न न करते कईयों का प्यार अभी बाकी…..

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क्या अन्य दिग्गज भी भाजपा छोड़ेंगे….? विधानसभा के सभा में विधायकों का ट्रेलर था अब खुलकर आ रहा है सामने हो सकता है टेलर देने वाले सभी विधायक सत्ता से विमुख होकर फिर सत्ता में आए..!

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से भूचाल आ गया। सभी वर्ग के लोगों में उनके इस्तीफे की चर्चा होती रही तथा तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे। एक अन्य मंत्री दारा सिंह चैहान ने भी इस्तीफा दिया। मगर चूंकि अधिक लोग उन्हें नहीं जानते, इसलिए उनके इस्तीफे को उतना महत्व नहीं मिला। दिनभर जमकर चर्चाएं होती रहीं तथा प्रदेश सरकार के अन्य मंत्रियों के इस्तीफों की अफवाहें उड़ती रहीं।


भारतीय जनता पार्टी के कट्टर समर्थक लोग अमित शाह, प्रदेश सरकार के नेतृत्व तथा प्रदेश संगठन को कोसते रहे। लोगों का यह कहना था कि भाजपा के बड़े नेताओं का तो कोई त्यागपूर्ण जीवन होता नहीं तथा वे सरकार में रहें या विपक्ष में, उनके ऐशोआराम एवं रोबदाब में कभी कमी नहीं होती। वास्तविक त्याग पार्टी का आम कार्यकर्ता करता है और बड़े से बड़े कष्ट झेलता है। उसी के कारण पार्टी को मजबूती मिलती है। बड़े नेताओं के अहंकार व मूर्खताओं से ही पार्टी को यह झटका लगा है तथा स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे ने हलचल मचा दी है।


लोग अखिलेश यादव को बहुत बुद्धिमान एवं चतुर राजनीतिक खिलाड़ी मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि अखिलेश यादव ने पहले अपने चाचा को अलग-थलग कर पार्टी पर कब्जा जमा लिया। उसके बाद उन्होंने अपने उस चाचा को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिसने उन्हें बचपन से पालपोसकर बड़ा किया था।लोगों ने कहा कि मायावती बड़ी शातिर मानी जाती थीं तथा भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर उन्होंने उसे ऐसी पटकनी दे दी थी कि भाजपा उत्तर प्रदेश में चौथे नंबर पर पहुंच गई थी। यदि मोदी न आए होते तो उत्तर प्रदेश में अब तक भाजपा का अस्तित्व मिट गया होता। लेकिन अखिलेश यादव मायावती से अधिक चालाक निकले। उन्होंने मायावती से गठबंधन कर उन्हें ऐसी गहरी चोट पहुंचाई कि वह अब तक कराह रही हैं। वह जाति के नाम पर अपना जो वोटबैंक बचाए हुए हैं, आश्चर्य नहीं कि वह वोटबैंक भी धीरे-धीरे उनका साथ छोड़ दे।


लोगों में इस बात की चर्चा हो रही है कि अखिलेश यादव अभी और बड़ा दांव खेलने की फिराक में हैं। उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य की यह कमजोरी भांप ली थी कि भाजपा में अपने पुत्र को टिकट न मिल पाने से वह असंतुष्ट हैं। अतः अखिलेश यादव ने उन पर चारा फेंका और भाजपा से इस्तीफा दिलाकर उन्हें अपने खेमे में शामिल कर लिया। ऐसा करके अखिलेश यादव ने जो भूकम्प पैदा किया, उससे भारतीय जनता पार्टी हिल गई।लोग भले ही स्वामी प्रसाद मौर्य को स्वार्थी, भ्रष्ट और दलबदलू मानें, लेकिन अखिलेश यादव का तो फायदा हो ही गया। अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य से दलबदल कराकर उनके साथ सफल ‘ब्लैकमेल’ किया है। अब स्वामी प्रसाद मौर्य यदि सपा में असंतुष्ट हुए तो उनके पास कहीं दूसरी जगह जाने का रास्ता खत्म हो गया है।


यह बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी को जल्दी ही बड़ा झटका देने के चक्कर में हैं। वह भाजपा के ऐसे कुछ बड़े नेताओं को अपने पाले में लाना चाहते हैं, जिससे स्वामी प्रसाद मौर्य वाले प्रकरण से अधिक बड़ा भूकम्प पैदा हो तथा समाजवादी पार्टी को पुख्ता होने का अधिक अवसर मिले। चर्चा के अनुसार अखिलेश यादव की नजर सूर्यप्रताप शाही, आशुतोष टंडन(गोपाल जी), महेंद्र सिंह, ब्रजेश पाठक तथा रीता बहुुगुणा जोशी पर है और वह उन्हें उपमुख्यमंत्री पद का लालच देकर सपा में शामिल कराना चाहते हैं। जब यह सवाल किया गया कि सपा सरकार बन जाएगी तो कितने लोगों को उपमुख्यमंत्री बनाएगी तो अखिलेश खेमे के लोगों ने उत्तर दिया कि जब उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में थोक में अपर मुख्य सचिव बनाए जा सकते हैं तो सपा सरकार में आधा दर्जन उपमुख्यमंत्री भी बनाए जा सकते हैं।


भाजपा सरकार की एक विशेषता यह चर्चित है कि केंद्र अथवा प्रदेश में किसी भी मंत्री से बात हो पाना असंभव रहता है। यहां तक कि प्रदेश शासन के बड़े अफसर भी जनता को सिर्फ कीड़ामकोड़ा समझते हैं और फोन पर बात करना तो दूर उन अफसरों से भेंट हो पाना भी लगभग असंभव रहता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बार-बार निर्देश के बावजूद अफसर सरकार द्वारा जनसम्पर्क के लिए दिए गए सीयूजी मोबाइल भी कभी नहीं उठाते।


स्वयं मुझे अनुभव हुआ है कि प्रदेश सरकार के मंत्री सूर्यप्रताप शाही, महेंद्र सिंह, आशुतोष टंडन(गोपाल जी) एवं ब्रजेश पाठक पहले फोन पर आसानी से उपलब्ध होते थे, मगर कुछ अरसे से वे जबरदस्त रूप में दुर्लभ हो गए । यही कारण है कि जब मैंने उक्त मंत्रियों के भाजपा छोड़ने की चर्चा सुनी तो सारे दिन उन्हें फोन मिलाता रहा, लेकिन किसी से बात नहीं हो पा रही थी।


बड़ी मुश्किल से रात में ब्रजेश पाठक एवं आशुतोष टंडन(गोपाल जी) से सम्पर्क हो पाया तो उन्होंने भाजपा छोड़ने की बात से इनकार किया। हालांकि अखिलेश खेमे के एक व्यक्ति ने कहा कि राजनीति में अब ऐसा ही चलन है- ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे।’ उपमुख्यमंत्री पद का लालच इन्हें कभी भी डिगा सकता है। वैसे, लगभग दो साल पहले की बात है, ब्रजेश पाठक के बारे में खबर उड़ी थी कि वह भाजपा छोड़ेंगे। उस समय ब्रजेश पाठक आसानी से उपलब्ध रहा करते थे तथा मुझे बहुत सम्मान देते थे। मैंने तुरंत उनके यहां जाकर जब उस खबर के बारे में पूछा तो उन्होंने कसम खाकर कहा था कि भाजपा और उनका डीएनए एक है तथा वह मृत्युपर्यंत भाजपा में ही रहेंगे, इसलिए कहीं अन्यत्र जाने का प्रश्न नहीं उठता।


भाजपा के कट्टर समर्थक अपने बड़े नेताओं को यह कहकर कोस रहे हैं कि वे अहंकार में इतना चूर हो गए कि उन्होंने भाजपाइयों की घोर उपेक्षा की। आम जनता तो दूर, भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं तक की फरियाद सुनने और समस्याओं का समाधान करने वाला कोई नहीं रह गया। न तो प्रशासन में सुनवाई होती है और न संगठन में।मुझे याद आया कि फेसबुक में गोरखपुर के एक पुराने भाजपा कार्यकर्ता की करुण पोस्ट पढ़ी थी, जिसमें उसने बताया था कि उसके घर में सभी लोग निष्ठावान भाजपाई हैं, लेकिन उसकी जमीन पर कुछ गुंडों ने कब्जा कर लिया है, जिसकी फरियाद लेकर वह चारों ओर दौड़ रहा है, पर उसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही है।


भाजपा के कई शुभचिन्तकों का कथन है कि प्रदेश भाजपा के मुख्यालय को कारपोरेट- ऑफिस’ बना दिया गया है तथा वहां आम कार्यकर्ताओं के बजाय बड़े-बड़े धनिक व दबंग टाइप के लोग दिखाई देते हैं। जबकि पार्टी-कार्यालय ऐसा होना चाहिए, जहां दिनभर जनपद एवं बाहर से आए कार्यकर्ताओं का जमघट लगा रहे तथा पदाधिकारीगण उनसे आत्मीयतापूर्ण वार्तालाप किया करें।


दुर्भाग्यवश सरकार या संगठन में जनता के साथ निष्ठावान कार्यकर्ता भी पूरी तरह उपेक्षित एवं बेसहारा हैं। हमेशा पार्टी के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ताओं को सिर्फ दरी बिछाने व कुरसी लगाने लायक समझा जाता है।राष्ट्रवादियों के सामने बड़ी समस्या यह है कि सिर्फ भाजपा एकमात्र राष्ट्रवादी पार्टी है, इसलिए राष्ट्रवादियों का कोई अन्य ठौर नहीं है।