वर्तमान में 45 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे

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राजू यादव

भारत से चीनी का अधिकांश निर्यात एशियाई देशों को ही हो रहा है। आयातकों में 20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ इंडोनेशिया सबसे ऊपर है। उसके बाद 15 फीसदी आयात बांग्लादेश द्वारा किया जा रहा है। चीन को निर्यात सात फीसदी है। चालू सीजन में 45 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे, चीनी मिलों के लिए वैश्विक बाजार में मार्च तक बेहतर मौका।

देश की चीनी मिलों के लिए इस समय घरेलू और निर्यात बाजार दोनों में कमाई का बेहतर मौका है। वैश्विक बाजार में चीनी मिलों को 40 रुपये प्रति किलो तक के दाम मिल रही हैं। वहीं घरेलू बाजार में भी चीनी की खुदरा कीमतें 40 से 41 रुपये किलो बनी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय केवल भारतीय चीनी ही उपलब्ध है। जिसके चलते सरकार द्वारा चालू चीनी सीजन (2022-23) के लिए घोषित किये गये 60 लाख टन चीनी के निर्यात कोटे में से 45 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं। इसमें से करीब छ लाख टन चीनी का निर्यात भी हो चुका है। इस समय चीनी निर्यातकों को व्हाइट शुगर की 4000 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत मिल रही है। वहीं रॉ शुगर की कीमत 3650 रुपये प्रति क्विटंल मिल रही है। बेहतर कीमत और निर्यात सौदों की वजह इस समय वैश्विक बाजार में केवल भारतीय चीनी का ही उपलब्ध होना है।चीनी उद्योग सूत्रों का कहना है कि भारत के लिए यह मौका मार्च 2023 तक ही उपलब्ध है। उसके बाद दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील की चीनी बाजार में आ जाएगी। उसके साथ ही थाइलैंड की चीनी भी बाजार में आ जाएगी। जिसके चलते मौजूदा कीमतें मिलना संभव नहीं रहेगा। व्हाइट शुगर की कीमत (एफओबी) 540 डॉलर प्रति टन चल रही है। जबकि रॉ शुगर की कीमत 19.6 सेंट प्रति पाउंड मिल रही है।

वर्ष 2016-17 में भारत से सिर्फ 46000 टन चीनी का निर्यात किया गया था। यह 2017-18 में बढ़कर 6.32 लाख टन, 2018-19 में 38 लाख टन, 2019-20 में 59 लाख टन, 2020-21 में 71.90 लाख टन और 2021-22 में 112 लाख टन तक पहुंच गया था। चीनी मिल 31 मई 2023 तक अपने निर्यात कोटा का 90% नहीं डिस्पैच कर पाती है तो निर्यात ना की गई मात्रा के 30% के बराबर आवंटित कोटा जुलाई-अगस्त 2023 में उनके घरेलू कोटा से कम कर दिया जाएगा।

सरकार ने घरेलू बाजार के लिए चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) 31 रुपये प्रति किलो तय किया है। लेकिन बाजार में चीनी की कीमत 40 रुपये से 41 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रही है। चीनी उद्योग का कहना है कि  उसके लिए यह एक बेहतर समय है। जहां घरेलू बाजार में चीनी के बेहतर दाम मिल रहे हैं वहीं निर्यात लिए भी बेहतर कीमत मिल रही है। इसके चलते ही 45 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हुए हैं। जो चीनी मिलें चीनी निर्यात नहीं कर रही हैं उन्होंने पांच लाख टन चीनी के स्वैप सौदे भी निर्यातकों के साथ कर लिये हैं।भारत से चीनी का अधिकांश निर्यात एशियाई देशों को ही हो रहा है। आयातकों में 20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ इंडोनेशिया सबसे ऊपर है। उसके बाद 15 फीसदी आयात बांग्लादेश द्वारा किया जा रहा है। चीन को निर्यात सात फीसदी है। अन्य आयातकों में दक्षिण कोरिया, मलयेशिया, श्रीलंका और अफ्रीकी देश हैं। रॉ शुगर का अधिकांश निर्यात संयुक्त अरब अमीरात को हो रहा है क्योंकि वहां रिफाइनरी है।पिछले चार साल में देश से चीनी का निर्यात लगातार बढ़ा है। साल 2019-20 में 32 लाख टन, 2019-20 में 59 लाख टन, 2020-21 में 72 लाख टन और 2021-22 में 110 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ था। चालू सीजन (2022-23) में 80 लाख टन चीनी निर्यात होने की संभावना है। सरकार ने अभी तक 60 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। जनवरी में उत्पादन की स्थिति की समीक्षा के बाद अतिरिक्त कोटा जारी किया जा सकता है।

चीनी के निर्यात पर लगी सीमा के आगे बढ़ने से चीनी निर्यातकों को फायदा होगा। वैश्विक बाजारों में बढ़े दाम का लाभ निर्यातकों को मिलेगा। एक खबर के अनुसार, निर्यातकों ने 2022-23 के लिए पहले ही 4 लाख टन रॉ शुगर के निर्यात के लिए सौदा कर लिया है। मौजूदा मार्केटिंग वर्ष में भारत ने चीनी के निर्यात को 1.12 करोड़ तक सीमित कर दिया है ताकि बढ़ती हुई कीमतों को काबू किया जा सके। गौरतलब है कि भारत काफी ऊंची महंगाई दर से जूझ रहा है। हाल ही में देश ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, साथ ही चीनी के निर्यात पर भी लगाम कसी थी।

चीनी का निर्यात बढ़ने से मिलों की आय का फ्लो बेहतर हुआ है। इसके चलते गन्ना भुगतान की स्थिति में भी सुधार हुआ है। महाराष्ट्र के चीनी उद्योग के एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि वहां पिछले सीजन का 99 फीसदी से अधिक गन्ना मूल्य हो चुका है। देश में गन्ना मूल्य भुगतान का पिछले सीजन का अधिकांश बकाया उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर है। चालू सीजन के लिए केंद्र सरकार ने गन्ने का एफआरपी 305 रुपये प्रति क्विटंल तय किया है। हालांकि इस साल एफआरपी में बढ़ोतरी के साथ सरकार ने इसके लिए चीनी की रिकवरी का स्तर भी बढ़ाकर 10.25 फीसदी कर दिया है। उससे अधिक रिकवरी पर किसानों को अतिरिक्त भुगतान होता है। गन्ने में चीनी की 0.10 फीसदी रिकवरी बढ़ने पर 3.05 रुपये प्रति क्विटंल का अतिरिक्त भुगतान किसानों को मिलेगा। इसका फायदा उन राज्यों में है जहां एफआरपी के आधार पर गन्ने का मूल्य मिलता है। जबकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) के आधार पर भुगतान होता है। 

इसके साथ ही एथेनॉल का उत्पादन बढ़ने और तेल विपणन कंपनियों के साथ दीर्घकालिक सौदे होने के चलते भी चीनी मिलों की कमाई की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है। तेल कंपनियां एथेनॉल आपूर्ति के 21 दिन बाद चीनी मिलों को भुगतान कर रही हैं। निर्यात बढ़ने और एथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों की लिक्विटी काफी बेहतर हुई है। इसके चलते ही पिछले सीजन में चीनी मिलों ने 45 लाख टन चीनी एथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट की थी जो चालू साल में 60 लाख टन तक पहुंच सकती है। वहीं चालू सीजन में कुल चीनी उत्पादन करीब 400 लाख टन रहने का अनुमान है। इसमें एथेनॉल के लिए डायवर्ट की गई चीनी भी शामिल है।

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