पवित्र जैन धार्मिक स्थल न बनाएं पर्यटन क्षेत्र

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पवित्र जैन धार्मिक स्थल न बनाएं पर्यटन क्षेत्र

झारखंड। जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान ‘आदिनाथ’ अर्थात् भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर में मोक्ष प्राप्त किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अत: भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है।

शिखरजी जैन धर्म के अनुयायिओं के लिए एक महतवपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इसे ‘पारसनाथ पर्वत’ के नाम से भी जाना जाता है।

लखनऊ निवासी विपिन कुमार जैन ने बताया कि सम्मेद शिखर के कण-कण में उनके भगवान बसते हैं। जैन धर्म भारत की एक अद्भुत धार्मिक सांस्कृतिक विरासत है, इसके मूल में अहिंसा और त्याग है। संपूर्ण विश्व से जैन लोग वहां दर्शन एवं तीर्थ यात्रा करने आते हैं। ऐसे में किसी भी धर्म के तीर्थ स्थल को पवित्र तीर्थ ही रहने देना चाहिए ना कि उसे मनोरंजन का स्थान बनने देना चाहिए। जैन समाज के सबसे बड़े पावन पवित्र तीर्थ स्थल को मनोरंजन का स्थान बना देने से उसकी पवित्रता खत्म हो जायेगी। जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थकरों ने वहां निर्वाण प्राप्त किया था। ऐसे में पर्यटन छेत्र बनने पर यहां भी पर मांस, मच्छी व शराब बिकेगी, कैसिनो खुलेंगे,नाच गाना होगा, अश्लील गाने बजेंगे,लोग उसका लुफ्त उठाने लगे तो फिर हमारे धर्म की पवित्रता पर आँच आएगी और तीर्थ यात्रा के पवित्रता के मनोभाव ही नहीं रहेंगे तो हमारी सरकार से बस यही मांग है कि सम्मेद शिखर को पवित्र तीर्थ स्थल ही रहने दें। अर्चना जैन ने कहा कि सम्मेद शिखर जैसा जैनियों का धार्मिक स्थल विश्व में दूसरा नहीं है। पर्यटन क्षेत्र घोषित होने पर उसकी धार्मिक पवित्रता पर प्रभाव पड़ेगा। यहां मांसाहार और मदिरापान को बढ़ावा मिल सकता है। आधार्मिक गतिविधि बढ़ सकती है। इसलिए जैन समुदाय इसको पर्यटन स्थल नहीं बनाने की मांग करता है। बल्कि इसे पवित्र धार्मिक स्थल घोषित करने की मांग कर रहा है।

प्रदेश के गिरिडीह ज़िला अंतर्गत पारसनाथ के मधुवन स्थित जैन धर्मावलंबियों के लिए चर्चित उपासना स्थल ‘श्री सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल बनाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ चौतरफ़ा विरोध हो रहा है।झारखंड सरकार ‘सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल बनाने के निर्णय के ख़िलाफ़ बढ़ते चौतरफा विरोध को देखते हुए इस मामले में जल्द फ़ैसला लेगी। इसकी जानकारी प्रदेश के पर्यटन मंत्री ने जैन समाज के प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त करते हुए दी।प्रदेश के गिरिडीह ज़िला अंतर्गत पारसनाथ के मधुवन स्थित जैन धर्मावलंबियों के लिए चर्चित उपासना स्थल ‘श्री सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल बनाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ चौतरफ़ा विरोध हो रहा है।ज्ञात हो कि गत 2 अगस्त 2019 को केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा पारसनाथ पहाड़ी जंगल क्षेत्र के एक हिस्से को ‘वन्य जीव अभ्यारण्य और पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (इको सेंसेटिव ज़ोन) घोषित किया गया। इसके बाद 2 जुलाई 22 को झारखंड सरकार ने भी इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा कर दी।

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पवित्र जैन धार्मिक स्थल न बनाएं पर्यटन क्षेत्र

जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।

‘सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल बनाने के फ़ैसले का विरोध कर रहे जैन समाज के लोगों से मुख्यमंत्री के सचिव और राज्य पर्यटन सचिव ने पिछले दिनों वार्ता भी की। जिसमें उक्त विवाद के संदर्भ में दोनों पक्षों ने अपनी अपनी बात रखी। जिसमें सरकार के प्रतिनिधि अधिकारियों ने सरकार का पक्ष रखते हुए आश्वस्त किया कि यहां कोई बड़ी संरचना बनाने की योजना नहीं है। पर्यटन स्थल बनने के बाद भी यहां की पवित्रता नष्ट होने नहीं दी जाएगी। यहां मांस-मदिरा के इस्तेमाल पर पहले की ही तरह पूरी सख़्ती से रोक रहेगी।वहीं, जैन समाज की ओर से उनके प्रतिनिधिमंडल ने अपना पक्ष रखते हुए ज़ोर दिया कि यह स्थल और इलाक़ा वर्षों से उनके लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और उपासना का केंद्र रहा है। यहां उनकी धार्मिक आस्था को नुक़सान पहुंचाने वाली किसी भी प्रकार की सरकारी छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

उक्त वार्ता का समापन इसी पहलू पर हुआ कि मुख्यमंत्री इस पर अंतिम निर्णय लेंगे

दूसरी ओर, सरकार की घोषणा होते ही झारखंड प्रदेश के जैन समाज के लोगों ने मुखर विरोध शुरू कर दिया। जैन समाज की अपील पर राज्य के सभी अल्प्संख्यक और नागरिक समाज के संगठनों और एक्टिविस्टों ने भी उनके समर्थन में सड़कों पर प्रदर्शन के साथ अपनी मांग तेज़ की। 30 दिसंबर को राजधानी की सड़कों पर ‘सर्वधर्म समाज’ के बैनर तले रांची अंजुमन इस्लामिया, सिख समाज संगठन और इसाई समाज के प्रतिनिधियों के साथ कई सामाजिक एक्टिविस्टों ने ‘प्रतिवाद मानव श्रृंखला’ बनाकर सरकार से अपना फ़ैसला वापस लेने की मांग उठाई।

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सनद रहे कि वर्षों पहले से झारखंड में सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला कहे जानेवाले पारसनाथ (गिरिडीह ज़िला) के मधुवन स्थित जैन समाज का उपासना स्थल रहा है। जो झारखंड और भारत समेत दुनिया भर के जैन धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है जिसे जैन समाज के लोग पूरे आदर के साथ ‘सम्मेद शिखर’ कहते हैं। बताया जाता है कि जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर के नाम पर ही इस पहाड़ी श्रृंखला का नाम पारसनाथ रखा गया है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए 20 तीर्थंकरों ने इसी पहाड़ी पर आकर मोक्ष प्राप्त किया है। इनकी स्मृति में यहां कई छोटे छोटे मंदिर बनाए गए हैं। यहां बने कुछ मंदिरों के निर्माण के बारे में यह भी कहा जाता है कि ये 2000 साल भी अधिक पुराने हैं।

सिर्फ़ झारखंड और भारत ही नहीं दुनिया के विभिन्न हिस्सों से जैन धर्म के लोग यहां उपासना के लिए पूरे वर्ष लगातार आते रहते हैं। मनोरम प्राकृतिक वादियों में महीनों रहकर वे अपनी आराधना-उपासना करते हैं। इन अनुयायियों के आवागमन में सहूलियत देने के लिए ही पारसनाथ स्टेशन पर राजधानी समेत सभी महत्वपूर्ण ट्रेनों का ठहराव है। महत्व की बात यह भी बतायी जाती है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर ने यहीं आकर उपासना करते हुए ‘मोक्ष प्राप्ति’ (देह त्याग) की है। जिसके कारण पूरी दुनिया के जैन धर्मावलंबी इसे उनकी निर्वाण-भूमि को सबसे पवित्र और पूज्यनीय मानते हैं। जिसके दर्शन और उपासना के लिए लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।

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