन इसका विरोध आरक्षित वर्गों की उस “नव-वर्चस्ववादी” मानसिकता द्वारा किया जा रहा है, जो मुखर है और आरक्षण के ऊपर सिर्फ अपनी इजारेदारी बनाए रखना चाहती है।

आरक्षण को असफल करने में और उसके प्रावधानों का गोलमाल करने में सवर्ण जातियों और सम्पन्न पिछड़ों-दलितों का अद्भुत गठजोड़ है। सवर्ण समाज के लोग दलित-वंचित-पिछड़े समाज के लोगों को उनका हक और हिस्सा नहीं देते और उनके हक को हड़पने की नई-नई तरकीबें खोजते रहते हैं। ठीक इसी प्रकार आरक्षण के खाए-अघाए और अपेक्षाकृत समर्थ-सम्पन्न पिछड़े-दलित अपनी ही जाति/वर्ग के सर्वाधिक वंचितों की सत्ता, नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में भागीदारी नहीं होने देना चाहते। वे इसे अपना एकाधिकार मान बैठे हैं। वे भी इस अधिकार-वंचना के लिए नायाब तर्क ढूँढते रहते हैं।

आरक्षण का असमान वितरण – विडम्बना है कि राजस्थान,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड में मण्डल कमीशन की सिफारिश के अनुसार भी 27 प्रतिशत आरक्षण कोटा नहीं मिल पा रहा है।राजस्थान में पिछड़ी जातियों को 21 प्रतिशत,मध्यप्रदेश में 14 प्रतिशत,छत्तीसगढ़ में 13 प्रतिशत व झारखण्ड में 14 प्रतिशत ही आरक्षण दिया गया है,जो आरक्षण का आसमान वितरण है। गुजरात,तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार,तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में हिन्दू पिछड़ों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है।

भारत में आरक्षण के प्रकार – भारत में कई तरह से आरक्षण देने का प्रावधान है। जैसे जाति आधारित आरक्षण, प्रबंधन कोटा, जेंडर पर आधारित आरक्षण, धर्म आधारित आरक्षण, राज्य के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षण, पूर्वस्नातक के लिए आरक्षण, आरक्षण के लिए अन्य मानदंड सहित सेवानिवृत सैनिकों के लिए आरक्षण, शहीदों के परिवारों व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों को मिलने वाला आरक्षण और अंतर-जातीय विवाह से पैदा हुए बच्चों के लिए आरक्षण शामिल हैं।