लिव इन में रहने पर नौकरी से बर्खास्तगी गलत: इलाहाबाद हाई कोर्ट

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                                 विवाहित होने के बाबजूद लिव इन में रहने पर नौकरी से बर्खास्तगी गलत।

कोर्ट ने कहा कि महज शादीशुदा होने के बावजूद दूसरी महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर किसी को नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना कि नौकरी से बर्खास्तगी की सजा बहुत कठोर है। यह उत्तर प्रदेश सरकार सेवक आचरण नियमावली 1956 के संदर्भ में अनुचित भी है।

 

कोर्ट ने कहा कि शादीशुदा कर्मचारी को महज दूसरी महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने गोरेलाल वर्मा की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि नौकरी से बर्खास्तगी की सजा बहुत कठोर है। यह उत्तर प्रदेश सरकार सेवक आचरण नियमावली 1956 के संदर्भ में अनुचित भी है। कोर्ट ने इसी आधार पर बर्खास्तगी आदेश को रद्द करने योग्य माना। कोर्ट ने कहा कि  विभाग चाहे तो कोई अन्य मामूली दंड दे सकता है। साथ ही याची को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया है लेकिन यह भी कहा कि याची को बर्खास्तगी की अवधि का वेतन भुगतान नहीं किया जाएगा।गोरेलाल वर्मा पर आरोप है कि वह पत्नी लक्ष्मी देवी के जीवित रहते हुए हेमलता वर्मा नाम की महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में पति-पत्नी की तरह रहने का दोषी पाया गया था। दोनों से तीन बच्चे भी हैं।  शादीशुदा होते हुए लिव इन रिलेशनशिप में रहने के कारण गोरे लाल वर्मा को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। उसने याचिका दाखिल कर 31 अगस्त 2020 के बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के खिलाफ उसने विभागीय अपील भी की थी, जी खारिज कर दी गई।

 

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि शादीशुदा होते हुए दूसरी महिला के साथ लिव इन रिलेशन में रहने वाले सरकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्तगी को गलत करार दिया है। कोर्ट ने माना कि सेवा से बर्खास्तगी एक कठोर दंड है।
  • बर्खास्तगी को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि याची को सेवा में फिर से बहाल किया जाए और विभाग चाहे तो दूसरा मामूली दंड दे सकता है। गोरेलाल वर्मा की याचिका पर जस्टिस पंकज भाटिया ने उक्त आदेश दिया है। याचिका में कहा गया कि गोरेलाल की शादी लक्ष्मीदेवी से हुई है,जो कि जीवित है,लेकिन वह हेमलता के साथ लिव इन मे रहता है और दोनों के तीन बच्चे है।
  • इस आधार पर 31 अगस्त 2020 को उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस आदेश के विरूद्ध उसने विभागीय अपील की वह भी खारिज कर दी गई।
  • विभाग का मानना है कि उसका यह कार्य सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। याची के वकील की दलील थी कि हाई कोर्ट ने अनीता यादव बनाम उत्तरप्रदेश राज्य के केस में इस प्रकार के मामले में बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया था।

सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। याची की दलील थी कि हाईकोर्ट ने इसी प्रकार के अनीता यादव के मामले में बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी खारिज भी कर दी इसलिए याची भी इसका लाभ पाने का हकदार है।