जनशिकायत निस्तारण विभाग बनाएं

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श्याम कुमार

पिछले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ से जो सबसे बड़ी चूक हुई, वह यह कि प्रशासन में जनता की कहीं भी सुनवाई नहीं होती थी। मुख्यमंत्री जनता की सुनवाई के लिए बार-बार कड़े निर्देश देते रहे, लेकिन अफसरशाही ने उन निर्देशों पर कभी अमल नहीं किया। उदाहरणार्थ, मुख्यमंत्री ने आदेश दिया कि सभी अफसर सरकार द्वारा दिए गए सीयूजी मोबाइल फोन स्वयं उठाया करें और जनता की समस्याएं सुनकर उनका निवारण करें, लेकिन कोई भी अफसर ऐसा नहीं करता। फील्ड में अधिकतर अफसर जनता की सेवा के लिए नहीं, ऐश करने व धन कमाने के लिए जाते हैं। चूंकि मुख्यमंत्री को उन्हीं अफसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए उन अफसरों की लापरवाही की जांच नहीं होती है। यदि होती भी है तो सिर्फ कागजों पर। किसी को दंड का कोई भय नहीं है, इसलिए सब स्वछंद रहते हैं। पिछली योगी-सरकार में अफसरशाही बुरी तरह हावी थी तथा वही मुख्यमंत्री की आंख-कान बन गई थी। सरकारी स्तर पर ‘मुख्यमंत्री पोर्टल’ आदि की व्यवस्था की गई है, लेकिन वे व्यवस्थाएं निरर्थक सिद्ध हुई हैं। मुख्यमंत्री तक लोगों की चिट्ठियां पहुंच पाना दुर्लभ है। पहले कालिदास पर मुख्यमंत्री-आवास की एक खिड़की पर लोगों की चिट्ठियां, ज्ञापन आदि ले लिए जाते थे, लेकिन बाद में वह व्यवस्था बंद कर दी गई। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री-आवास के सामने वाली सड़क दोनों ओर उसी प्रकार बंद कर दी गई, जिस प्रकार मायावती के समय में बंद रहती थी और जिसे अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पब्लिक के गमनागमन के लिए खोल दिया था।

शास्त्री भवन(एनेक्सी) में एक काउंटर पर चिट्ठियां ली जाती थीं, लेकिन जब से मुख्यमंत्री-कार्यालय वहां से लोकभवन षिफ्ट हुआ, उस काउंटर पर लोगों के पत्र लिए जाने बंद कर दिए गए। जब महेश कुमार गुप्त सचिवालय प्रशासन के अपर मुख्य सचिव थे तो मैंने कई बार यह जनसमस्या उन्हें बताई थी, जिस पर उन्होंने विधानभवन के प्रवेशद्वार-संख्या 9 पर जनता के पत्र आदि स्वीकार किए जाने के निर्देश दिए थे। लेकिन उक्त निर्देश हवाहवाई होकर रह गए। ‘मुख्यमंत्री पोर्टल’ का यह हाल है कि वहां जैसे आंख बंद करके काम किया जाता है और वहां से शिकायतों का निस्तारण नहीं होता है। कई बार मैंने किसी विभाग के बारे में षिकायत या सुझाव लिखे अथवा जनहित का कोई कार्य कराने का अनुरोध किया तो आश्चर्यजनक रूप से मेरा वह पत्र सम्बंधित विभाग के बजाय प्रदेश के किसी सुदूरवर्ती नगर के पुलिस थाने में भेज दिया गया, जबकि उस थाने का मेरे उस पत्र से कोई मतलब नहीं था। कल्याण सिंह एवं राजनाथ सिंह के समय में ‘जनता दर्शन’ कुछ सीमा तक कारगर हो जाता था तथा मुख्यमंत्री तक पहुंचने का जनता को अवसर मिलता था, लेकिन वह व्यवस्था लगभग बंद हो गई। जिलों व तहसीलों में जनता की फरियाद अभी भी बिलकुल अनसुनी रहती है।

पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने बार-बार आदेश दिया कि जिलों एवं तहसीलों में जनता की समस्याओं की भलीभांति सुनवाई हो और उनका तत्काल निस्तारण किया जाय। मगर स्थिति यह थी कि मुख्यमंत्री आदेश देते रहे, पर उन आदेशों पर अमल नहीं हुआ। नौकरशाही अपनी पुरानी चाल चलती रही। चूंकि दंड का भय नहीं है, इसलिए नौकरशाही की आदत सरकार को फेल कर रही थी। पुलिस विभाग का भी बिलकुल पहले-जैसा हाल था। उसके आचरण में लेषमात्र अंतर नहीं आया है। जनता को वहां पहले की तरह दुत्कारा जाता रहा तथा आसानी से रिपोर्ट नहीं दर्ज होती थी। अपने दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने जो पहला ‘जनता दर्षन’ किया, उसमें चार सौ फरियादी आए। इसी से समझा जा सकता है कि जनता किस बुरी तरह त्रस्त है। अन्यथा उसे कोई शौक नहीं है कि वह भीशण गर्मी में लखनऊ का चक्कर काटे। मजबूर जनता को मुख्यमंत्री में आशा की किरण दिखाई देती है। यही हाल भ्रष्टाचार का है। मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि है, लेकिन उनके अलावा ऊपर से नीचे तक लगभग सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला है तथा जनता का षोशण होता है। लखनऊ में मोहलनलालगंज के एक उपजिलाधिकारी पर लाखों रुपये घूस लेने का आरोप लगा, लेकिन उसे निलम्बित तक नहीं किया गया तथा दूसरी तहसील में उपजिलाधिकारी बना दिया गया। प्रदेश में अहंकार में डूबे अफसर जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझते हैं। वैसे भी अफसर यह जानते हैं कि सरकारें बदलती रहती हैं, इसलिए वे सिर्फ अपना हित देखते हैं और सभी पार्टियों को साधे रहते हैं। बिलकुल यही हाल पिछली योगी सरकार में अधिकतर मंत्रियों का था। इक्का-दुक्का मंत्रियों को छोड़कर षेश मंत्री अहंकार में चूर थे तथा जनता से उनका कोई वास्ता नहीं रहता था। उनके इर्दगिर्द चाटुकारों के गिरोह बने हुए थे और जनता के बजाय केवल उनका ही भला होता था।

जिस प्रकार यह देश का सौभाग्य है कि उसे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी मिले, उसी प्रकार यह उत्तर प्रदेश का सौभाग्य है कि उसे मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ मिले। लेकिन प्रायः जिसे मामूली चूक समझकर ध्यान नहीं दिया जाता है, वह चूक आगे चलकर बहुत घातक सिद्ध होती है। उत्तर प्रदेश के मामले में ऐसा ही हुआ। योगी आदित्यनाथ जितना परिश्रम करते हैं, आज तक किसी भी मुख्यमंत्री ने उतना परिश्रम नहीं किया। उनकी ईमानदार छवि सर्वत्र प्रशंसित है। फिर भी शासन की कुछ कमियों ने उनकी पिछली सरकार की उपलब्धियों की ज्योति को मंद किया। जिस प्रकार चलनी से पानी रिस जाता है, उसी प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अनगिनत उपलब्धियां उन कमियों के कारण फीकी पड़ीं। वास्तविकता यह है कि उत्त्र प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का न तो कोई विकल्प है और न इस समय उनसे अच्छा मुख्यमंत्री कोई हो सकता है। किन्तु अगले लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश को यदि भाजपा के हाथ से खिसकने से बचाना है तो प्रधानमंत्री मोदी को यहां तत्काल हस्तक्षेप कर ठोस एवं कारगर कदम उठाने होंगे। उन्हें उत्तर प्रदेश में एक जनशिकायत निस्तारण विभाग बनाना चाहिए, जिसका मुखिया एक तीसरा उपमुख्यमंत्री अथवा किसी अपर मुख्य सचिव को बनाया जाय। इन अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारियों में भी किसी को इस विभाग का मुखिया बनाया जा सकता है- सुभाष कुमार(जो बाद में उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव बने), आलोक रंजन, बलविंदर कुमार, चंद्रभूषण पालीवाल।

जिसे भी जनशिकायत निस्तारण विभाग का मुखिया बनाया जाय, वह ईमानदार तो हो ही, उसका स्वभाव ऐसा हो कि उसे जनता की सेवा करने में सुख अनुभव होता हो। उस विभाग का एकमात्र दायित्व जनसमस्याओं की सुनवाई करना तथा उनका निस्तारण कराना हो। इस मामले में उसे पूरी तरह सर्वाधिकार सम्पन्न भी किया जाय। उसे किसी भी विभाग से पूछताछ करने का तथा जनसमस्याएं हल न होने पर सम्बंधित किसी भी अफसर के विरुद्ध कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार हो। यह निर्विभाग अथवा जनशिकायत निस्तारण विभाग का मुखिया राजधानी से लेकर जनपदों तक अफसरों पर कड़ाई से चाबुक लगाए तथा जहां भी जनता की समस्याएं हल होने में ढिलाई पाई जाय, कठोर दंडात्मक कार्रवाई करे। प्रदेशभर में जनता से प्राप्त होने वाली प्रत्येक शिकायत का ब्योरा उसके पास रहे तथा निर्धारित अवधि में उस शिकायत का निस्तारण किया जाना अनिवार्य हो। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई का भी उसे पूरा अधिकार हो।