संकट में किसान सरसों के भाव MSP से नीचे

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संकट में किसान सरसों के भाव MSP से नीचे
संकट में किसान सरसों के भाव MSP से नीचे

संकट में किसान सरसों के भाव MSP से नीचे

आलू और प्याज के बाद अब सरसों के भाव किसानों के लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। मंडियों में सरसों की आवक तेज होते ही कीमतें घटने लगी हैं। देश की ज्यादातर मंडियों में नई सरसों का भाव 2022-23 के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चल रहा है। रिकॉर्ड रकबे में बुवाई होने की वजह से पैदावार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के अनुमान और जनवरी में खाद्य तेलों के रिकॉर्ड आयात का असर सरसों के भाव पर पड़ रहा है। इसे देखते हुए खाद्य तेलों के उत्पादकों के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए खाद्य तेलों के आयात, खासकर पामोलिन (रिफाइंड पाम ऑयल) पर ड्यूटी बढ़ा कर 20 फीसदी करने की मांग की है।

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MSP में बढ़ोतरी की वजह से बुवाई का रकबा तो रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया लेकिन आयात शुल्क में छूट की वजह से खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से एमएसपी में बढ़ोतरी का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटने की वजह से जनवरी 2023 में देश में रिकॉर्ड 16.61 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया। जनवरी 2022 की तुलना में यह 31 फीसदी ज्यादा है और सितंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है। भारत अपनी जरूरत का करीब 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है। सरसों के भाव में गिरावट का रुख देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि भाव और नीचे जाएंगे।

मंडियों में सरसों के भाव एमएसपी 5,450 रुपये से भी नीचे आ गए हैं। सरसों की आवक रोजाना बढ़ रही है। इसे देखते हुए कीमत में और गिरावट से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में सरकार को तत्काल ध्यान देने और हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है नहीं तो तिलहन किसानों को बहुत निराशा होगी। कीमतों में गिरावट से किसानों को नुकसान हो रहा है और उन्हें गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। आगे भी अगर यही ट्रेंड बना रहा तो खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने के हमारे प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे सरसों किसान हतोत्साहित होंगे।

संगठन ने सुझाव दिया है कि सरसों की कीमत को गिरने से बचाने और एमएसपी बनाए रखने के लिए नाफेड जैसी एजेंसियों को तुरंत सरकारी खरीद शुरू करने का निर्देश दिया जाना चाहिए। साथ ही पामोलिन (रिफाइंड पाम ऑयल) को तुरंत प्रतिबंधित श्रेणी के तहत रखा जाना चाहिए या इसके आयात को घटाने के लिए सीपीओ और पामोलीन के बीच के अंतर को न्यूनतम 20 फीसदी तक बढ़ाया जाना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि इस पर ड्यूटी बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाना चाहिए। सरकार के इस कदम से सरसों की कीमत पर सकारात्मक असर पड़ेगा और घरेलू रिफाइनिंग उद्योग की उपयोग क्षमता में सुधार करने में मदद मिलेगी। अजय झुनझुनवाला ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि पामोलीन के बेतहाशा आयात से खाद्य तेल की कीमतों में गिरावट आई है जिसका असर सरसों की कीमतों पर पड़ रहा है। पामोलीन से न तो हमारे सरसों किसानों को फायदा हो रहा है और न ही घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को। यह प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ के आह्वान के भी खिलाफ है।

SEA ने सुझाव दिया है कि सरकार रिफाइंड पाम तेल के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में रखकर या कच्चे पाम तेल (सीपीओ) और पामोलिन के बीच आयात शुल्क के अंतर को कम से कम 20 प्रतिशत तक बढ़ा कर कीमतों की गिरावट को रोक सकती है। इसके अलावा, सरकार नैफेड जैसी एजेंसियों के माध्यम से एमएसपी पर सरसों की खरीद शुरू कर सकती है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चालू फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) में सरसों की बुवाई 98.02 लाख हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में की गई है। संकट में किसान सरसों के भाव MSP से नीचे