चुनाव आया किसान बिल वापस

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राकेश कुमार यादव

आज सुबह से ही सब तरफ़ एक ही चर्चा है, होनी भी चाहिये आखिर इलेक्शन आने वाले हैं, सदबुद्धि तो आयेगी ही लेकिन इसका मतलब क्या है यह सोचने की ज़रूरत है। आज हम जिस व्यवस्था से जूझ रहे हैं उसके लिये ज़िम्मेदार कौन है, हम हैं और केवल हम क्योंकि हमने बड़ी-बड़ी बातों में आकर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी ऐसे लोगों को सौंप दी जिसके लिये वह भी उतने सक्षम नहीं थे।


किसान बिल वापसी का रास्ता तभी दिखने लगा था जब पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में कमी की गयी थी, वह क्षण यह बता रहे थे कि अब सत्ता डांवाडोल हो रही है, जब अधिकारी बेलगाम होने लगें और भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाये और सत्तारूढ़ किसी भी तरह से अंकुश ना लगा पायें तो इसका मतलब सबको समझ आने लगता है।

“25 अक्टूबर 2021 को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का बयान सुनिए।” उनकी भविष्यवाणी सत्य हुई।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने गुरु नानक जयंती के उपलक्ष्य में चाहे जिन कारणों से कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया हो लेकिन उन्होंने जिन बिंदुओं पर बात की कि भविष्य में मजबूत कृषि कानून बनाने हेतु एक कमीटी, किसानों का दल तथा कई जानकारों की देखरेख में यह कार्य किया जायेगा साथ ही एमएसपी जैसे विषयों पर ठोस निर्णय लिया जायेगा इस कथन से यह स्पष्ट हुआ कि किसानों की बात शुरू में ही सुनी गयी होती तो आज बिल वापस करने की नौबत नहीं आती और असंख्य किसान आज जिंदा भी होते।

एमएसपी के बिना भविष्य नहीं है। यह केवल प्रधानमंत्री जी की बातों से ही स्पष्ट नहीं हुआ बल्कि यह भविष्य के लिए एक बेहद जरूरी प्रक्रिया भी है जिसके बिना मजबूत किसान की कल्पना नहीं की जा सकती है। मैं स्वयं एक बागवान, किसान परिवार से हूं। उत्पादक को यदि उसके उत्पादन का सही शुल्क भी न मिले तो यह सुधार कब होगा?

हर क्षेत्र के किसान, बागवान की बात हो, तमाम अड़चने साफ हो इसके साथ साथ उन छोटे किसानों पर भी अमल हो जो मंडी तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। सबसे अधिक विमर्श उनपर होना जरूरी है जिनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है। जो जमींदारों के खेतों में अपना जीवन खपा चुके हैं उनके लिए भी तो योजना, परियोजना लागू हो। आजादी के बाद भी इस देश की बड़ी आबादी के पास अपने नाम की दो गज जमीन न हो तो उसकी अपनी मातृभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि कैसे तय हो?