लाल टोपी का डर भाजपा के घर

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पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि लाल टोपी का डर भाजपा नेताओं में घर कर गया है। उनको अब अपने राजनीतिक अस्तित्व का खतरा महसूस होने लगा है। भाजपा की लाल बत्ती गुल होने वाली है। इस सच्चाई से भाजपा अच्छी तरह परिचित हो गई है तभी वह समाजवादी पार्टी पर अनर्गल आरोप लगाने लगी है।अखिलेश ने सपा की लाल टोपी को खतरे की घंटी बताने वाले दल पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि ‘संसदीय जनतंत्र में भाषा और व्यवहार की मर्यादा से दल और व्यक्ति का परिचय होता है। भाजपा नेतृत्व में भाषा का संयम मिटता जा रहा है।भाजपा सत्ता के अहंकार में इतना डूब गई है कि वह विपक्ष को लांछित करने के किसी मौके से नहीं चूकती है। गौरतलब है कि सत्ता दाल ने गोरखपुर में आयोजित एक रैली में सपा पर हमला करते हुए कहा था कि लाल टोपी वाले प्रदेश के लिए खतरे की घंटी हैं वह अपनी झोली भरने और आतंकवादियों को जेल से छुड़ाने के लिए सत्ता चाहते हैं।

भारतीय संस्कृति का जब-तब दम भरने वाले भाजपा नेताओं को पता नहीं यह जानकारी है कि नहीं कि हनुमान जी का रंग लाल है। सूरज का रंग लाल है। हर एक के जीवन में लाल रंग है। लाल रंग बदलाव का भी है। खून का भी रंग लाल है। इस सबकी भाजपा को समझ नहीं है क्योंकि उसकी नीतियां तो नफरत फैलाने वाली है। काली टोपी वाले यह नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उनकी सोच संकीर्ण है।

भाजपा की लाल बत्ती गुल होने वाली है। इस सच्चाई से वह अच्छी तरह परिचित हो गई है। तभी वह समाजवादी पार्टी पर अनर्गल आरोप लगाने लगी है। भारतीय संस्कृति का दंभ भरने वाले बीजेपी के नेताओं को पता नहीं यह जानकारी है कि नहीं कि हनुमान जी का रंग लाल है। सूरज का रंग लाल है। हर एक के जीवन में लाल रंग है। लाल रंग बदलाव का भी है। खून का भी रंग लाल है। इस सबकी बीजेपी को समझ नहीं है क्योंकि उसकी नीतियां तो नफरत फैलाने वाली हैं। काली टोपी वाले यह नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उनकी सोच संकीर्ण है।


     भाजपा नेताओं को देश की भावनाओं से कोई लेना देना नहीं। किसानो- नौजवानों की समस्याओं के प्रति उसका रूख उपेक्षापूर्ण है। किसानों से किए गए वादों को भाजपा भूल गई है। यही नहीं उसने अपने चुनाव संकल्प पत्र में जो वादे किए थे उन्हें भी वह कूड़े के ढेर में डाल चुकी है। नौजवानों को रोजगार के झूठे आंकड़ों से भ्रमित किया जाता है।संसदीय जनतंत्र में भाषा और व्यवहार की मर्यादा से दल और व्यक्ति का परिचय होता है। भाजपा नेतृत्व में भाषा का संयम मिटता जा रहा है। उसका आचरण भी मर्यादा लांघता नज़र आने लगा है। लोकतंत्र का एक प्रमुख अंग सत्तापक्ष के बाद विपक्ष होता है।

भाजपा सत्ता के अहंकार में इतना डूब गई है कि वह विपक्ष को लांछित करने से नहीं चूकती है। सत्ताशीर्ष से विपक्षी नेताओं के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग कर व्यक्तिगत आरोप लगाया जाना लोकतंत्र में अवांछनीय है।सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी सन्2022 के चुनावों में हार की आशंका से इतना भयभीत है कि वह अपना विवेक और संयम दोनों खो चुकी है। उसने  लोकलाज भी छोड़ दी है। जनता ने तय कर लिया है कि वह भाजपा के अब तक के जनविरोधी कामों के लिए मतदान में उसका सफाया करके ही दम लेगी।