- तो क्या स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा और तकनीकी शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग की आपसी खींचतान की वजह से रीट परीक्षा का पेपर करोड़ों रुपए में बिका…?
- परीक्षा आयोजित करने वाला शिक्षा बोर्ड शिक्षा मंत्री के आदेश नहीं मान रहा था तो क्या यह बात डोटासरा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को क्यों नहीं बताई…?
- 16 लाख युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अब कौन जिम्मेदार है…?
एस0 पी0 मित्तल
जो लोग अखबारों में खबर पढ़ते हैं, वे यह भी जानते हैं कि खबर शुरू होने से पहले उस शहर या गांव का नाम छपा होता है, जिस जगह की यह खबर है। ऐसी ही एक खबर राजस्थान पत्रिका के 3 फरवरी के अंक में दूसरे प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हुई है। यह खबर तो सीकर शहर से लिखी है, लेकिन यह बहुचर्चित रीट परीक्षा घोटाले से जुड़ी है। इस खबर में रीट परीक्षा को लेकर स्कूली शिक्षा विभाग और परीक्षा आयोजित करने वाले माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के बीच विवादों का उल्लेख किया गया है। पत्रिका की खबर में सरकार की गोपनीय सूचनाओं का भी उल्लेख किया गया है। सब जानते हैं कि रीट परीक्षा के समय गोविंद सिंह डोटासरा ही स्कूली शिक्षा मंत्री थे और डोटासरा सीकर के ही है। इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि खबर का स्त्रोत कौन है। पत्रिका की इस खबर में बताया गया कि प्रदीप पाराशर और रामकृपाल मीणा को जयपुर का प्रभारी बनाए जाने पर स्कूली शिक्षा विभाग सहमति नहीं था, लेकिन इसके बावजूद भी बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष डीपी जारोली और सचिव अरविंद सेंगवा ने दोनों गैर सरकारी व्यक्तियों को जयपुर का प्रभारी बनाए रखा। सवाल उठता है कि जारोली और सेंगवा में इतनी ताकत कहां से आई, जो गोविंद सिंह डोटासरा जैसे दबंग मंत्री के निर्देशों की अवहेलना कर रहे थे? जानकारों की मानें तो यह ताकत तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग ने शिक्षा बोर्ड को दे रखी थी।
रीट परीक्षा में सुभाष गर्ग का सीधा दखल था, इसलिए राजीव गांधी स्टडी सर्किल से जुड़े व्यक्तियों के परीक्षा का महत्वपूर्ण काम था। कहा जा सकता है कि प्रदीप पाराशर और रामकृपाल मीणा को जयपुर का प्रभारी बनवाने में तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग का ही दबाव रहा। पाराशर और मीणा ही रीट पेपर आउट करने के सूत्रधार हैं। दोनों अब एसओजी की गिरफ्त में है। पत्रिका की खबर से जाहिर है कि पेपर आउट प्रकरण में स्कूली शिक्षा विभाग तो पाक साफ है, जबकि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने ही पेपर आउट करवाया है। यानी दो मंत्रियों की आपसी खींचतान से प्रदेश के 16 लाख युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। परीक्षा को रद्द करने के लिए सरकार पर चौतरफा दबाव है। सवाल यह भी है कि जब माध्यमिक शिक्षा बोर्ड प्रदेश के स्कूली शिक्षा विभाग के निर्देश नहीं मान रहा था, तब क्या मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से शिकायत की? यदि रीट परीक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां पहले ही सीएम गहलोत को बता देते तो रीट पेपर आउट ही नहीं होता। सीएम गहलोत मंत्री सुभाष गर्ग को भले ही संरक्षण दें, लेकिन किसी परीक्षा का प्रश्न पत्र आउट करवाने की छूट सीएम गहलोत नहीं दे सकते हैं। पेपर आउट होने के बाद आज सबसे ज्यादा परेशानी अशोक गहलोत को ही हो रही है।
एसओजी के एडीजी अशोक राठौड़ ने भी माना है कि प्रदीप पाराशर और रामकृपाल मीणा की वजह से रीट का पेपर जयपुर के शिक्षा संकुल के स्ट्रांग रूम से बाहर निकाला और फिर 15-15 लाख रुपए तक में बिका। रीट परीक्षा को लेकर सीकर से अब जो गोपनीय सूचनाएं लीक की जा रही है,यदि ऐसी सूचनाओं को पहले से ही सीएम को बता दिया जाता तो पेपर आउट नहीं होता। सीएम गहलोत ने कहा है कि हर व्यक्ति को गलती की कीमत चुकानी पड़ेगी। अब जब गलती करने वाले का पता चल गया है, तब देखना होगा कि सजा कब मिलती है। डीपी जारोली, अरविंद सेंगवा ही दोषी नहीं हो सकते। इन दोनों के पीछे खड़े प्रभावशाली व्यक्ति को भी सजा देनी होगी, नहीं तो सीएम के दावे ढकोसले साबित होंगे।